दूर्बा घोष
गुवाहाटी । पंद्रह मिनट की असमिया लघु फिल्म ‘मुर घुरार दुरंतो गोटी’ (स्वर्ग का घोड़ा) ने ऑस्कर पुरस्कार की लघु फिल्म (कथा) श्रेणी में भारतीय प्रवृष्टि के रूप में शामिल होने की अर्हता प्राप्त कर ली है। लघु फिल्म के निर्देशक महर्षि तुहीन कश्यप ने यह जानकारी दी।
‘मुर घुरार दुरंतो गोटी’ एक ऐसे व्यक्ति की कहानी बयां करती है, जिसे लगता है कि उसके पास दुनिया का सबसे तेज रफ्तार घोड़ा है और वह शहर में होने वाली हर दौड़ में जीतना चाहता है। लेकिन उस व्यक्ति के पास वास्तव में कोई घोड़ा नहीं, बल्कि एक गधा होता है।
सत्ताइस वर्षीय कश्यप ने कहा, “अब जबकि हम भारतीय प्रवष्टि के रूप में शामिल होने के लिए अर्हता प्राप्त करने में सफल हो गए हैं तो यह एक सपने के सच होने जैसा है।”
‘मुर घुरार दुरंतो गोटी’ का निर्माण कोलकाता स्थित सत्यजीत रे फिल्म एंड टेलीविजन इंस्टीट्यूट (एसआरएफटीआई) में एक छात्र प्रोजेक्ट के रूप में किया गया था। यह लघु फिल्म हाल ही में आयोजित बेंगलुरु अंतरराष्ट्रीय लघु फिल्म महोत्सव (बीआईएसएफएफ) में सर्वश्रेष्ठ फिल्म का अवॉर्ड जीतने में कामयाब रही थी। बीआईएसएफएफ ऑस्कर पुरस्कार में भारतीय प्रवृष्टि के रूप में भेजी जाने वाली फिल्मों के चयन के लिए एक क्वालिफाइंग फिल्म महोत्सव है।
फीचर फिल्मों के विपरीत एक लघु फिल्म को ऑस्कर में भेजे जाने के लिए उसका ऑस्कर से जुड़े एक क्वालिफाइंग फिल्म महोत्सव में पुरस्कार जीतना जरूरी होता है। बीआईएसएफएफ भारत में एकमात्र ऐसा फिल्मोत्सव है, जो अंतरराष्ट्रीय और भारतीय स्पर्धा की अपनी विजेता फिल्मों को ऑस्कर की लघु फिल्म (फिक्शन) श्रेणी में नामांकन के लिए भेजने के पात्र है।
बीआईएसएफएफ के निदेशक आनंद वरदराज ने कहा, “हमें यह घोषणा करते हुए खुशी हो रही है कि महर्षि कश्यप द्वारा निर्देशित ‘मुर घुरार दुरंतो गोटी’ बेंगलुरु अंतरराष्ट्रीय लघु फिल्म महोत्सव-2022 की भारतीय स्पर्धा श्रेणी की विजेता है और यह ऑस्कर की लघु फिल्म (फिक्शन) श्रेणी में प्रवृष्टि के लिए पात्र होगी।”
‘मुर घुरार दुरंतो गोटी’ के निर्माण दल में एसआरएफटीआई के अंतिम वर्ष के छात्र शामिल हैं। इस लघु फिल्म के ज्यादातर हिस्से एसआरएफटीआई परिसर और संस्थान के स्टूडियो में फिल्माए गए हैं, जबकि कुछ हिस्सों की शूटिंग कोलकाता के बाहरी इलाके में की गई है।
कश्यप ने बताया कि एक छात्र के रूप में वे उस लंबे सफर के बारे में ज्यादा नहीं जानते, जिससे कोई फिल्म गुजरती है और उन्हें विशेषज्ञों से मदद व मार्गदर्शन मिलने की उम्मीद है।
कश्यप, जिन्होंने फिल्म की पटकथा भी लिखी है, उन्होंने अपनी कहानी सुनाने के लिए असम की कहानी बयां करने वाली 600 साल पुरानी कला ‘ओजापाली’ का सहारा लिया है। ‘ओजापाली’ कलाकार गानों, नृत्य, इशारों और दर्शकों के साथ मजेदार संवाद का इस्तेमाल कर पौराणिक कथाओं से जुड़ी कहानियां सुनाते हैं।
कश्यप कहते हैं, “मुझे लगा कि फिल्म में हमारी कहानी को बयां करने के लिए यह कला बहुत दिलचस्प हो सकती है। यह कहानी कहने की पारंपरिक कला ‘ओजापाली’ को सिनेमा में पेश करने का एक औपचारिक प्रयास है।”