कोलकाता । कलकत्ता विश्वविद्यालय के हिन्दी विभाग में गत 2 सितम्बर को प्रो. कल्याणमल लोढ़ा शताब्दी व्याख्यान का आयोजन किया गया । इस अवसर पर लखनऊ से पधारे विशिष्ट विद्वान प्रो. सूर्य प्रसाद दीक्षित ने यह शताब्दी व्याख्यान दिया ।उनके व्याख्यान का विषय था – “हिंदी का निजी काव्यशास्त्र” । कार्यक्रम का प्रारम्भ करते हुए विभागीय अध्यक्ष प्रो. राजश्री शुक्ला ने स्वागत भाषण करते हुए प्रो कल्याणमल लोढ़ा के अवदानों का उल्लेख किया । उन्होंने हिन्दी में सर्वप्रथम पी एच डी करने वाले डॉ.नलिनी मोहन सान्याल जी की चर्चा भी की ।28 सितम्बर 1921 में जन्में लोढ़ा जी छायावाद के विशेषज्ञ थे और कक्षा में कामायनी पढ़ाते थे । विश्वविद्यालय में हिन्दी विभाग की गरिमा को बढ़ाने में उनका महत्वपूर्ण योगदान था ।
प्रो. सूर्यप्रसाद दीक्षित ने अपने वक्तव्य का प्रारम्भ करते हुए आचार्य ललिता प्रसाद सुकुल , आचार्य विष्णु कांत शास्त्री को नमन किया जिनसे वो अतीत में यहाँ जुड़े थे । हिन्दी के निजी काव्यशास्त्र पर बोलते हुए उन्होंने कहा कि हिन्दी के अपने काव्यशास्त्र को स्थापित करने की ज़रूरत है। हिन्दी भाषा के विकास की अपनी परिस्थिति और शैली के अनुरूप साहित्य शास्त्रीय विवेचन हिन्दी साहित्यकारों ने किया है । आचार्य रामचंद्र शुक्ल , जयशंकर प्रसाद जैसे साहित्यकारों ने इन विषयों पर मौलिक विचार व्यक्त किए हैं । उन्होंने कहा कि कविता रचना के लिए हृदय को सिंधु की तरह विस्तृत, अनंत, बुद्धि को ग्रहणशील होना होगा ।इसके बिना कविता रची नहीं जा सकती। शब्द से ही रस, छंद, करुणा, भाव आदि उत्पन्न होते हैं । प्रो दीक्षित ने कहा कि हिन्दी साहित्य के काल में काव्य हेतु ,काव्य प्रयोजन , काव्य लक्षण , काव्य के रूप इत्यादि सभी बदल गए हैं , अतः संस्कृत काव्यशास्त्र और पाश्चात्य काव्यशास्त्र के मानदंडों से इतर हिन्दी के निजी काव्यशास्त्र की चर्चा होनी चाहिए ।इस अवसर पर प्रो रामप्रवेश रजक , प्रो बिजय कुमार साव उपस्थित थे। बड़ी संख्या में विद्यार्थी एवं शोधार्थी इस व्याख्यान से लाभान्वित हुए ।अंत में प्रो बिजय कुमार साव ने विद्यार्थियों में मौलिक चिंतन को उत्पन्न करने वाले व्याख्यान के लिए प्रो सूर्य प्रसाद दीक्षित जी के प्रति धन्यवाद ज्ञापन किया ।