3 महीने में कर चुकी हैं एक लाख का व्यवसाय
मुम्बई । 15 साल की आर्याही मुम्बई की रहने वाली हैं, जो ऑर्गेनिक परफ्यूम बनाती हैं। करीब दो-तीन महीने में ही उन्होंने एक लाख से अधिक का व्यवसाय कर लिया है।
परफ्यूम आइडिया को लेकर आर्याही बताती हैं, ‘साल 2020 में जब लॉकडाउन लगा तो कॉस्मेटिक मार्केट बंद हो गए। उस वक्त मैं सिर्फ 13 साल की थी। दुकानें बंद होने की वजह से अच्छी क्वालिटी के परफ्यूम नहीं मिल पा रहे थे।’
वह कहती हैं, ‘मार्केट में उपलब्ध परफ्यूम वैसे भी केमिकल से बने होते हैं। यह हमारी बॉडी के लिए हार्मफुल भी होता है। मैं और मेरी दोस्तों को जब ये लगने लगा कि जो परफ्यूम हम खरीद रहे हैं, उसकी गंध बहुत हार्ड है या ये हमारे लिए महंगा है।’
इसके बाद आर्याही ने खुद से परफ्यूम बनाने की ठानी। करीब 6 महीने तक उन्होंने इस पर वर्क किया। कई परफ्यूम बनाने वाले स्टार्टअप, कंपनियों से बातचीत की। इसके बाद उन्होंने बेला फ्रेगरेंस नाम से परफ्यूम बनाना शुरू किया। यह छोटे बच्चों के इस्तेमाल के लिए बेहतर है।
आर्याही बताती हैं कि जब उन्होंने इसे बनाना शुरू किया तो कोई इसे गम्भीरता से ले ही नहीं रहा था। वो कहती हैं, लोग कच्चे माल की आपूर्ति नहीं करना चाह रहे थे। उन्हें लग रहा था कि ये छोटी सी बच्ची क्या करेगी। कैसे अपना स्टार्टअप रन करेगी।
आर्याही तीन तरह के परफ्यूम बनाती हैं। जिसका नाम उन्होंने बेला ऑर्गेनिक, बेला नेचुरल और बेला रोजा रखा है। यह 100% केमिकल फ्री है और वातावरण के अनुकूल है।
वह कहती हैं कि एसेंशियल ऑयल, फूड ग्रेड अल्कोहल और गुलाब से इसे तैयार किया जाता है। यह मार्केट के मुकाबले सस्ता भी है। जब आर्याही उत्पाद पर काम कर रही थीं तो परिवार वालों से सहयोग मिल रहा था, वहीं कई लोग कह रहे थे कि ये परफ्यूम नहीं बना पाएगी।
मां रजनी अग्रवाल कहती हैं, ‘जब आर्याही अपने परफ्यूम का फॉर्मूला तैयार कर रही थी तो हर तीसरे दिन रोने लगती थी। कहती थी कि मुझसे नहीं हो पाएगा, लेकिन मुझे विश्वास था कि वह प्रोडक्ट तैयार कर लेगी।’
आर्याही बताती हैं कि अब तक वो 200 से अधिक उत्पाद बेच चुकी हैं। सभी प्रोडक्ट्स उन्होंने ऑनलाइन ही बेचे हैं। उनकी मां कहती हैं, लॉकडाउन में ज्यादा समय मिल जाता था, लेकिन अब स्कूल खुल चुके हैं इसलिए बेटी सप्ताह में 3-4 घंटे ही इसमें दे पाती है।’
रजनी कहती हैं, ‘माता-पिता को लगता है कि पढ़ाई के साथ-साथ दूसरी गतिविधि से पढ़ाई पर प्रभाव पड़ेगा लेकिन ऐसा नहीं है। अगर बच्चे कुछ नया करने की कोशिश कर रहे हैं तो हमें उनका साथ देना चाहिए। जब आर्याही 11 साल की थी तो स्कूल में एक प्रोजेक्ट था, इसमें हर बच्चे को नया प्रोडक्ट बनाना था। आर्याही ने पुरानी स्कूल यूनिफॉर्म से पैड तैयार किए थे। आर्याही का मानना था कि पुरानी यूनिफॉर्म का हम इस्तेमाल नहीं करते हैं। इसे कई लोग फेंक देते है। उसे बचपन से ही कुछ न कुछ करते रहने की चाहत रही है।’