Wednesday, April 30, 2025
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उस सीधे-साधे ग्रामीण का स्वाभिमान आज तक मुझे प्रेरणा देता है

प्रो. प्रेम शर्मा

स्नातकोत्तर की परीक्षा के बाद मैंने पहली बार अपने गाँव “खैरड़” जाने की इच्छा व्यक्त की। सबकी सहमति से 1970 के मार्च महीने में हम गांँव के लिए रवाना हुए। मैं, मेरी दीदी, मेरे भाई साहब और मम्मी_हम चारों गांँव पहुंचे।
हम तो पहली बार गए थे लेकिन मम्मी को भी घर पहचानने में कुछ दिक्कत हुई। घर के सामने रौनक थी।मम्मी जब एक घर के सामने रुकीं तो एक व्यक्ति तेजी से हाथ जोड़ता हुआ मम्मी के सामने आया और झट से चरण स्पर्श किए। उसने पूछा-
आप कलकत्ते वाली दीदी हो ना?
मम्मी ने उसे आशीर्वाद दिया और पहचानते हुए कहा तुम बनारसी हो?
हां जी हां जी__कहता हुआ वह ससम्मान सबको भीतर ले गया, खटिया बिछाई ,आवभगत किया।
मम्मी ने कमरे की तरफ इशारा करते हुए पूछा- यह क्या है?
बनारसी और उसकी पत्नी दोनों एक दूसरे की तरफ झांकने लगे। डरते डरते उसने कहा-मैंने यहां हट्टी(दुकान) खोली है। पूरा गांव यहीं से सामान लेता है। मैं शहर से ले आता हूं। गांव वालों को सुविधा हो जाती है।
“हमें बताना तो चाहिए था”
मम्मी ने बनारसीलाल से कहा।
बड़ी विनम्रता से बनारसी लाल ने कहा सारे गांव वालों की सहमति थी और पटवारी जी को भी बता दिया था। आपकी और शर्मा जी की सब ने बहुत तारीफ की। गांव वालों ने कहा वह कुछ नहीं कहेंगे बहुत बड़े दिलवाले हैं।
थोड़ी देर बाद हम तीनो भाई बहन जब कमरे में पहुंचे तो हमने अपनी बातें शुरू कर दीं
मैंने कहा-हमारा घर हमारी जमीन, कैसा कब्जा कर लिया।
दीदी ने कहा_बिना पूछे ,बिना बताए अपना बिजनेस शुरू कर लिया।
भाई साहब ने कहा_गांव वालों को सब सीधे-सीधे कहते हैं पर यह होते बहुत चालाक हैं।
इसी तरह का वार्तालाप हम कर रहे थे कि बाहर से आवाज आई
“खाना तैयार है”बहुत ही आदर भाव से विनम्रता से बहुत ही स्वादिष्ट खाना पति-पत्नी दोनों ने हमें खिलाया।
रात को हम सो गए और नींद भी अच्छी आई। सुबह हमें होशियारपुर के लिए निकलना था । सुबह हम उठे तो देखा कुछ अलग सा ही वातावरण नजर आया। घर बड़ा बड़ा और खाली खाली लग रहा था।जब ध्यान दिया तो पता चला कि जिस कमरे में दुकान थी वह कमरा बिल्कुल खाली था। अचानक पीछे से बनारसी लाल की आवाज सुनाई जी_जी– घर आपका– जमीन आपकी—आप लोगों की लंबी अनुपस्थिति के कारण गांँव वालों की सुविधा के लिए मैंने यह काम किया था। अब आप इसे संभाले।
मुझे ऐसा लग रहा था”काटो तो खून नहीं”शर्मिंदगी से हम तीनो भाई बहन जमीन में गड़े जा रहे थे। महसूस किया गांव वाले ईमानदार भी होते हैं और स्वाभिमानी भी।
उस सीधे-साधे ग्रामीण का स्वाभिमान आज तक मुझे प्रेरणा देता है।

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