हर साल 3,700 से ज्यादा बेटियों को फाय़
दुर्ग । बिहार के गणितज्ञ आनंद कुमार की सुपर 30 की कहानी से तो सभी परिचित होंगे, लेकिन दुर्ग जिले में सुपर 30 की कुछ अलग ही कहानी है। यहां ऐसे कई प्रोफेसर हैं जो प्रदेश में एक मिसाल बने हैं। कोरोनाकाल में आर्थिक तंगी की वजह से कई बेटियों की पढ़ाई छूट गई थी। ऐसे बच्चियों की पढ़ाई का सारा जिम्मा वहां के प्रोफेसर उठा रहे हैं ताकि उनकी पढ़ाई जारी रहे। यहां के शासकीय वामन राव पाटणकर गर्ल्स कॉलेज में 30 टीचर्स मिलकर हर साल सुपर 30 छात्राओं की टीम तैयार करते हैं। इन शिक्षक -शिक्षिकाओं ने खुद साल 2020 में कॉलेज की छात्राओं के लिए ‘मोर नोनी’ योजना चलाई।
हर साल 3700 से ज्यादा बेटियों की होती है मदद
दुर्ग जिला मुख्यालय में संचालित शासकीय वामन राव पाटणकर गर्ल्स कॉलेज में हर साल 3700 से ज्यादा बेटियां अपना नाम दर्ज कराती हैं। इनमें शहर ही नहीं ग्रामीण क्षेत्रों की गरीब घरों की बच्चियां आती हैं। महाविद्यालय में कई छात्राएं ऐसी भी हैं जो आर्थिक स्थिति खराब होने के कारण पढ़ाई नहीं कर पाती। कई फीस न दे पाने के कारण कॉलेज के सेकेंड ईयर तक भी नहीं पहुंच पाती और बीच में ही पढ़ाई छोड़ देती हैं। कॉलेज के 30 प्रोफेसर ने मिलकर ऐसी एक-एक बेटी को अपनी बेटी की तरह पढ़ाने का बीड़ा उठाया है।
कोरोनाकाल के दौरान काफी बच्चियों ने छोड़ी पढ़ाई
गर्ल्स कॉलेज के प्रिंसिपल डॉ. सुशील चन्द्र तिवारी ने बताया कोरोना संक्रमण काल के दौरान जब लोगों के रोजगार के साधन बंद हो गए। पूरे देश में लॉक डाउन लगा। उस समय कई बच्चियों को अपनी पढ़ाई बीच में ही रोकनी पड़ी। यह देखकर कॉलेज के प्रोफेसर काफी चिंतित हुए। उन्होंने एक बैठक बुलाई और मंथन किया आखिर इतनी अधिक संख्या में बेटियां कॉलेज क्यों छोड़ रही हैं। उसमें निष्कर्ष सामने आया कि सामान्य वर्ग की बेटियां जो महाविद्यालय की फीस और अन्य खर्च नहीं उठा पा रही हैं, कॉलेज छोड़ने को मजबूर हो रही हैं। उनके अभिभावक उन्हें कॉलेज नहीं भेज रहे हैं। बस फिर क्या था प्रोफेसर ने तत्काल निर्णय लिया कि अब कोई भी बेटी शिक्षा से दूर नहीं होगी। उन्हें शिक्षित करने के लिए प्रोफेसर खुद एक योजना चलाएंगे।
सामान्य वर्ग की बच्चियों के लिए अधिक चुनौती
आर्थिक कारणों से पढ़ाई छोड़ने वाली बच्चियों में अधिकतर सामान्य वर्ग से होती हैं। इन बेटियों के लिए कॉलेज तक पहुंचना इसलिए मुश्किल होता है, क्योंकि उनके लिए ऐसी कोई छात्रवृत्ति योजना नहीं होती जिसका उन्हें फायदा मिल सके। ऐसी स्थिति में उनके सामने बीच में ही पढ़ाई छोड़ने के अलावा और कोई चारा नहीं बचता है।
‘मोर नोनी’ योजना चलाकर उठाते हैं पढ़ाई का पूरा खर्च
प्रिंसिपल डॉ. सुशील चन्द्र तिवारी ने बताया कि महाविद्यालय के 30 प्रोफेसर ने मिलकर ऐसी जरूरतमंद बेटियों की पढ़ाई का पूरा खर्च उठाने की जिम्मेदारी ली है। सभी ने मिलकर महाविद्यालय स्तर पर एक योजना चलाई। इसका नाम रखा ‘मोर नोनी’ योजना ‘मोर नोनी’ का मतलब ‘मेरी बेटी’ है। मोर नोनी योजना के तहत हर प्रोफेसर कम से कम दो बेटियों की पढ़ाई का पूरा खर्च उठाते हैं। इतना ही नहीं अब इस योजना में प्रोफेसर के बच्चे भी सहयोग करने लगे हैं। कई ऐसे प्रोफेसर हैं जिनके बच्चे एक साथ 10-10, 20-20 बेटियों की पढ़ाई का खर्च उठा रहे हैं। उनकी फीस भर रहे हैं।
एक बेटी पर एक साल में 3 हजार का खर्च
कॉलेज की प्रोफेसर ऋचा ठाकुर ने बताया कि जब भी महाविद्यालय में ऐसी जरूरतमंद छात्राओं के बारे में पता चलता है तो उनका ग्रुप उन बेटियों को बुलाकर उनसे संपर्क करता है। उनके परिजनों से बात करता है। जब परिजन उनकी पढ़ाई न बंद कराने के लिए राजी हो जाते हैं तो जो भी प्रोफेसर या सहायक प्राध्यापक बेटी की जिम्मेदारी लेता है वह उस बच्ची की फीस से लेकर स्टेशनरी तक की व्यवस्था कर देता है। एक बच्ची की पढ़ाई में साल भर में फीस सहित लगभग 3-4 हजार खर्च आता है।
(साभार – दैनिक भास्कर)