उत्तरायण में सूर्य

डॉ. वसुंधरा मिश्र

उत्ताल सागर की तरंगों में झिलमिल करती रश्मियां
सागर के तट की लहरों को छू करतीं आंख-मिचौली
लाखों-करोड़ों वर्षों से सूर्य किरणों की अठखेलियाँ
संपूर्ण ब्रह्मांड की दिशाओं की चौकसी में
सूर्य का उत्तरायण होना
भीष्म पितामह का देह परित्याग
गंगा का धरती पर आना
सगर के साठ हजार पुत्रों का मोक्ष पा जाना
भगीरथ प्रयास में लीन
आज भी दिखाई देता है
कपिल मुनि के आश्रम में
आंखों से टपकते तप की प्रखरता।

खुशियां बांटता विशाल सागर तट
बुलाता रहता अपनों को
संवाद और परस्पर संबंधों को मजबूत बनाता
धर्म – जाति- रंग – लिंग से ऊपर उठकर सूर्य देव
समरसता के कई पाठ पढ़ाते
जप तप दान त्याग तपस्या के मूल में
प्रकृति और मनुष्य को एकजुट होने का बंधन बांधते
जीवन प्रदत्त रोशनी दे ऊर्जावान बनाते।

आधुनिकता की आंधी भी वहां फीकी ही रहती
कई युग आए और चले गए
अडिग सूर्य चमकता रहता
जीवन दान देता रहा
पृथ्वी की जिजीविषा को बनाए रखता
हस्तांतरित त्योहार बन हर वर्ष
धरती और अंबर के क्षितिज को एक करता।

धनु राशि से मकर राशि पर सूर्य का आ जाना
शुक्र का उदय समृद्ध समय ले आता
अपनी रहस्यमयी स्वर्णिम रेखाओं से
ब्रह्मांड में अगणित गणनाएं बन जातीं
देवलोक के पथ खुल जाते
पिता- पुत्र के मिलन हो जाते
नई फसल और सकारात्मक ऊर्जा ले आते
ऋतु परिवर्तन प्रक्रिया बन खिल जाती
अन्न धन की बहार ले आती
भारत फिर से सकारात्मक ऊर्जा से भर जाता।

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