Sunday, September 14, 2025
खबर एवं विज्ञापन हेतु सम्पर्क करें - [email protected]

छठ पर्व की आस्था को आडंबर में ना बदलें….प्लीज

लोकनाथ तिवारी

छठ पर सेवा और दान करने की होड़ में जुटे नेता और तथाकथित समाजसेवियों को शायद बुरा लगे, फिर भी सुन लीजिए. आपके दान की सामग्री से गरीब से गरीब व्रती भी अर्घ्य नहीं देना चाहती. देना भी नहीं चाहिए. आस्था का पर्व छठ दिखावे का पर्व नहीं है. तभी तो हमारे घरों में बनी सामग्री का ही उपयोग पूजा के लिए होता है. ठेकुआ, सूथनी, अमरूद, मूली, हल्दी, ईंख, नारियल, जैसे फल जो बिहार और पूर्वी यूपी में आसानी से उपलब्ध होते हैं, उन्हीं से अर्घ्य दिया जाता है. आप के दान की सामग्री लेने के लिए लगी लंबी कतार में घंटों खड़ी महिलाएं व्रती नहीं हो सकती. अगर वे जरूरतमंद हैं भी तो उनको कतार में लगाकर आप लोग पाप के भागी बन रहे हैं. साथ ही बिहारी आस्था के इस पर्व को भी अन्य पर्वों की तरह दिखावे का बनाने की कोशिश कर रहे हैं. छठ एक पवित्र व्रत है. इसमें जाति-पांति, ऊंच-नीच और अमीर-गरीब का भेद-भाव नहीं होता. जिसके पास जो है. जितना है, उसी से छठ व्रत करता है.
अब तो छठ भी देखा-देखी आडंबरयुक्त होता जा रहा है. हमारे यहां तो गंगा नदी के किनारे जीवन व्यतीत करनेवाले भी अपने दरवाजे पर ही छठ मनाते थे. दो-तीन दिन पहले से ही अपने दुआर (गांव में हर घर के बाहर खुला स्थान रहता था जहां पुरुषों के बैठने का स्थान होता था) के ईनार (कुआं) पर हम सभी साफ सफाई शुरू कर देते थे. हमारे साथ पास पड़ोस के बच्चे भी रहते थे. खेतों से साफ माटी लाकर छठ माई की बेदी बनाते थे. लीप-पोत कर छठ तक उसकी रखवाली भी करते थे ताकि कोई गाय-बकरी उस बेदी के पास भी न फटकने पाये. हमारा गांव गंगा के किनारे है लेकिन अधिकांश परिवार अपने मुहल्ले में स्थित कुएं पर ही छठ मनाते थे.
छठ माई के बारे में हमें इतना बताया गया था कि इस व्रत में किसी भी प्रकार का गलती करने पर भारी दंड मिलता है. इसलिए केवल व्रती ही नहीं घर परिवार के दूसरे लोग भी शूचिता का भरपूर ख्याल रखते थे. यहां तक कि छठ के पहले हम लोग गन्ना, पानी फल, मूली आदि उन फलों को सेवन भी नहीं करते थे, जिनको छठ के अरघ (अर्घ्य) में उपयोग किया जाता था. छठ के दिन मां ठेकुआ बनाती थी, जिसके सुगंध से घर आंगन भर जाता था. हम लोग जब रसोई घर की चौखट से टेक लगाकर ठेकुआ बनते हुए टकटकी लगाकर ताकने लगते थे तो मां झिड़क कर भगा देती थी. कहती थी पूजा के पहले ललचायी नजरों से ठेकुआ की ओर ताकने से भी पाप लगता है. छठ का सारा दिन ठेकुआ और फलों को अगले दिन खाने की प्रतीक्षा में कटता था. दोपहर बाद नहा धोकर नये कपड़े पहन कर ठेकुआ, फल-फूल से लदे दऊरा को घर से लेकर छठ घाट जो कि हमारे दरवाजे पर ही होता था, लेकर जाते थे. पीछे-पीछे माई (मां) हाथ में लोटा लेकर नयी साड़ी और शॉल ओढ़े घाट तक आती थी. पास-पड़ोस की बड़की माई, चाची, दादी, बुआ और दीदी छठ बेदी के चारोओर बिछी चादर पर बैठ कर छठ की गीत पूरे लय से गाती थीं.
हम बच्चे अपने छठ घाट के अलावा गांव के दूसरे छठ घाटों पर भी जाकर अपने साथियों से मिलते थे. पटाखे और फूलझड़ियां छोड़ते थे. सूर्यास्त के ठीक पहले हम फिर अपने घाट पर हाजिर हो जाते थे. अर्घ्य दिलवाने के बाद सूर्य देवता को प्रणाम करते थे और फिर धीरे-धीरे दऊरा उठाकर घर ले जाते थे. यहां ध्यान रखा जाता था कि हम छठ घाट पर न कुछ खाते थे और न ही मुंह जूठा करते थे. रात में भी मां सुबह के अर्घ्य के लिए ठेकुआ बनाती थी. सुबह तड़के नहा धोकर सूर्योदय से घंटे भर पहले फिर छठ घाट पर पहुंच जाते थे. छठ के गीतों के साथ सूर्य देव के उगने की अधीर प्रतीक्षा होती थी. सूर्यदेव के उगने के बाद जो खुशी मिलती थी, वैसी खुशी अब नहीं मिलती. अब हम बड़े जो हो गये हैं.
हमारा गांव
उत्तर प्रदेश के सबसे पूर्वी इलाके में स्थित बलिया जिले के पूर्वी भाग द्वाबा का नारायणपुर-पचरुखिया गांव गंगा के किनारे पर है. अब यह बलिया-बैरिया राष्ट्रीय राजमार्ग (इसे हमलोग बांध कहते हैं क्योंकि यह जमीन से 20 फुट से अधिक ऊंचा है) के उत्तर में है. पहले हमारा गांव बलिया-बैरिया राष्ट्रीय राजमार्ग के दक्षिण में था. गंगा के कटान में हमारा नारायणपुर पचरूखिया गांव ही नहीं बल्कि आसपास के सारे गांव ही नदी के कटान में चले गये.

शुभजिता

शुभजिता की कोशिश समस्याओं के साथ ही उत्कृष्ट सकारात्मक व सृजनात्मक खबरों को साभार संग्रहित कर आगे ले जाना है। अब आप भी शुभजिता में लिख सकते हैं, बस नियमों का ध्यान रखें। चयनित खबरें, आलेख व सृजनात्मक सामग्री इस वेबपत्रिका पर प्रकाशित की जाएगी। अगर आप भी कुछ सकारात्मक कर रहे हैं तो कमेन्ट्स बॉक्स में बताएँ या हमें ई मेल करें। इसके साथ ही प्रकाशित आलेखों के आधार पर किसी भी प्रकार की औषधि, नुस्खे उपयोग में लाने से पूर्व अपने चिकित्सक, सौंदर्य विशेषज्ञ या किसी भी विशेषज्ञ की सलाह अवश्य लें। इसके अतिरिक्त खबरों या ऑफर के आधार पर खरीददारी से पूर्व आप खुद पड़ताल अवश्य करें। इसके साथ ही कमेन्ट्स बॉक्स में टिप्पणी करते समय मर्यादित, संतुलित टिप्पणी ही करें।

शुभजिताhttps://www.shubhjita.com/
शुभजिता की कोशिश समस्याओं के साथ ही उत्कृष्ट सकारात्मक व सृजनात्मक खबरों को साभार संग्रहित कर आगे ले जाना है। अब आप भी शुभजिता में लिख सकते हैं, बस नियमों का ध्यान रखें। चयनित खबरें, आलेख व सृजनात्मक सामग्री इस वेबपत्रिका पर प्रकाशित की जाएगी। अगर आप भी कुछ सकारात्मक कर रहे हैं तो कमेन्ट्स बॉक्स में बताएँ या हमें ई मेल करें। इसके साथ ही प्रकाशित आलेखों के आधार पर किसी भी प्रकार की औषधि, नुस्खे उपयोग में लाने से पूर्व अपने चिकित्सक, सौंदर्य विशेषज्ञ या किसी भी विशेषज्ञ की सलाह अवश्य लें। इसके अतिरिक्त खबरों या ऑफर के आधार पर खरीददारी से पूर्व आप खुद पड़ताल अवश्य करें। इसके साथ ही कमेन्ट्स बॉक्स में टिप्पणी करते समय मर्यादित, संतुलित टिप्पणी ही करें।
Latest news
Related news