10 महीनों में ही मिले 3.5 करोड़ के ऑर्डर
रुड़की : उत्तराखंड में रुड़की के रहने वाले तरुण जैमी पेशे से सिविल इंजीनियर हैं, लेकिन इंजीनियरिंग की पढ़ाई के समय या उसके बाद, उन्होंने कभी नौकरी के बारे में नहीं सोचा। वो लगातार ऐसा काम करने के बारे में सोचते थे, जिससे न सिर्फ कंस्ट्रक्शन इंडस्ट्री में बदलाव आए बल्कि उन्हें भी अच्छी कमाई हो। हुआ भी यही।
तरुण ने ग्रीनजैम्स नाम से एक स्टार्टअप शुरू किया। इसके जरिए उन्होंने कृषि और फ्लाई ऐश (राख) से ईको-फ्रेंडली ईंटें बनाने का काम शुरू किया। ऐसी ईंटों को एग्रोक्रिट कहा जाता है। दिसंबर 2020 में इसकी शुरुआत और सिर्फ 10 महीनों में उनके स्टार्टअप को 3.5 करोड़ के ऑर्डर मिल चुके हैं।
31 साल के तरुण जैमी सिविल इंजीनियर हैं और फिलहाल सेंट्रल बिल्डिंग रिसर्च इंस्टीट्यूट ( सीएसआईआर – सीबीआरआर) से सिविल इंजीनियरिंग में पीएचडी कर रहे हैं। तरुण बताते हैं मास्टर्स की पढ़ाई के दौरान ही उन्होंने ये तय किया था कि पढ़ाई पूरी करने के बाद वो कंस्ट्रक्शन इंडस्ट्री में बदलाव लाएंगे और वो ऐसा कर भी रहे हैं।
तरुण बताते हैं ‘ग्रीनजैम्स’ स्टार्टअप का आइडिया दिल्ली की एक घटना से आया। “मैं 2019 में दिल्ली में ड्राइव कर रहा था। स्मॉग और पॉल्यूशन के कारण के कार के शीशे से बहार साफ दिखाई नहीं दे रहा था और इस वजह से मेरी कार लगभग दुर्घटनाग्रस्त हो गयी। मैंने वापस आने के बाद दिल्ली में बढ़ते प्रदूषण का कारण जानना चाहा। एक रिसर्च से पता चला कि हरियाणा और पंजाब में फसल की कटाई के बाद जलने वाली पराली दिल्ली की खराब वायु गुणवत्ता के लिए 44% तक जिम्मेदार है।
पराली यानी फसल काटने के बाद बचा बाकी हिस्सा होता है, जिसकी जड़ें धरती में होती हैं। अगली फसल बोने के लिए खेत खाली करना होता है, तो सूखी पराली को आग लगा दी जाती है। इस पूरी प्रक्रिया में बहुत ज्यादा मात्रा में कार्बन निकलता है और पर्यावरण को नुकसान होता है। कुछ महीनों की रिसर्च के बाद 2020 में तरुण ने अपने भाई और पिता के साथ मिलकर ‘ग्रीनजैम्स’ नाम से स्टार्टअप शुरू किया, जिसका मकसद एग्रोक्रीट यानी ईको- फ्रेंडली बिल्डिंग मटेरियल तैयार करना है।
क्या होती है कार्बन नेगेटिव ईंट?
ईको फ्रेंडली या एग्रोक्रीट ईंट बनाने की लिए पराली का इस्तेमाल किया जाता है। तरुण बताते हैं, “हर सीजन में फसल काटने के बाद पराली बच जाती है। इसको हमारी टीम किसानों से खरीदती है। इसके छोटे-छोटे टुकड़े किये जाते हैं और गरम पानी में उबला जाता है। उबली हुई पराली को थर्मल पावर से निकलने वाली राख और बाइंडर (जो सीमेंट की तरह ही काम करता है और ये इको फ्रेंडली होता है) के साथ मिलाकर कार्बन नेगेटिव या एग्रोक्रीट ईंटे तैयार करते हैं।” इस पूरी प्रक्रिया में सबसे ज्यादा पराली का इस्तेमाल होता है। इस स्टार्टअप की वजह से किसान पराली को जलाने के बजाय तरुण की कंपनी को बेच देते हैं। “अब तक हमने 20-25 किसानों के साथ टाई अप किया है, जो फसल काटने के बाद पराली जलाने के बजाय हमें बेच देते हैं। हर एक एकड़ पराली के लिए किसानों को तीन हजार रुपये दिए जाते हैं।” एग्रोक्रीट ईंट किसान और पर्यावरण दोनों के लिए फायदेमंद साबित हो रही है।
भट्ठे वाली ईंट से बेहतर
तरुण बताते हैं कार्बन नेगेटिव ईंटें बनाने से सबसे ज्यादा फायदा पर्यावरण को होता है। इन ईंटों को बनाने में पराली का इस्तेमाल होता है, जिसे पहले जला दिया जाता था और उसकी वजह से पर्यावरण में कार्बन की मात्रा और ज्यादा बढ़ती है।तरुण बताते हैं, “भट्ठे वाली ईंटों की तुलना में ये कार्बन निगेटिव ईंटें बहुत मजबूत होती हैं । ये ऐसी ईंटें हैं जिससे बनाने वाली बिल्डिंग गर्मी में न ज्यादा गरम होगी और न ही ठंड में ज्यादा ठंडी। भट्ठे वाली ईंट की तुलना में इसको बनाने में 50% कम लागत और 60% कम समय लगता है। कार्बन नेगेटिव ईंटों से बनाने वाली इमारत या मकान में सीमेंट का इस्तेमाल भी 60% तक कम होता है। ऐसे ही कई खूबियां के कारण ये भट्ठे वाली ईंटों से कहीं ज्यादा बेहतर हैं।” तरुण बताते हैं, “ ‘ग्रीनजैम्स’ में तकरीबन 10 स्थायी कर्मचारी हैं जो साल भर काम करेंगे। इसके अलावा हमें सीजनल एम्प्लॉई की भी जरूरत होती है, जो फसल काटने के समय काम करते हैं। हमारे स्टार्टअप से किसानों को भी रोजगार मिल रहा है। अब तक हमने 20-25 किसानों के साथ टाई-अप कर लिया है, जबकि तकरीबन 100 से अधिक किसानों से अगले सीजन में काम करने के लिए बात हो गयी है।” तरुण का कहना है कि आने वाले समय में कई लोगों को खास कर किसानों को इस काम से फायदा होगा।
(साभार – दैनिक भास्कर)