मृत्यु उपरांत का उत्सव है पितर पक्ष
अंतर्मन की इंद्रियों की संवेदना है
पीढ़ी से जुड़ी संस्कृति की सीढ़ी है
माता – पिता से मिले संस्कार हैं
पूर्वजों का आशीर्वाद है
समय के पहिए में
अटके दर्द भरे चित्रों की रील है
घर के किसी भी सदस्य का
मृत्यु की गोद में समा जाना
आँखों का शाश्वत सत्य है
हर व्यक्ति की मृत्यु तिथि है
हर वर्ष करते हैं हम उन्हें याद
घर से बिछुड़ी सभी पीढ़ियों का कर तर्पण
पितरों की पूजा करते हैं
जल और भोजन का भोग परोस
सूक्ष्म आत्मा की शान्ति की करते हैं प्रार्थना
दर्द के उन लम्हों में
श्रद्धा और भक्ति से जुड़ते जाते
गंगा जल की पावन लहरों में
तिल – जल से संकल्पित हो
उसे बहाते जाते
पुनः स्मृति में लाकर
मुक्ति कामना में रत हो जाते
अपने राग – रंग- रस – गंध – मोह – तृष्णा को
हर वर्ष हम तिरोहित करते जाते
जीवन दर्शन और अध्यात्म की रस धारा में
संस्कृति- संस्कारों की बहती नदिया में
तन-मन की उलझनों को संतुलित करते जाते
जीवन जीने की कला को निखारते जाते