सभी सखियों को नमस्कार। साथ ही आप सभी को रक्षाबंधन की शुभकामनाएँ। सखियों, रक्षाबंधन भाई
-बहन के बीच स्नेह और सौहार्द्र के त्योहार के रूप में मनाया जाता है। यह भी माना जाता है कि बहनें भाई की
कलाई पर राखी बांधती हैं और बदले में भाई अपनी बहनों की हर संकट से रक्षा करते हैं। संभवतः इसी
कारण राखी को रक्षासूत्र भी कहा जाता है। राखी के साथ जितनी भी पौराणिक- ऐतिहासिक कथाएँ जुड़ी हुई
हैं, उन सब में ही भाई द्वारा बहन की रक्षा या उसे सुरक्षा प्रदान करने की बात पर ही बल दिया गया है। वह
चाहे महाभारत की कथा हो जिसमें कृष्ण द्रौपदी की रक्षा करते हैं या रानी कर्णावती द्वारा हुमायूं को राखी
भेजने की इतिहास प्रसिद्ध घटना। इन कथाओं के विस्तार में जाएं तो पता चलेगा कि कृष्ण द्रौपदी का संबंध
तो सख्य का था लेकिन कृष्ण ने अपनी कृष्णा की सहायता या रक्षा उस समय की थी जब वह बलवान पतियों
और भरे- पूरे परिवार जनों की उपस्थिति के बावजूद संकटग्रस्त थी। उसी तरह रानी कर्णावती और हुमायूं के
बीच भी भाई -बहन का संबंध नहीं था लेकिन रानी ने शत्रु ( गुजरात के शासक बहादुर शाह) के आक्रमण से
स्वयं और अपने राज्य को बचाने के लिए हुमायूं के पास राखी भेजकर सहायता मांगी थी। यह बात और है कि
हुमायूं के पहुंचने तक कर्णावती तेरह हजार रानियों के साथ जौहर करके ख़ाक में मिल चुकी थीं। लेकिन फिर
भी हुमायूं ने एक भाई का कर्तव्य निभाया और चित्तौड़ को बहादुर शाह के हाथों से बचाकर कर्णावती के बड़े
पुत्र का राज्याभिषेक किया। एक और प्रसंग सिकंदर और पोरस का भी कहा- सुना जाता है। जब सिकंदर
और पोरस का युद्ध छिड़ा था उस समय सिकंदर की पत्नी ने पोरस की वीरता के किस्से सुनकर उनसे
सिकंदर को बचाने के लिए पोरस को राखी भेजी थी। कहा जाता है कि उन राखी के धागों में बंधकर पोरस
सिकंदर पर वार न कर पाएं और उनके हाथों बंदी बना लिए गये। यह बात और है कि पोरस की बहादुरी और
निडरता से प्रभावित होकर सिकंदर ने भी उनके साथ एक उदार राजा की तरह व्यवहार किया और उनका
राज्य उन्हें वापस लौटा दिया। एक कथा यह भी मिलती है कि इन्द्राणी अर्थात शचि ने देवासुर संग्राम के समय
असुरों से इन्द्र तथा देवताओं की रक्षा के लिए गुरु बृहस्पति की सलाह पर श्रावणी पूर्णिमा के दिन मंत्रसिद्ध
रक्षावकच या राखी इन्द्र की कलाई पर बांधी थी। इन कथाओं को यहां उद्धृत करने का कारण यह है कि
राखी सिर्फ भाई- बहन के बीच का त्योहार ही नहीं है। वह किसी भी रिश्ते के बीच शुभेच्छाओं या कल्याण
-कामना का प्रतीक है। रक्तसंबंध ही इस रिश्ते का आधार नहीं होता बल्कि परस्पर प्रेम और विश्वास इस
रिश्ते की बुनियाद होती है। तभी तो मशहूर शायर मुनव्वर राणा लिखते हैं-
“हमारे और उसके बीच इक धागे का रिश्ता है
हमें लेकिन हमेशा वो सगा भाई समझती है।”
उस दौर को भी याद कीजिए जब श्रावणी पूर्णिमा के दिन ब्राह्मण अपने यजमानों की कलाई पर रक्षासूत्र
बांधकर उनकी कल्याण- कामना किया करते थे और यजमान दक्षिणा देकर उनका आशीर्वाद ग्रहण करते
थे। इस रिवाज का उल्लेख बहुत से किस्से कहानियों में भी मिलता है। मोहसिन काकोरवी का यह शेर
देखिए-
“राखियाँ ले के सिलोनों की बरहमन निकलें
तार बारिश का तो टूटे कोई साअत कोई पल।”