
वो पहली मुलाक़ात
आज भी याद है मुझे
अजनबी थे हम दोनों
एक दूसरे के लिए
फिर भी हमारी
पहली मुलाक़ात हुईं।
बहुत लम्बा सफर था
जो तय किया था हमने
सोशल मीडिया पर हुईं
उस पहली बात से लेकर
पहली मुलाक़ात तक का।
दूरियाँ तो बहुत थी हमारे बीच
पर उन दूरियों को कम किया
उस पहली मुलाक़ात ने,
बढ़ा दी थीं मेरी धड़कनें
मैं कल्पनाओं के जाल से
हकीकत में आ रही थी
वो पहली बार था,
ज़ब आमने सामने थे हम
चुप मैं भी थे
नजरें मेरी झुकी थी तो
पलके तुम भी नहीं उठा पाए थे
बस चुप चाप बेचैन दिलों की
धड़कनें महसूस कर रहे थे हम
तुम्हारें अंदर के उमड़तें
हर जज़्बात को
समझ रहे थे हम, यूं कहें कि
इश्क़ को नजदीक से
समझ रहे थे हम
तुम्हारी हर बातों को धीरे से
दिल में बसा रहे थे हम।।
*कुछ परेशान सी हो रही थी मैं
लग रहा था जैसे ये कोई ख्वाब था,
क्या कहूंगी तुमसे और
ना जाने क्या- क्या बातें होंगी
डर भी था एक, कि क्या कभी
फिर मुलाक़ात होंगी या पहली
मुलाक़ात बस आखरी होंगी,
पर जो भी होगा, जैसे भी होगा
मेरी जिंदगी के एक पन्ने पर तेरा
जिक्र होगा, लिखूंगी तुझपर
लिखती ही रहूँगी, सालो बाद
ज़ब हम साथ होंगे……
इन लम्हों को याद कर होठों
पर हसीं और आँखों में नमी होंगी।
शाम के 6 बज बज रहे थे
दिसंबर की सर्दी
और ब्रिज के ऊपर हमदोनों
और साथ ही साथ तुम्हारी प्यारी बातें
बातों ही बातों में
वो लम्हा गुजर गया था
ऐसा लगता था जैसे,
बहुत कुछ रह गया था।
उस पहली मुलाक़ात का
हर पल बेहद ख़ास था
हाय!
वह पहली मुलाक़ात जिसमें
अलग सी बात थी,
झिझकती नज़रें और
काँपते हुए हाथ
धड़कनोंं की बढ़ रही थी रफ़्तार
फिर भी ये नज़रें देखने के लिए
उनको हो रही थे बेक़रार
यूं तो कुछ पल ही साथ थे हम
पर उस पल से
आज हर पल साथ है हम
मेरी पहली मुलाक़ात !