मुम्बई: चंद्रपुर के बंगाली कैंप झोपडपट्टी में रहनेवाली बांबू डिजाइनर और महिला सक्षमीकरण कार्यकर्ता मीनाक्षी मुकेश वालके की बांबू राखियां देशभर में लोकप्रिय हो चुकी है
बांबू की पूर्णतया इको फ्रेंडली ऐसी बांबू राखियों में प्लास्टिक का तनिक भी अंश न होना यह मीनाक्षी वालके की विशेषता है और राखियों को सजाने वे खादी धागे के साथ तुलसी मणी एवम् रुद्राक्ष का प्रयोग करती है। मुख्य रूप से प्लास्टिक का प्रयोग न्यूनतम हो इस दिशा में चलता है।
मीनाक्षी ने बताया कि इस वर्ष उन्होंने 50 हजार राखियों का लक्ष्य रखा है. विदेशों से मांग बढ़ने के बाद अब स्थानीय स्तर से भी पूछ परख बरबस ही बढ़ गयी है। लॉक डाउन से मीनाक्षी व उनकी सहयोगी महिलाओं पर भुखमरी ही नहीं, कर्ज की नौबत आई है. ऐसे में अब राखी ने उन्हें नव संजीवनी देकर उम्मीदें काफी बढ़ा दी है.
इको फ्रेंडली फ्रेंडशिप बैंड वैसे उपलब्ध या प्रचलित नहीं था। मुख्य रूप से धातू, प्लास्टिक के ही स्वरूप में वह अधिकांश उपलब्ध है. मीनाक्षी ने इसी वर्ष जून माह में बांबू के फ्रेंडशिप बैंड बनाने का आविष्कार किया. इसके माध्यम से भी स्वदेशी, पर्यावरण से मित्रता ऐसा संदेश दिया जा रहा है। उल्लेखनीय है कि आज तक बांबू के फ्रेंडशिप बैंड उपलब्ध व लोकप्रिय नहीं थे।