ख़ूब लड़ी मर्दानी वह तो झांसी वाली रानी थी
झांसी की रानी लक्ष्मीबाई को याद करते हुए अनेकों बार ये पंक्तियां पढ़ी गयीं। कवयित्री सुभद्राकुमारी चौहान की लिखी कविता में देश की उस वीरांगना के लिए ओज था, करूण था, स्मृति थी और श्रद्धा भी। इसी एक कविता से उन्हें हिंदी कविता में प्रसिद्धि मिली और वह साहित्य में अमर हो गयीं।
उनका लिखा यह काव्य सिर्फ़ कागज़ी नहीं था, जिस जज़्बे को उन्होंने कागज़ पर उतारा उसे जिया भी। इसका प्रमाण है कि सुभद्रा कुमारी चौहान महात्मा गांधी के असहयोग आंदोलन में भाग लेने वाली प्रथम महिला थीं और कई दफ़ा जेल भी गयीं। सुभद्राकुमारी चौहान का जन्म 16 अगस्त 1904 को इलाहाबाद के पास निहालपुर में हुआ था। पिता रामनाथ सिंह ज़मींदार थे लेकिन पढ़ाई को लेकर जागरूक भी थे। अपनी प्रतिभा को दिखाते हुए सुभद्रा ने भी बचपन से ही कविता कहना शुरू कर दिया था। पहली कविता 9 साल की उम्र में छपी जिसे उन्होंने एक नीम के पेड़ पर ही लिख दिया था।
आ रही हिमालय से पुकार
है उदधि गरजता बार बार
प्राची पश्चिम भू नभ अपार;
सब पूछ रहें हैं दिग-दिगन्त
वीरों का कैसा हो वसंत
यह भाव सिर्फ़ उनके काव्य में ही सिंचित नहीं है। जब गांधी जी समूचे देश में अपने आंदोलन को लेकर आह्वान कर रहे थे तब सुभद्रा ने भी अपनी भागीदारी दर्ज करवायी। ज़ाहिर है कि वह एक राष्ट्रवादी कवयित्री ही नहीं एक देशभक्त महिला भी थीं। ‘जलियां वाले बाग में वसंत’ में उन्होंने लिखा-
परिमलहीन पराग दाग-सा बना पड़ा है
हा ! यह प्यारा बाग खून से सना पड़ा है।
आओ प्रिय ऋतुराज? किंतु धीरे से आना
यह है शोक-स्थान यहाँ मत शोर मचाना।
कोमल बालक मरे यहाँ गोली खा-खाकर
कलियाँ उनके लिए गिराना थोड़ी लाकर।
सुभद्रा का विवाह लक्ष्मण सिंह के साथ तय हुआ था। लक्ष्मण सिंह एक नाटककार थे और उन्होंने अपनी पत्नी की प्रतिभा को आगे बढ़ने में सदैव उनका सहयोग किया। दोनों ने मिलकर कांग्रेस के लिए काम किया। सुभद्रा महिलाओं के बीच जाकर उन्हें स्वदेशी अपनाने व तमाम संकीर्णताएं छोड़ने के लिए प्रेरित करती थीं। अपनी गृहस्थी को संभालते हुए वह साहित्य और समाज की सेवा करती थीं। 44 साल की अल्पायु में भी उन्होंने विपुल सृजन किया। उन्होंने तीन कहानी संग्रह लिखे जिनमें बिखरे मोती, उन्मादिनी और सीधे साधे चित्र शामिल हैं। कविता संग्रह में मुकुल, त्रिधारा आदि शामिल हैं। उनकी बेटी सुधा चौहान का विवाह प्रेमचंद के बेटे अमृतराय से हुआ, उन्होंने अपनी मां की जीवनी लिखी जिसका नाम ‘मिले तेज से तेज’ है। 16 अगस्त, 1904 को जन्मी सुभद्राकुमारी चौहान का देहांत 15 फरवरी, 1948 को 44 वर्ष की आयु में ही हो गया। वह अपनी मृत्यु के बारे में कहती थीं कि “मेरे मन में तो मरने के बाद भी धरती छोड़ने की कल्पना नहीं है । मैं चाहती हूँ, मेरी एक समाधि हो, जिसके चारों और नित्य मेला लगता रहे, बच्चे खेलते रहें, स्त्रियां गाती रहें ओर कोलाहल होता रहे।”