वीडियो कॉल से सीखकर शुरू किये 4 साल से बंद पड़े आईसीयू के 4 वेंटिलेटर

7 मरीजों की जान बचाई, बिहार सरकार ने भी मॉडल को सराहा
औरंगाबाद : मेडिकल स्टाफ ने कम संसाधनों के बावजूद वीडियो कॉल पर दिल्ली एम्स से तकनीक सीखी और चार साल से बंद पड़े के आईसीयू चार वेंटिलेटर को फिर से शुरू कर दिया। बिहार में औरंगाबाद प्रशासन और सदर अस्पताल के कर्मचारियों ने अपनी सूझबूझ से कबाड़ बन चुके वेंटिलेटर को फिर से चालू कर दिया। इससे अब तक 7 मरीजों की जान भी बचाई जा चुकी है। बताया जाता है कि एक डॉक्टर और कुछ नर्सों ने कम संसाधनों के बावजूद वीडियो कॉल पर दिल्ली एम्स से तकनीक सीखी और चार साल से बंद पड़े एम्स के चार वेंटिलेटर को फिर से शुरू कर दिया। अब इस मॉडल को राज्य सरकार ने भी बेहतर बताया है। साथ ही औरंगाबाद डिस्ट्रिक्ट मजिस्ट्रेट से इससे जुड़ी हर जानकारी दो दिनों के अंदर मांगी है।
वेंटिलेटर पर रखे गए सभी मरीज सुरक्षित
सौरभ जोरवाल ने बताया कि आईसीयू को किन हालत में और कैसे शुरू किया गया? इसके लिए कौन-कौन से उपाय किए गए? इस संबंध में हर एक जानकारी सरकार ने मांगी है। इसे तैयार कर भेजा जा रहा है। आईसीयू के वेंटिलेटर पर रखे गए 7 मरीज पूरी तरह सुरक्षित हैं। इनमें से कई मरीजों का ऑक्सीजन लेवल काफी कम था। पावर ग्रिड कंपनी के सहयोग से सदर अस्पताल में करीब चार साल पहले पौने तीन करोड़ की लागत से आईसीयू का निर्माण हुआ था। बाद में इसके चार वेंटिलेटर कबाड़ बन गए। अधिकांश सामान भी खराब हो गए थे। तारों को चूहों ने कुतर दिया। 2 साल पहले हीट स्ट्रोक से 70 लोगों की जानें गई थीं। तब स्वास्थ्य मंत्री मंगल पांडेय ने अपने दौरे में आईसीयू शुरू कराने की बात कही थी, लेकिन डॉक्टरों और तकनीशियन की कमी के कारण यह हो न सका।
इधर, कोरोना की दूसरी लहर का पीक जिले में 20 अप्रैल से पांच मई तक रहा। इस दौरान सिस्टम के भी कई लोगों की जानें गई। हर रोज कोविड सेंटर से लाशें निकल रही थी। फिर जान बचाने के हर एक बिंदु पर विचार किया गया। तत्काल बंद पड़े आईसीयू का वेंटिलेटर शुरू कराने का विचार आया। इसके एसपी सुधीर कुमार पोरिका, डीडीसी अंशुल कुमार, सिविल सर्जन डॉ. मो. अकरम अली, डीपीएम व कुछ अन्य अधिकारियों के साथ आपात बैठक हुई। इसमें सदर अस्पताल के डॉ. जन्मेजय का नाम सामने आया। तुरंत उन्हें तलब किया गया। अचानक बताया गया कि आपको आईसीयू का इंचार्ज बनाया जाता है। डॉक्टर नौकरी छोड़ने वाले थे, लेकिन डीएम के कहने पर मान गए। इसके बाद सिविल सर्जन, डीपीएम को सहयोग करने की जिम्मेदारी दी गई। डीडीसी को स्पेशल देखरेख के लिए नियुक्त किया गया। इस संबंध में 20 मीटिंग हुई। फिर डीएम ने डब्ल्यूएचओ और दिल्ली एम्स के डॉक्टरों से संपर्क किया। वीडियो कॉल और वर्चुअल तरीके से आईसीयू इंचार्ज डॉक्टर और नर्स को ट्रेनिंग दिलाई। ट्रेनिंग के बाद पांच मॉक ड्रिल हुआ। इसके बाद 10 मई से आईसीयू शुरू कर दिया गया। अभी भी चार कोविड मरीजों को भर्ती किया गया है, जिनकी हालत खतरे से बाहर है।

दिल्ली तक के अधिकारियों ने मीटिंग कर मॉडल समझा
इस मॉडल को समझने के लिए केंद्रीय स्वास्थ्य विभाग के नेशनल कोऑर्डिनेटर अजीत सिंह, दिल्ली एम्स और एशिया लेवल के ट्रॉमा एक्सपर्ट डॉ. संजीव कुमार घई, दिल्ली एम्स में कोविड को लीड कर रहे डॉ. तेज प्रकाश ने तीन दिन पहले औरंगाबाद डीएम, डीडीसी, सिविल सर्जन, आईसीयू इंचार्ज समेत करीब 30 डॉक्टरों की वर्चुअल मीटिंग की। अधिकारियों ने पूरे मॉडल को समझा। उन्होंने इस मॉडल को बिहार के साथ देश के अन्य जिलों में लागू कराने की बात कही।

जहां डॉक्टर्स की कमी, वहां इसका इस्तेमाल करेंगे
जानकारी के मुताबिक, यह तकनीक वहां लागू होगी, जहां वेंटिलेंटर तो हैं, लेकिन डॉक्टर्स और टेक्निशियन की कमी है। ऐसे में राज्य और केंद्र सरकार इस मॉडल को लागू कराकर खराब पड़े वेंटिलेटर्स को शुरू कराएगी, जिससे मरीजों की जान बचाई जा सके।

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