एक ही शर्त- दहेज और नशा छोड़ो, तभी बनेगा बांध
एक फसल के लिए भी जहां पानी पूरा नहीं पड़ता था, आज राजस्थान के ऐसे लगभग 13 जिलों की 30 तहसीलों की सूरत बदल गई है। हमने इन जगहों पर रोधी बांध यानी चेक डैम बनाकर यह परेशानी दूर की है। पर हम इसी शर्त पर बांध बनाते हैं, जब गांव वाले दहेज, बाल विवाह, मृत्युभोज जैसी प्रथाओं व तंबाकू और शराब जैसी बुराइयों को हमेशा के लिए छोड़ने की बात मानते हैं।
वर्ष 1998-1999 में जब राजस्थान में सूखा पड़ा था तो राजस्थान मूल के हमारे रुइया उद्योग घराने ने महाराष्ट्र से खाने की सामग्री और पानी के कई टैंक राजस्थान भेजे थे, लेकिन यह स्थायी समाधान नहीं था। पाली के मारवाड़ इलाके में उस साल बारिश की एक बूंद भी नहीं गिरी थी।
वहां की बावड़ी में पानी का स्तर नीचे था, महिलाएं कई सीढ़ियां उतरकर दो-दो घड़ों में पानी भरतीं और 2-4 किमी का फासला तय करतीं। उन्हें देखकर मुझे लगा कि इसका हल बेहद जरूरी है। मैंने पानी के संरक्षण की संरचनाओं पर रिसर्च शुरू की, तभी मैं वाटरमैन राजेंद्र सिंह के संपर्क में आई, जिन्होंने मुझे पानी के संरक्षण और इस्तेमाल के लिए खास संरचनाओं के बारे में बताया। मुझे एक स्थायी समाधान नजर आने लगा। मैं तब 60 साल की उम्र का पड़ाव पार कर चुकी थी। इससे पहली पानी के संरक्षण में कोई तजुर्बा नहीं था। लगभग दो दशक पहले वर्ष 2003 में आकार चैरिटेबल ट्रस्ट की स्थापना की। वर्ष 2005 तक शेखावाटी में पीने के पानी के कुंड बनवाए। वर्ष 2006 में उदयपुर के मुंडावरा से अपने पहले प्रोजेक्ट के लिए प्रोजेक्ट इंजीनियर से बात की। तब चैक डैम बनाने का आइडिया आया, जो खडीन जैसी संरचनाओं से प्रेरित था, जिन्हें हमारे पूर्वज पानी इकट्ठा करने के लिए बनाते थे। हमने दो फैसले लिए।
पहला, हम राजस्थान के ऐसे इलाकों से शुरुआत करेंगे, जहां समतल जमीन हो और आस-पास पहाड़ियां हों, जिससे पहाड़ियों से होते हुए बारिश का पानी इकट्ठा करना मुमकिन हो सके। दूसरा, हम गांव के लोगों को तन, मन, धन से इस प्रोजेक्ट में शामिल करेंगे। इससे अब तक 570 गांवों की किस्मत बदली है, 7 लाख लोगों की जिंदगी आसान हुई है। अब हमारा लक्ष्य हर साल 150 रोधी बांध यानी चैक डैम बनाने का है।
(साभार – दैनिक भास्कर)