Wednesday, April 30, 2025
खबर एवं विज्ञापन हेतु सम्पर्क करें - [email protected]

समय की धूल में दब गयीं बुद्ध को अपनी खीर से जीवन देने वाली सुजाता की कविताएं

प्रो. गीता दूबे

ऐ सखी सुन 17

सभी सखियों को नमस्कार। सखियों इतिहास बड़ा निर्मम होता है, शायद इसीलिए वहाँ किसी का नाम स्वर्णाअक्षरों में अंकित होता है और किसी- किसी का सिर्फ नाम ही दर्ज होता है। किसी को तो इतना भी सौभाग्य नहीं मिलता क्योंकि खुद इतिहास को उसका नाम -पता नहीं पता होता। और कुछ लोगों को समय के साथ भुला दिया जाता है। अब यह गलती इतिहास की है या इतिहासकारों की या फिर जनमानस की स्मृति की, इस पर लोगों की राय भले ही अलग- अलग हो लेकन जब आलोचना का समय आता है तो इतिहास को या फिर इतिहासकारों को अपने पक्षपातपपूर्ण रवैये के लिए प्रायः निंदा का पात्र अवश्य बनना पड़ता है। दरअसल इतिहासकार कई बार सत्तासीन शासक के निर्देश पर या जनरूचि के आधार पर यह तय करता है कि किसके जीवन के पन्ने को अधिक कला कौशल से चित्रित करना है और किसी का उल्लेख मात्र करना है। शायद इसीलिए कई बार महान लोगों की आभा के नीचे कई ऐसे चरित्र दब जाते हैं या फिर समय के साथ भुला दिए जाते हैं जिनका उस महान व्यक्ति के जीवन में महत्वपूर्ण योगदान होता है, जैसे रानी झांसी के शौर्यपूर्ण जीवन की गौरवपूर्ण आभा के पीछे झलकारी बाई का नाम वर्षों तक छिपा रहा। बहुत बाद में लोगों ने उनके बारे में जाना और उनके बलिदान को भी श्रद्धा के साथ याद किया जाने लगा। 

सखियों, आज मैं ऐसी ही एक सखी की कहानी आपके सामने रखने जा रही हूँ जिनकी गौतम बुद्ध के जीवन में उल्लेखनीय भूमिका रही। लेकिन उनके जीवन की कथा को विस्तार से हम नहीं जानते और वह हैं, सुजाता। सुजाता बुद्ध के समय उरुवेला के सैनिक ग्राम में रहती थी। कहा जाता है कि वह अनाथपिण्डिका नामक एक समृद्ध व्यक्ति की पुत्रवधू थी और उनकी दासी का नाम था, पूर्णा। सुजाता ने यह मन्नत मांगी थी कि जब उन्हें पुत्र रत्न की प्राप्ति होगी तो वह अपने गांव के निकट के पीपल के वृक्ष पर रहनेवाले देवता को खीर का प्रसाद चढ़ाएगी। जब उन्हें पुत्र रत्न की प्राप्ति हुई तो अपनी मन्नत पूरी करने के लिए उन्होंने अपनी दासी को उस वृक्ष के आस -पास और नीचे की जगह की सफाई करने के लिए भेजा। संयोग की बात है कि उसी वृक्ष के नीचे सिद्धार्थ तपस्या में लीन थे। चूंकि वह निराहार रहकर साधनारत थे अतः बिना अन्न जल के उनका शरीर  जर्जर हो गया था‌। दासी जब वहाँ पहुंची तो समाधि में लीन कृशा गौतम को देखकर उसने उन्हें वृक्ष देव समझा और यह शुभ समाचार उसने तत्काल सुजाता को दिया। देव के प्रकट होने की बात जानकर सुजाता तुरंत कटोरे में गाय के दूध की खीर लेकर वहाँ पहुंची और बड़े आदर से सिद्धार्थ को खीर अर्पित की और कहा- ‘जैसे मेरी मनोकामना पूरी हुई, उसी तरह आपकी भी हो।’ शारीरिक रूप से दुर्बल  सिद्धार्थ ने खीर पाकर उसे ग्रहण करने का निर्णय लिया। कहा जाता है कि बुद्ध ने पहले सुप्पतित्थ नदी में स्नान किया। उसके बाद उस खीर का सेवन कर अपने 49 दिनों के उपवास को भंग किया। उसी रात को समाधि में लीन सिद्धार्थ को सच्चे ज्ञान का बोध हुआ और उनकी साधना सफल हुई। उसी समय  से वे ‘बुद्ध’ कहलाए और उस वृक्ष का नाम पड़ा, बोधिवृक्ष। 

वर्तमान में  बोधगया से थोड़ी दूर पर एक गाँव है, ‘बकरूर’ जिसे सुजाता का गाँव माना जाता है। वहाँ भ्रमण करने के लिए जाने वाले पर्यटकों को स्थानीय नागरिक  सुजाता के गाँव में जाने की सलाह अवश्य देते हैं। वहाँ सुजाता और उसके बालक की मूर्ति बनी हुई है। उसका घर और‌ उसके सामने बना एक मंदिर भी है, जिसे सुरक्षित रखा गया है, संभवतः पर्यटकीय महत्व के कारण ही। साधारण व्यक्ति सुजाता के बारे में बस इतना भर जानता है कि वह एक ग्वालिन थी और उसने गौतम को खीर खिलाई थी। लेकिन सुजाता और बुद्ध की कथा यहीं समाप्त नहीं हुई। बुद्ध के साथ सुजाता का संपरा बना रहा और कालांतर में बुद्ध के आभामंडल और बौद्ध धर्म से प्रभावित होकर सुजाता ने भी बौद्ध धर्म की दीक्षा ली। माना जाता है कि उन्होंने अपने जीवन की सांध्य वेला में साकेत के पास एक बौद्ध मठ में दीक्षा ली थी। उसकी मृत्यु भी बुद्ध की उपस्थिति में ही वैशाली के पास बने किसी मठ में हुई थी। उनका एक परिचय और भी है कि वह कविता लिखती थी। “थेरीगाथा” में जिन बौद्ध भिक्षुणियों की कविताएं संकलित हैं, उनमें एक महत्वपूर्ण नाम सुजाता का भी है। कवि ध्रुव गुप्त ने मूल पाली से अंग्रेजी में अनूदित उस कविता का हिंदी में भावानुवाद किया है। सुजाता की कविता में उसकी आत्मानुभूतियों की अत्यंत भावप्रवण अभिव्यक्ति  हुई है। वह कविता आपके लिए प्रस्तुत है-

“खूबसूरत, झीने, अनमोल परदों में

चंदन-सी सुगंधित

बहुमूल्य आभूषणों और

पुष्प मालाओं से सजी

घिरी हुई दास-दासियों

दुर्लभ खाद्य और पेय से

मैंने जीवन के सभी सुख

सभी ऐश्वर्य, सभी क्रीड़ाएं देखी

लेकिन जिस दिन मैंने

बुद्ध का अद्भुत प्रकाश देखा

झुक गई उनके चरणों में

और देखते-देखते

मेरा जीवन परिवर्तित हो गया

उनके शब्दों से मैंने जाना

कि क्या होता है धम्म

कैसा होता है वासनारहित होना

इच्छाओं से परे हो जाने में

क्या और कैसा सुख है

और अमरत्व क्या होता है

बस उसी दिन मैंने पा लिया

एक ऐसा जीवन

जो जीवन के दुखों से परे है

और एक ऐसा घर

जिसमें घर है ही नहीं !”

सुजाता जैसी बहुत सी ऐसी स्त्रियाँ हैं जिनके बारे में हम बहुत ज्यादा नहीं जानते लेकिन उनके जीवन की कथा भी हमें जाननी चाहिए और उन पर गर्व भी करना चाहिए। आज के लिए विदा, सखियों। अगले हफ्ते फिर मुलाकात होगी, एक नयी कहानी के साथ।

शुभजिता

शुभजिता की कोशिश समस्याओं के साथ ही उत्कृष्ट सकारात्मक व सृजनात्मक खबरों को साभार संग्रहित कर आगे ले जाना है। अब आप भी शुभजिता में लिख सकते हैं, बस नियमों का ध्यान रखें। चयनित खबरें, आलेख व सृजनात्मक सामग्री इस वेबपत्रिका पर प्रकाशित की जाएगी। अगर आप भी कुछ सकारात्मक कर रहे हैं तो कमेन्ट्स बॉक्स में बताएँ या हमें ई मेल करें। इसके साथ ही प्रकाशित आलेखों के आधार पर किसी भी प्रकार की औषधि, नुस्खे उपयोग में लाने से पूर्व अपने चिकित्सक, सौंदर्य विशेषज्ञ या किसी भी विशेषज्ञ की सलाह अवश्य लें। इसके अतिरिक्त खबरों या ऑफर के आधार पर खरीददारी से पूर्व आप खुद पड़ताल अवश्य करें। इसके साथ ही कमेन्ट्स बॉक्स में टिप्पणी करते समय मर्यादित, संतुलित टिप्पणी ही करें।

शुभजिताhttps://www.shubhjita.com/
शुभजिता की कोशिश समस्याओं के साथ ही उत्कृष्ट सकारात्मक व सृजनात्मक खबरों को साभार संग्रहित कर आगे ले जाना है। अब आप भी शुभजिता में लिख सकते हैं, बस नियमों का ध्यान रखें। चयनित खबरें, आलेख व सृजनात्मक सामग्री इस वेबपत्रिका पर प्रकाशित की जाएगी। अगर आप भी कुछ सकारात्मक कर रहे हैं तो कमेन्ट्स बॉक्स में बताएँ या हमें ई मेल करें। इसके साथ ही प्रकाशित आलेखों के आधार पर किसी भी प्रकार की औषधि, नुस्खे उपयोग में लाने से पूर्व अपने चिकित्सक, सौंदर्य विशेषज्ञ या किसी भी विशेषज्ञ की सलाह अवश्य लें। इसके अतिरिक्त खबरों या ऑफर के आधार पर खरीददारी से पूर्व आप खुद पड़ताल अवश्य करें। इसके साथ ही कमेन्ट्स बॉक्स में टिप्पणी करते समय मर्यादित, संतुलित टिप्पणी ही करें।
Latest news
Related news

1 COMMENT

  1. सखी, सुजाता, आम्रपाली, विमला और भी बहुत सी स्त्रियाँ हैं, जिन्होंने पुरुष-वर्चस्वादी समाज के विरुद्ध जाकर अपने लिए मुक्ति का रास्ता प्रशस्त किया, उनको प्रणाम। आपको भी नमन क्यों कि आप मेहनत और शोध करके ऐसी स्त्रियों के बारे में बताने का महत्वपूर्ण प्रयास कर रही हैं। उनकी कविताओं को साझा करके तत्कालीन समय में स्त्री की स्थिति, नियति और व्यथा को उजागर किया है।हम इन्हें पढ़ते हुए अंदाज़ा लगा सकते हैं कि संघर्ष और दुख से भरे जीवन को जीते हुए अपनी नियति को बदल सकी होंगी

Comments are closed.