गुवाहाटी : देश की जिन महान हस्तियों को पद्मश्री पुरस्कार से सम्मानित किया गया, उनमें मानवाधिकार कार्यकर्ता बीरूबाला रभा का नाम भी शामिल है। बीरूबाला पिछले 15 सालों से महिलाओं के हक की लड़ाई लड़ रही हैं। वे जादू टोने और डायन के नाम पर महिलाओं की हत्या के खिलाफ अभियान चला रही हैं। वे असम के दूर-दराज के गांवों में जाकर महिलाओं के साथ होने वाले अत्याचार के खिलाफ आवाज उठाती हैं। फिलहाल बीरूबाला पद्मश्री पुरस्कार पाकर काफी उत्साहित हैं। वे पद्मश्री पुरस्कार का असली हकदार उन लोगों को मानती हैं जिन्होंने इस अभियान को सफल बनाने में उनका साथ दिया।
असम की बीरूबाला जब 6 साल की थी, तब उनके पिता इस दुनिया से चल बसे। उन्हें मजबूरी में स्कूल छोड़ना पड़ा और वे अपनी मां के साथ खेतों में काम करने लगीं। 15 साल की उम्र में एक किसान से उनकी शादी हुई। वे कपड़ा बुनकर घर का खर्च और अपने तीन बच्चों की जिम्मेदारी उठाने लगीं। 1980 के मध्य में उनके बड़े बेटे को टायफाइड हुआ। वे उसे इलाज के लिए एक नीम-हकीम के पास लेकर गईं। उन्होंने बताया कि यह बच्चा मर जाएगा। लेकिन बच्चे की जान बच गई। तब से बीरूबाला ने नीम हकीम और जादू टोना करने वालों के विरोध में अभियान चलाने की शुरुआत की।
बीरूबाला ने जब ये देखा कि गांवों में महिलाओं को डायन बताकर उनकी हत्या कर दी जाती है, तो उन्होंने महिलाओं का एक समुह बनाया और डायन के नाम पर महिलाओं के साथ होने वाले अत्याचार के खिलाफ आवाज बुलंद की। वे स्कूलों में जाकर बच्चों को डायन प्रथा और जादू टोने से दूर रहने के प्रति जागरूक करती हैं। बीरूबाला अब तक 42 से अधिक महिलाओं की जान बचा चुकी हैं। उनकी कोशिशों के चलते असम की विधानसभा ने “डायन हत्या निषेध” विधेयक पारित किया है। बीरूबाला के अथक प्रयासों से प्रभावित होकर उन्हें 2018 में वुमंस वर्ल्ड समिट फाउंडेशन प्राइज से सम्मानित किया गया था। उन्हें वुमंस वर्ल्ड समिट फाउंडेशन, जिनेवा, स्विट्जरलैंड की ओर से भी सम्मान प्राप्त है।