आरा शहर में होली मिलन समारोह में बाबू कुँवर सिंह आईल रहले . धरमन बाई आ करमन बाई दुनो बहिन के मुजरा शुरू भईल . मुजरा के भाव रहे बीर कुँवर सिंह जी रउआ एइजा बइठल बानी . ई अंगरेज पूरा देश पर अतियाचार करत बाड़ स . रउआ कइसे देखि सकेनी . रऊआ चाहबि तबे इन्हनि के सात समन्दर पार भगावल जा सकेला . उठीं जागीं अउरी इन्हनि के भगावे खातिर ततपर हो जाईं . कुछ त गीत के भाव उत्तेजित करे वाला रहे अउरी कुछ धरमन व करमन बाई लोग के सुर के कमाल रहे कि बाबू कुँवर सिंह भावावेश में आ गईले . भावावेश में आई के ऊ धरमन बाई के हाथ पकड़ि लिहले . अब धरमन बाई बाबू साहेब के गोड़ पर गिर गईली . आज तकले केहू हमार हाथ न पकडले रहे . रउआ हाथ धयिनी त जिनिगी भर के साथ दिहिं . कुँवर सिंह आवाक ! लगले आपन ज्यादा उमिर के दुहाई देबे . कहलनि कि तहरा के बहुत जवान आदमी मिल जइहें . हम त पाकल आम ठहरनि ना जाने कब चू जाइबि . धरमन बाई ना मनलि . जे हाथ पकड़ले बा , उहे हमार मरद होइ . हम मुसलमान हईं ,ये से रउआ बहाना बनावत बानी .ओइजा मौजूद सब लोग धरमन बाई के बात के समर्थन कईल . अब बाबू कुँवर सिंह उहवाँ से लालअबीर लेकर धरमन बाई के माँग भरि दिहले . उपहार में आपन एगो कटार देई के कहले ,
” एकरा के सम्भाल के रखिह . एकरा में आगि बा .”
कहल जाला कि बाबू कुँवर सिंह से उनुका दुई गो लइका भइले स .ई प्रमाणिक जानकारी नइखे . धरमन बाई पर इतिहास मौन बा .टुकड़ा टुकड़ा में जवन जानकारी मिलल बा – ऊ पर्याप्त नइखे . बाकि ई निर्विवाद सच बा कि धरमन बाई के बाबू कुँवर सिंह दिल – ओ – जान से चाहत रहले . ऊ धरमन बाई खाति अपना गाँव जगदीश पुर में धरमन मस्जिद , आरा शहर में धरमन चौक व उनका बहिन के खाति करमन टोला बसवले . बाबू कुँवर सिंह के पूरा परिवार उनका के मानत रहल हा . ऐक बेरी कुँवर सिंह आ उनकरा भाई अमर सिंह में मनमुटाव हो गईल रहे त धरमन बाई उ दुनो जाना के बीच में सेतु बन सुलहा करवली .
जब अंग्रेजन से लड़ाई लागल त धरमन बाई एकदम परछाईं के तरह से बाबू कुँवर के साथे लागि गईली . आपन धन दौलत सब बाबू वीर कुँवर सिंह के दान कई दिहली . जब रीवाँ से कालपी आवत रहे लो त रास्ता में अंग्रेजी सेना से भिड़ंत हो गईल . धरमन बाई सेना के सगंठन आपन हाथ में ले लिहली अउर खुद तोप सेना के संचालन करे लगलि . इनकरा अदम्य साहस के आगे अंग्रेजी सेना के पाँव उखड़ गईल आ उहंवा से अंग्रेजी सेना भाग गईल . लेकिन ए दौरान धरमन बाई भी बहुत बुरी तरह से घायल हो गईली . बाबू कुँवर सिंह उनकर सिर अपना गोदी में रखि लिहले . खून जियादा बहि गईल रहे . धरमन बाई बाबू कुँवर सिंह के कटार वापस कई दिहली आ कहलि –
” देखि लीं , सवाच लीं ! एमे अबो आगि बा .”
अतना कहला के बाद उनकर प्राण पखेरू उड़ गईल .