कॉलेज स्ट्रीट बाजार यानी वर्ण परिचय के सामने यानी कॉलेज स्ट्रीट – महात्मा गाँधी रेड क्रासिंग पर लोहे के घेरे में एक प्रतिमा स्थापित है। आस – पास बैग की दुकानें हैं और किताबों की भी। आपकी भी नजर पड़ी होगी…बहुत से लोग मानते हैं कि बंगाल में नवजागरण के पुरोधा प्रख्यात समाज सुधारक राजा राममोहन राय की प्रतिमा है। प्रतिमा की वेश भूषा और पगड़ी देखकर एकबारगी लोग ऐसा ही मान लेते हैं तो दूसरी ओर स्थानीय दुकानदार बताते हैं कि यह कोलकाता के प्रथम मेयर की प्रतिमा है…यह भी आधा ही सच है। अक्सर आते – जाते प्रतिमा को देखकर कौतुहल जगता और हमने इस बार अपनी यह जिज्ञासा मिटाने की ठान ली…अगर आपमें से बहुत से लोगों की यह जिज्ञासा है तो हम आपको बताते हैं कि इस प्रतिमा के बारे में।
दरअसल, यह प्रतिमा कृष्टदास पाल की है जिनको कृष्ण दास पाल के नाम से भी जाना जाता है। यह अपने समय के प्रख्यात पत्रकार, अच्छे वक्ता, लेखक और राजनेता थे, साथ ही कोलकाता के पहले म्यूनिसिपल कमिश्नर भी। कृष्टो दास पाल का जन्म 1838 में बंगाल के काँसारिपाड़ा में हुआ था। पिता थे ईश्वर चन्द्र पाल जो कोलकाता में एक दुकान में ही काम करते थे। कृष्टो दास की प्रारम्भिक शिक्षा गाँव के स्कूल से हुई। इसके बाद इन्होंने ओरियेंटल सेमिनरी तथा हिन्दू मेट्रोपॉलिटन कॉलेज से आगे की पढ़ाई की। कॉलेज की पढ़ाई के दौरान ही इन्होंने ‘कोलकाता लिटरेरी फ्री डिबेटिंग क्लब’ की स्थापना की। 1856 में डेविड हेयर की स्मृति सभा में इनके लेख ‘दि यंग बंगाल विन्डिक्टेड’ ने सभी को आकर्षित किया।
कृष्णदास की कर्म यात्रा आरम्भ हुई अलीपुर जिला जज कोर्ट में एक अनुवादक के रूप में। 1861 में वे ब्रिटिश इंडियन एसोसिएशन में बतौर सहकारी सचिव जुड़े। यह बंगाल के भू स्वामियों का बोर्ड था। 1879 में इनकी पदोन्नति सचिव के रूप में हुई। कार्य दक्षता के कारण ये सरकारी और सार्वजनिक दोनों ही रूप में काफी लोकप्रिय हुए।
इस बीच 1863 में ‘कृष्टोदास जस्टिस ऑफ द पीस’ निर्वाचित हुए। इसी साल वे कलकत्ता म्यूनिसिपल काउंसिल के कमिश्नर भी मनोनीत हुए। 1872 में वे बंगीय आईन परिषद यानी बंगाल लेजिस्लेटिव काउंसिल के सदस्य बने। 1883 में बंगाल टेनेन्सी बिल को लेकर समस्या होने पर उन्होंने भू स्वामियों का ही साथ दिया। लॉर्ड रिपन ने कृष्टोदास को भारतवर्षीय व्यवस्थापक सभा यानी वायसराय लेजिसलेटिव काउंसिल का का सदस्य नियुक्त किया। 1877 में उनको रायबहादुर और 1878 में सीएलई की उपाधि मिली।
विद्यार्थी जीवन से ही कृष्टोदास मॉर्निंग क्रॉनिकल, सिटिजन, फोनिक्स, पैट्रियट प्रभृति, इंग्लिशमैन, हरकारू से जुड़े थे। 1861 में जब काली प्रसाद सिंह ने हिन्दू पैट्रियट को खरीदा तो उन्होंने कृष्टदास को सम्पादक नियुक्त किया और इस दायित्व को उन्होंने आजीवन निभाया। हिन्दू पैट्रियट में रहते हुए कृष्ट दास ने कलकत्ता मन्थली मैगजीन प्रकाशित किया जो 6 माह तक चली। इस काम में शम्भू चन्द्र मुखोपाध्याय उनकी मदद किया करते थे। जब कानपुर में सेन्ट्रल स्टार शुरू हुआ तो ये कोलकाता संवाददाता भी बने।
ब्रिटिश सरकार का अनुगामी होने पर भी कृष्टदास देश में स्वायत्त शासन का महत्व समझते थे। इलबर्ट बिल के प्रबल समर्थक थे और समाचार पत्रों की स्वाधीनता में विश्वास रखते थे। चाय श्रमिकों के पक्ष में उन्होंने विभिन्न पत्रिकाओं में लेख लिखे और इमिग्रेशन बिल को ‘द स्लेव लॉ ऑफ इंडिया’ बताया। उच्च शिक्षा की संकुचित नीतियों का इन्होंने विरोध किया। 24 जुलाई 1884 को इनका निधन हो गया। इनकी मृत्य पर तब लॉर्ड रिपन ने कहा था कि कृष्ट दास पाल ने जो पाया. अपने परिश्रम से पाया, उनकी बौद्धिक क्षमता उच्च कोटि की थी, और इनके निधन से उन्होंने एक सहयोगी खो दिया है।
उस दौर में जिन भारतीयों के काम को हर तरफ से स्वीकृति मिली, उस सूची में एक अन्यतम भारतीय या बंगाली कृष्णदास पाल (1838-184) थे। आज आप जो भव्य प्रतिमा देख रहे हैं, उसका अनावरण लॉर्ड एल्गिन ने 7 मार्च, 1894 को किया था। यह सफेद पत्थर की प्रतिमा इंग्लैंड में नेल्सन मैकलीन द्वारा बनाई गई थी, जो एक ब्रिटिश मूर्तिकार थे। मूर्ति को बनाने में उस समय चौदह हजार रुपये का खर्च आया, जिसमें एक स्कॉटिश ग्रेनाइट पेडस्टल है। पूरा पैसा कृष्णदास के भारतीय और ब्रिटिश प्रशंसकों को दान से आया था। पाल पहले पत्रकार हैं जिनकी प्रतिमा इस तरह सम्मान के साथ स्थापित की गयी।।
(साभार – बांग्लापीडिया तथा एई समय )