हम सब भारतीय हैं, हिन्दुस्तानी हैं, यह याद रखना ही एकमात्र समाधान हैं…हमारी समस्याओं का

गलतियों से सीखना बहुत जरूरी होता है मगर ऐसा लगता है कि टीआरपी, राजनीति और अपने फायदे के चक्कर में यह बात सब भूलते जा रहे हैं। मानसिक जड़ता ऐसी है कि डिग्री और कलम दोनों पर भारी पड़ रही है। मजहब जब इन्सानियत पर भारी पड़ने लगे तो समझ जाना जानिए कि कहीं न कहीं कुछ गलत हो रहा है। दुर्भाग्य यह है कि नेता तो नेता, साहित्यकार और संवेदनशील माने जाने वाले भी नफरत की आँधी में बहे जा रहे हैं। मुनव्वर साहब ने जिस तरह सिर कलम करने वालों का समर्थन किया है.,..उसे देखकर नाथूराम गोडसे को सही बताने वालों का पक्ष मजबूत हो रहा है जबकि गलत तो दोनों हैं। क्या हो गया है…गंगा – जमुना जैसे जुमले सही मायनों में जुमले ही हैं…मगर दूर – दूर भी इन्सानों की तरह तो रहा ही जा सकता है। लगातार उकसाने वाली हरकतें, चाहें जिधर से भी हों…नुकसान इस देश को ही पहुँचा रही है। ऐसे में अगर आपके आस – पास इस तरह के कट्टरपन्थी हैं तो नागरिक के रूप में आपकी जिम्मेदारी और बढ़ जाती है। तमाम साजिशों को तोड़ने के लिए उस आम आदमी का उठना बहुत जरूरी है क्योंकि उसे शान्ति चाहिए, विकास चाहिए..एक अच्छा भविष्य चाहिए और युद्ध का उन्माद या नफरत की आँधी यह सब नहीं दे सकती। ये आम आदमी ही है जो कट्टरपंथियों के हाथ से इस देश को छुड़ाएगा…सलमान गलत करे तो रहीम को रोकना होगा…राजन गलत करे तो राम को रोकना होगा…देखिए, अपने आस – पास और कदम उठाइए क्योंकि दाँव पर किसी सियासत, धर्म या मजहब का नहीं, आपका भविष्य लगा है। इतिहास गवाह है कि किसी भी युद्ध में किसी नेता या शासक या विरोधियों का कुछ नहीं गया, दाँव पर आम आदमी के घर लगे हैं….खून उसका बहा, घर उसके जले हैं…तो यह बहुत जरूरी है कि अब आम आदमी हस्तक्षेप करे…और अपने घर से उठने वाले गलत हाथों को नीचे गिरा दे….और मजहब के नाम पर सियासत करने वालों की चालों को नाकाम कर दे। रोटी – बेटी का सम्बन्ध हो तो दिल से हो, किसी को उकसाने के लिए या नीचा दिखाने के लिए न हो…जब तक मानसिक तौर पर हम इसे स्वीकार नहीं कर पाते…कम से कम तब तक एक अच्छे पड़ोसी की तरह तो रह ही सकते हैं क्योंकि हर तकलीफ में काम तो सबसे पहले पड़ोसी ही आता है। क्या जरूरत है कि सीता को सलमा या रुकसाना को रीता बनाकर दिखाया जाए. क्या जरूरत है कि कि रवि को रहीम बनाने पर इज्जत मिले या इकबाल को इशान बनना ही पड़े….कोई जरूरत नहीं है। हम जैसे हैं,….वैसे ही स्नेह से एक दूसरे के साथ रह सकते हैं औऱ यह बात कोई और नहीं, आम आदमी ही समझाएगा। भूल जाइए कि आप किस धर्म या मजहब के हैं…बस एक बात याद रखिए कि हम सब भारतीय हैं…हिन्दुस्तानी हैं और यही एकमात्र समाधान हैं…हमारी समस्याओं का।

शुभजिता

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