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– माधवीश्री
अभी हाल में राजधानी के एक रेस्तरां में एक महिला द्वारा कुछ गरीब बच्चों को भोजन करवाने में बाधा पहुंचाने हेतु एक खबर बहुत तेजी से प्रसारित हुई। आज से कुछ साल पहले की बात होती तो मैं रेस्तरां वाले को बहुत कोसती , उस महिला को बहुत धन्यवाद देती उसके कोमल ह्रदय के लिए, बच्चों के प्रति उनके मन में बसी उदारता के लिए पर कुछ सालो में मुझमे कुछ परिवर्तन आये हैं जिसके कारण मेरे सोचने का नज़रिया बहुत कुछ बदल गया है। यह उस बदले हुए सोच का परिणाम है कि मैं यह सोच रही हूँ कि इस एक दिन की दावत से इन बच्चों के जीवन में क्या परिवर्तन आएगा ? आनेवाले दिनों में ये क्या बनेंगे ? आनेवाले दिनों में यह एक दिन की दावत उन्हें क्या बनने के लिए प्रेरित करेगी ? अवश्य ही विवेकानंद , भगत सिंह , मार्क जुबेरबरक , स्टीव जॉब, अब्दुल कलाम ऐसा कुछ बनने के लिए प्रेरित तो नहीं करेगी। अगर हम इन सभी प्रसिद्ध हस्तियों के जीवन में नज़र डाले तो हम पाएंगे कि सभी ने मुश्किलों और तकलीफों का सामना अपने जीवन में किया पर उनसे कभी हार नहीं मानी। डट कर उसका मुकाबला किया और उस पर विजय प्राप्त की। तभी वे हमारे लिए प्रेरणा का स्रोत्र है। उनका जीवन हमें कठनाइयों से लड़ने की राह दिखता है। सपने देखना सीखता है और उस सपने को हासिल करने के लिए काम करना और मजबूत होना सीखता है।
मैं उक्त महिला के हमदर्दी के बारे में सोच रही थी , उसकी इस एक दिन की पार्टी से बच्चे क्या सीखेंगे अपने जीवन में यही कि कोई एक अमीर आएगा उनेह किसी बड़े रेस्तरां ले जायेगा और उनके एक दिन का जीवन धन्य हो जायेगा। आगे चल कर वे भी अपने बच्चों के लिए यही सपने बुनेगे – आश्रित होने के सपने। यह एक खतरनाक स्थिति है। निजामुद्दीन या दिल्ली के कई रेड लाइट सिग्नल पर खड़े हुए ऑटो में बैठे लोगो से हक़ से भीख मंगाते बच्चे मुझे डरा जाते है। भीख मांगना कभी हक़ नहीं हो सकता। तनख्वाह मांगना , मज़दूरी मांगना हक़ हो सकता है। पर इन बच्चों में मैंने भीख को हक़ की तरह मांगते हुए देखा हैं और भीख न मिलने पर वे आपको छूने लगते है या चिकोटी काटने लगते हैं। यह और भी भयानक स्थिति है। क्या मीडिया कभी इस एंगल से सोचेगा?
काश कुछ लोग इन बच्चों को कुछ हुनर सिखाए, साफ- सफाई के फायदे समझाए ,पढाई लिखाई सिखाए , इनमे आत्मविश्वास भरे तो शायद इन बच्चों और इस देश दोनों का कल्याण होगा। किसी को हथेली पर धर कर कुछ नहीं मिलता यह बात इन बच्चों को सिखानी चाहिए। उनके अंदर यह आत्मविश्वास जगना होगा कि तुम गरीब पैदा तो हुए हो पर इसमें तुम्हारी गलती नहीं है , पर अगर गरीब मरे तो इसमें तुम्हारी गलती है। तुम में वह ताक़त है कि तुम अपना कल बदल सकते हो। किसी रेस्तरां में एक दिन का भोजन कर लेने से इन बच्चों का जीवन नहीं बदल सकता न ही इनमे आत्माविश्वास पनप सकता है जो इनको लम्बी रेस का इंसान बनाए। आज जरूरत है हमको अपने नज़रिए को बदलने कि ताकि हम इन बच्चों का भविष्य सच में बदल सके न कि एक दिन की चांदनी फिर अँधेरी रात वाला हाल हो इनका. क्या मीडिया कभी ठहर कर ऐसा सोचेगा?
(लेखिका वरिष्ठ पत्रकार हैं)
nice