इंदौर : हिन्दी के लिए आज भी कई लोग संघर्ष कर रहे हैं। इन्हीं लोगों में से एक डॉ ओम बिल्लौरे हैं, जिन्होंने हिन्दी के लिए 11 साल तक बैंक प्रबंधन से लड़ाई लड़ी है। इस लड़ाई में उन्हें नुकसान भी काफी हुआ है। डॉ बिल्लौरे की पद्दोन्नति रुक गयी। कई बार तबादले हुए लेकिन उन्होंने अंग्रेजी में हस्ताक्षर नहीं किए। डॉ ओम बिल्लौरे भारतीय स्टेट बैंक में नौकरी करते हैं। प्रबंधन चाहता था कि वह सरकारी कागजातों पर अंग्रेजी में हस्ताक्षर करें। इसके लिए बैंक लोगों ने इनसे कई बार कहा भी लेकिन डॉ बिल्लौरे नहीं माने। मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार डॉ ओम बिल्लौरे हरदा नगर स्थित एसबीआई की शाखा में लिपिक के रूप में पदस्थ थे। अपने कार्य के दौरान डॉ ओम बिल्लौरे ने बैंक के अंदरूनी दस्तावेजों पर हिन्दी में हस्ताक्षर किया। बैंक में मौजूद लोगों ने कहा कि आप हस्ताक्षर अंग्रेजी में कीजिए।
डॉ बिल्लौरे नहीं किए हस्ताक्षर
प्रबंधन की बात के आगे वह नहीं झुके और अंग्रेजी में सरकारी दस्तावेजों पर साइन नहीं किए। यह घटना साल 1983 की है। उसके बाद उस पत्रक को भोपाल शाखा में भेजा गया, यहां भी उनके ऊपर अंग्रेजी में हस्ताक्षर के लिए दबाव बनाया गया। लेकिन डॉ ओम बिल्लौरे अपनी बात पर डटे रहे। उन्होंने सीधे तौर अंग्रेजी में हस्ताक्षर से इनकार कर दिया और हिंदी के लिए यहीं से उनकी लड़ाई शुरू हो गई।
माँ के लिए नौकरी कुर्बान
उस सरकारी पत्रक को फिर मुम्बई भेजा गया। वहां भी डॉ ओम बिल्लौरे पर हस्ताक्षर के लिए दबाव बनाया गया। लेकिन डॉ बिल्लौरे वहां भी तैयार नहीं हुए। वहां उन्होंने सीधे शब्दों में कह दिया कि हिन्दी मेरी मां है और मां के लिए नौकरी भी कुर्बान है। अंग्रेजी में हस्ताक्षर नहीं करने की वजह से डॉ ओम बिल्लौरे का प्रमोशन भी रुका रहा है। इसके साथ ही हमेशा उनके तबादले होते रहे। वहीं, पदोन्नति के लिए साक्षात्कार के दौरान भी उन्हें अंग्रेजी में हस्ताक्षर के लिए कहा गया, तो उन्होंने इनकार कर दिया। एक स्थानीय अखबार से उन्होंने बात करते हुए कहा है कि 11 साल की लंबी लड़ाई के बाद 1994 में बैंक प्रबंधन ने हिन्दी में हस्ताक्षर स्वीकार कर लिया। 2009-10 के बाद से बैंकों में अब दोनों तरह के हस्ताक्षर स्वीकार किए जाते हैं। इससे पहले यह नियम था कि बैंक की हर शाखा अपने अधिकारी के हस्ताक्षर एक निर्धारित हस्ताक्षर पत्रक पर करवाकर बैंक मुख्यालय को भेजेगा। डॉ बिल्लौरे ने अपने इस निर्णय को लेकर ‘आधुनिक बैंकिंग में शब्द निर्णय’ नामक एक किताब भी लिखी है।