पिता हमारी जिंदगी में बेहद खास रिश्ता है और इस रिश्ते के खट्टे – मीठे लम्हों को सजाती है डियर डैड। फिल्म समलैंगिकता पर भी बात करती है जो देश ममें फिलहाल स्वीकृत नहीं है मगर बहस का मुद्दा जरूर है। फिल्म की स्क्रीनिंग हाल ही में महानगर में की गयी जिसमें फिल्म की अभिनेत्री एक्वली खन्ना, निर्माता शान व्यास समेत कई अन्य लोगों ने भाग लिया। फिल्म की कहानी बाप – बेटे के इर्द – गिर्द घूमती है और यह उनके घर दिल्ली से मसूरी (उत्तराखंड) के सफर के दौरान अत्प्रत्याशित संशय, अजनबियों के दौरान अपनी कहानी कहती है। फिल्म में 14 साल का बेटा शिवम और उसके 45 साल के पिता स्वामीनाथन हैं और कहानी उन्हीं के रिश्तों को लेकर चलती है।
अगर किसी लड़के को( जो किशोर हो चुका हो) पता चले कि उसका पिता समलैंगिक है तो उसकी क्या मानसिक हालत होगी? इसका जवाब पाने के लिए आप ‘डियर डैड’ फिल्म देख सकते हैं। तमिल फिल्मों के प्रसिद्ध अभिनेता अरविंद स्वामी ने इसमें पिता (नितिन) की भूमिका निभाई है और हिमांशु शर्मा ने शिवम नाम के किशोर।
नितिन शादीशुदा है और एक बच्चे और एक बच्ची का पिता भी पर एक दिन वो तय करता है कि अपनी पत्नी से तलाक लेगा। तलाक के बाद वह अपनी पसंद की जिंदगी जिएगा। इस बात को अपने पिता से शेयर करने के लिए वह अपने बेटे के साथ कार से निकलता है। उसे अपने बेटे शिवम को उसके स्कूल छोड़ने होता है। रास्ते में नितिन अपने माता-पिता के यहां रूकता है और अपने बीमार पिता को अपनी यौनिकता के बारे में बताता है। इस बात को उसका बेटा शिवम भी सुन लेता है। इससे शिवम को मनोवैज्ञानिक धक्का लगता है और पिता से उसकी दूरी बन जाती है। क्या पिता और पुत्र फिर कभी मनोवैज्ञानिक रूप से एक दूसरे को समझ सकेंगे?
अरविंद स्वामी पिछले पंद्रह वर्षों से फिल्मों से अलग रहे है और एक बार फिर वे इस दुनिया में तब लौटे हैं, जब समलैंगिकता को लेकर समाज में बहस हो रही है। उनकी भूमिका प्रभावशाली जरूर है लेकिन पूरी फिल्म बहुत एकाआयामी और धीमी गति से चलती है। कुछ सीन अच्छे जरूर है। खासकर अंतवाला जिसमें नितिन अपने बेटे को स्कूल के गर्ल्स होस्टल में सीढ़ियां चढ़कर अपने गर्लफ्रेंड से अपनी भावनाओं की इजहार करने के लिए उकसाता है। बाकी फिल्म दर्शक को बांधने वाली नहीं है। बीच में एक बंगाली बाबा को भी लाया गया है जो समलैंगिकता को बीमारी मानता है। बाबा जड़ी बूटी से उसका इलाज करने के दावा करता है पर वह भी एक मजाकिया अंश बन कर ही रह गया है। पर हां समलैंगिकता की वकालत करने वालों को ये फिल्म अच्छी लगेगी।
निर्देशक- तनुज भ्रमर
कलाकार- अरविंद स्वामी, अमन उप्पल, हिमांशु शर्मा