इंदौर : कोराेना वार्ड में हर कोई जाने से डरता है। डॉक्टर्स राउंड लेते हैं। मरीज को देखने के बाद दो से तीन मिनट में इलाज लिखकर चले जाते हैं लेकिन नर्स ही होते हैं जो सुनिश्चित करते हैं कि मरीज को लिखा गया इलाज मिल पा रहा है या नहीं। दवाइयां देना, खाना खिलाना, काउंसलिंग करना, कैथेटर, फूड पाइप, वेंटीलेटर आदि का ध्यान रखने का काम नर्स ही करते हैं। यही वे पहली पंक्ति के योद्धा हैं, जो घंटों मरीज के साथ वार्ड में रहते हैं।
1. स्वस्थ हो गए, पर बच्चे की खातिर अलग फ्लैट में रह रहे
36 वर्षीय राम कासवान की एमआर टीबी काेविड अस्पताल में ड्यूटी लगी थी। तभी किसी मरीज के संपर्क में आने से वे भी संक्रमित हो गए। 14 अप्रैल को उनकी सैंपल रिपोर्ट पॉजिटिव आई। 3 मई को डिस्चार्ज हुए। अब घर से दूर फ्लैट में रहते हैं ताकि बच्चे पास नहीं आ सके। वे बताते हैं खाने-पीने का कोई स्वाद नहीं आ रहा है। किसी प्रकार की कोई गंध महसूस नहीं हो रही है। मेरा छह साल का बेटा है। एक ही घर में रहूंगा तो वह मेरे पास आएगा। ऐसे में उसे भी संक्रमण का खतरा रहेगा, इसलिए अब मैं अलग रहता हूं।
2. चेस्ट सेंटर में ड्यूटी के बाद क्वारेंटाइन थे, तभी संक्रमित हुए
रामकुमार शर्मा की चेस्ट सेंटर में 9 से 13 अप्रैल तक ड्यूटी थी। इसके बाद वे क्वारेंटाइन रहे। 18 अप्रैल को लक्षण आने पर उन्होंने जांच के लिए अपना सैंपल भेजा। 25 अप्रैल को उनकी कोरोना की रिपोर्ट पॉजिटिव आई। एमआर टीबी अस्पताल में उनका इलाज किया गया। 10 मई काे उन्हें डिस्चार्ज किया गया। वे बताते हैं पीपीई किट पहनकर ही उन्होंने ड्यूटी की। इसके बाद होटल में खुद को क्वारेंटाइन किया, जहां एक साथी संक्रमित हुआ तो उसके संपर्क में आने से वे भी संक्रमित हो गए।
3. बच्चे के टीकाकरण में संक्रमित हुई, घर में अलग रह रही हैं अब
29 वर्षीय अंकिता दास की एमवायएच में टीकाकरण केंद्र में ड्यूटी लगी थी। उन्होंने एक बच्चे का टीकाकरण किया था। अंकिता को पता चला कि बच्चे की मां ने कोरोना की जांच के लिए सैंपल दिया था। इसके बाद अंकिता ने भी अपनी जांच करवाई। बच्चे की मां की रिपोर्ट तो निगेटिव आई लेकिन अंकिता की रिपोर्ट पॉजिटिव आ गई। एमआर टीबी अस्पताल में इलाज के बाद अब वे पूरी तरह से ठीक हैं। घर पर आइसोलेशन में हैं। खुद के बर्तन अलग कर लिए हैं। खाना भी खुद बना रही हैं, ताकि परिवार सुरक्षित रहे।
4. आईसीयू में हो गया संक्रमण, ठीक होकर अब फिर ड्यूटी पर
24 साल की प्रवीणा मंडीदीप की रहने वाली हैं। बॉम्बे हॉस्पिटल की चौथी मंजिल पर आईसीयू में काम कर रही थीं। तब वह एक संदिग्ध मरीज के संपर्क में आईं। यह शुरुआती दौर था जब इंदौर में कोविड के मरीज मिलना शुरू ही हुए थे। इसके बाद एक अप्रैल को उन्हें सर्दी-जुकाम हुआ। जांच के लिए सैंपल भेजा गया, जिसकी रिपोर्ट 12 अप्रैल को मिली। रिपोर्ट पॉजिटिव आते ही तत्काल भर्ती किया गया। अब वह ठीक हैं। 14 दिन का क्वारेंटाइन पीरियड भी पूरा हो चुका है। वह फिर से ड्यूटी करने को पूरी तरह तैयार हैं।
5. सर्जरी वार्ड में मरीज के संपर्क में आई, संक्रमण पता ही नहीं चला
आरती नाहक गर्भवती हैं। एमवायएच के सर्जरी वार्ड में ड्यूटी के दौरान संक्रमित हुई थीं। पहले सामान्य वार्ड में स्टाफ मास्क व ग्लव्स पहनकर ही काम करता था। संक्रमण के मामले बढ़ने के बाद सभी को किट दिए गए। जब 11 अप्रैल को आरती की तबीयत खराब हुई तो वह 12 अप्रैल को एमवायएच की ओपीडी में जांच करवाने गईं। 17 अप्रैल को सैंपल दिया। 10 दिन बाद 26 अप्रैल को कॉल आया कि रिपोर्ट पॉजिटिव आई है। उन्हें एमआर टीबी अस्पताल में भर्ती किया गया। डिस्चार्ज होकर 10 मई को वह अपने घर लौट आई हैं।
6. मरीज का एक्स-रे किया, तब पता लगा कोरोना हो सकता है
जैफरीन बॉम्बे हॉस्पिटल में स्टाफ नर्स हैं। अप्रैल के पहले सप्ताह में उनकी ड्यूटी आईसीयू में थी। वहां एक मरीज मेडिकल ऑफिसर से जांच करवाने पहुंचा। इसके बाद मरीज को ज्यादा परेशानी हुई। आईसीयू में शिफ्ट किया गया। सीपीआर दिया गया। एक्स-रे करवाया तब उसमें सफेद पैचेज नजर आए। मरीज को दूसरे अस्पताल शिफ्ट किया गया। तीन दिन बाद नर्स को गले में दर्द शुरू हुआ। सैंपल दिया तो रिपोर्ट पॉजिटिव आई। 29 अप्रैल को डिस्चार्ज किया गया। दो दिन बाद क्वारेंटाइन पीरियड भी पूरा हो जाएगा।
7. रेसीडेंट डॉक्टर के साथ ओटी में काम किया, तभी संक्रमित हुई
आरती बरफा की ड्यूटी गायनिक ओटी में थी, जहां एक रेसीडेंट डॉक्टर पॉजिटिव आ चुकी थी। उसके बाद उन्हें लगा कि उन्हें भी जांच करवाना चाहिए तो 2 अप्रैल को ओपीडी में गई। वहां कहा गया कि लक्षण होंगे, तभी सैंपल लिए जाएंगे। जुकाम की शिकायत हुई तो 9 अप्रैल को सैंपल लिया। 13 अप्रैल को रिपोर्ट पॉजिटिव आ गई। अरबिंदो अस्पताल शिफ्ट करवाया गया। अब 20 दिन बाद 2 मई को डिस्चार्ज किया गया। अब घर में अकेली आइसोलेशन में रह रही हैं। देखरेख के लिए बहन साथ ही रहती है।
8. शुरुआत में पीपीई किट नहीं मिली, इसीलिए संक्रमित हो गए
जितेंद्र वाल्मीकि की ड्यूटी चेस्ट सेंटर में थी। उन्होंने भी 13 अप्रैल तक ड्यूटी की। फिर उन्हें क्वारेंटाइन किया। 18 अप्रैल को बीमारी के लक्षण सामने आए। हल्का बुखार आया। जांच के लिए सैंपल दिया जिसकी रिपोर्ट 25 अप्रैल को मिली। वे बताते हैं कि शुरू में पीपीई किट की उपलब्धता ज्यादा नहीं थी। इसलिए ज्यादातर स्टाफ एचआईवी किट पहनकर ही काम करता था। वे कहते हैं यह बताना भी मुश्किल है कि किस मरीज के संपर्क में आने के कारण हम भी संक्रमित हो गए।
9. आईसीयू में पॉजिटिव मरीज से संपर्क, उसी से मिला कोरोना
वर्षा धाकड़ बॉम्बे हॉस्पिटल में कार्यरत हैं। आईसीयू में मरीज को इंट्रा-गेट लगाने सहित सारे काम किए। वर्षा ने किट भी पहनी थी, लेकिन बाद में पता लगा वह मरीज कोरोना पॉजिटिव है। 11 अप्रैल को वह मरीज के संपर्क में आई थीं। उसके बाद बुखार और बॉडी पेन हुआ। अस्पताल प्रबंधन ने जांच के लिए सैंपल भेजा। रिपोर्ट पॉजिटिव आ गई। 25 अप्रैल को अस्पताल से डिस्चार्ज किया गया। इसके बाद उन्हें 14 दिन क्वारेंटाइन किया गया। सोमवार को ही यह अवधि पूरी हुई। अब वे फिर से ड्यूटी करने के लिए तैयार हैं।
(साभार – दैनिक भास्कर)