अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस के उपलक्ष्य में नारीवाद के विविध परिप्रेक्ष्य पर विशेष व्याख्यान
कोलकाता : अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस के उपलक्ष्य में महात्मा गांधी अंतरराष्ट्रीय हिंदी विश्वविद्यालय, वर्धा के क्षेत्रीय केंद्र, कोलकाता में ‘नारीवाद : विविध परिप्रेक्ष्य’ विषय पर एक विशेष व्याख्यान का आयोजन किया गया। सावित्रीबाई फूले सभा-कक्ष में संपन्न इस अकादमिक कार्यक्रम की मुख्य वक्ता थीं, भारतीय सामाजिक अनुसंधान परिषद, कोलकाता केंद्र में जेंडर स्टडीज़ की सहायक प्रोफेसर डॉ आशा सिंह। आरंभ में हिंदी विश्वविद्यालय कोलकाता केंद्र के प्रभारी डॉ सुनील कुमार ‘सुमन’ ने आमंत्रित वक्ता का चरखा प्रतीक-चिह्न देकर स्वागत किया। डॉ सुनील ने महिला दिवस के इतिहास और उसके महत्व पर प्रकाश डालते हुए विषय प्रवर्तन किया। उन्होंने कहा कि भारत में जब नारीवाद की बात होगी तो इसमें जाति, धर्म, वर्ग और नस्ल आधारित भेदभाव को भी ध्यान में रखना होगा।
डॉ. आशा सिंह ने अपनी बात रखते हुए कहा कि जेंडर समानता केवल मानसिक बदलाव से नहीं आ सकती, इसके लिए ठोस सामाजिक-आर्थिक पहल और परिवर्तनों की जरूरत है। आर्थिक असमानता जेंडर असमानता का सबसे बड़ा कारण है। इसके लिए संरचनामक बदलाव जरूरी है। राज्य की भूमिका इसमें महत्वपूर्ण है। यह केवल स्त्री-पुरुष संबंध या परिवार से जुड़ा मामला नहीं है। उन्होंने कहा कि ब्राह्मणवादी और नवउदारवादी ताकतों ने पितृसत्ता को इतना मजबूत बनाया है कि उसकी वजह से संरचनात्मक बदलाव नहीं हो पा रहे हैं और गैर-बराबरी की स्थितियाँ अभी भी बनी हुई हैं। डॉ आशा सिंह ने नारीवाद के सैद्धांतिक पक्षों पर विस्तार से बात करते हुए यह बताया कि भारत में नारीवाद, ज्ञान के एक अनुशासन के रूप में कैसे स्थापित हुआ, अलग-अलग विश्वविद्यालयों में जो स्त्री अध्ययन केंद्र खुले हैं, वहाँ शोध-अध्ययन के क्षेत्र में पिछले सालों में कितना और क्या-क्या काम हुआ है, अलग-अलग दशकों में महिलाओं से संबंधित मुद्दे क्या-क्या रहे हैं, जिन पर रिसर्च हुए हैं और किताबें लिखी गई हैं, कौन-कौन से प्रमुख महिला आंदोलन हुए हैं और उनकी परिणति ज्ञान के संसार में किस प्रकार हुई है तथा कानूनी रूप से वे कितने प्रभावी रहे हैं आदि तमाम पहलुओं पर गहराई से अपने बात रखी। उन्होंने स्त्री अध्ययन के राजनीतिक पक्ष को भी रेखांकित किया। महिलाओं के रोजगार के सवाल को डॉ सिंह ने बेहद महत्वपूर्ण बताते हुए कहा कि जन शिक्षा के अभाव और गुणवत्तापूर्ण शिक्षा की कमी से सिकुड़ते रोजगार के अवसर के चलते महिलाओं की स्थिति और बदतर होती जा रही है। सरकारी महिला कल्याण की योजनाओं का मंद पड़ना, योजनाओं का सही तरीके से लागू न होना और महिला कल्याण कार्यक्रमों का महज सरकारी इवेंट बनकर रह जाना, जेंडर समानता की राह में बाधक बनते रहे हैं। इस आयोजन में केंद्र के विद्यार्थी नैना प्रसाद, काजल शर्मा और विवेक साव ने अपनी सुंदर काव्य-प्रस्तुतियाँ दीं। अंत में केंद्र के अतिथि अध्यापक डॉ प्रेम बहादुर मांझी ने आभार-ज्ञापन किया।