इस महीने से देश को दो और केन्द्रशासित राज्य मिल गये हैं…मानचित्र बदल रहा है। धारा 370 हटने के बाद कश्मीर को लेकर सरकार और सियासत, दोनों तेज हो गये हैं। सच तो यह है कि बदलाव हम सभी चाहते हैं मगर जल्दबाजी में कोई काम नहीं हो सकता। जाहिर है कि इसके बाद जम्मू – कश्मीर में बहुत कुछ बदलेगा।
31 अक्टूबर 2019 को देश की जन्नत कहे जाने वाले जम्मू-कश्मीर और लद्दाख केंद्र शासित प्रदेश बन गए। सरदार वल्लभ भाई पटेल की जयन्ती पर गुरुवार को जम्मू-कश्मीर पुनर्गठन कानून लागू हो गया। इसके साथ ही दोनों प्रदेशों में कई बड़े बदलाव भी हो गए। ऐसा पहली बार हुआ है, जब किसी राज्य को बांटकर सीधे दो केंद्र शासित प्रदेश का गठन किया गया है। अब तक जम्मू-कश्मीर में राज्यपाल पद था, लेकिन अब दोनों केंद्रशासित प्रदेशों में उपराज्यपाल हो गए।
106 केंद्रीय कानून लागू हो गए दोनों राज्यों में। आधार, आरटीआई, आरटीई कानून लागू हो गए। 153 ऐसे कानून जम्मू-कश्मीर के खत्म हो गए, जिन्हें राज्य के स्तर पर बनाया गया था। 166 पुराने राज्य कानून और राज्यपाल कानून लागू रहेंगे
जम्मू कश्मीर में पाँच साल के लिए मुख्यमंत्री के नेतृत्व में निर्वाचित विधानसभा और मंत्रिपरिषद होगी। लद्दाख का शासन उपराज्यपाल के जरिए सीधे केंद्रीय गृह मंत्रालय द्वारा चलाया जाएगा।
दोनों के पास साझा उच्च न्यायालय होगा। दोनों राज्यों के एडवोकेट जनरल अलग होंगे। लद्दाख अधिकारियों की नियुक्ति के लिए यूपीएससी के दायरे में आएगा।
जम्मू कश्मीर में राजपत्रित सेवाओं के लिए भर्ती एजेंसी के तौर पर लोक सेवा आयोग बना रहेगा। दोनों प्रदेशों के सरकारी कर्मचारियों को सातवें वेतन आयोग की सिफारिशों के अनुसार ही वेतन मिलेंगे।
वरिष्ठ अधिकारियों के सरकारी भवनों और वाहनों में अब तक तिरंगा और जम्मू-कश्मीर का झंडा होगा। अब से केवल राष्ट्रीय ध्वज का उपयोग किया जाएगा। जम्मू-कश्मीर में पहले के मुकाबले विधानसभा का कार्यकाल 6 साल की जगह देश के बाकी हिस्सों की तरह 5 साल का ही होगा।
विधानसभा में अनुसूचित जाति के साथ साथ अब अनुसूचित जनजाति के लिए भी सीटें आरक्षित होंगी। पहले कैबिनेट में 24 मंत्री बनाए जा सकते थे, अब दूसरे राज्यों की तरह कुल सदस्य संख्या के 10% से ज्यादा मंत्री नहीं बनाए जा सकते हैं।
जम्मू कश्मीर विधानसभा में पहले विधान परिषद भी होती थी, वो अब नहीं होगी। हालांकि राज्य से आने वाली लोकसभा और राज्यसभा की सीटों की संख्या पर कोई प्रभाव नहीं पड़ेगा। जम्मू-कश्मीर से पांच और लद्दाख से एक लोकसभा सांसद ही चुन कर आएगा। जम्मू-कश्मीर से पहले की तरह ही राज्यसभा के 4 सांसद ही चुने जाएंगे।
अभी सबका ध्यान कश्मीर पर है और यह एक संवेदनशील मामला है..इतना संवेदनशील कि पूरी दुनिया की नजरें कश्मीर पर हैं…लेकिन यह एक बड़ा कदम है..खासकर सुरक्षा के लिहाज से बेहद सतर्क रहने की जरूरत है। पूरे देश ने कश्मीर को अपना लिया है, अब समय है कि कश्मीर पूरे देश को अपना माने…लोग सामने आयें और पूरे देश के साथ शांति की राह पर चलें मगर इस बीच लद्दाख पर भी पूरा ध्यान देने की जरूरत है।