तेलुगु फिल्म ‘अर्जुन रेड्डी’ की रीमेक शाहिद कपूर-किआरा आडवाणी स्टारर फिल्म ‘कबीर सिंह’ पर बहस छिड़ी हुई है। नारीवादी इसमें एक बिगड़ैल-गुस्सैल व्यक्ति को हीरो बताने की आलोचना कर रहे हैं, तो फिल्म के समर्थन में बोलने वाले भी बहुत हैं। हाल ही रिलीज हुई शाहिद कपूर की फिल्म ‘कबीर सिंह’ की कमाई से ज्यादा चर्चा इसकी कहानी, इसके कंटेंट की हो रही है। समीक्षकों से लेकर दर्शक तक इस मुद्दे पर बंटे हुए हैं कि क्या कबीर सिंह जैसे किरदार को पर्दे पर दिखाना चाहिए? दरअसल कबीर सिंह एक जिद्दी, महिलाओं की बेइज्जती करने वाला, जबरदस्ती करने वाला और नशेड़ी किरदार है। नारीवादियों की चिंता है कि ऐसे किरदार को हीरो की तरह पेश करने और उसका गुणगान करने का समाज पर बुरा असर हो सकता है। तेलुगु फिल्म ‘अर्जुन रेड्डी’ की रीमेक इस फिल्म की समीक्षाओं को भी यूट्यूब पर लाखों व्यूज मिल रहे हैं। फिल्म समीक्षक सुचारिता त्यागी की समीक्षा ‘नॉट अ मूवी रिव्यू’ को 11 लाख बार देखा जा चुका है। वे कहती हैं, ‘क्या ऐसी फिल्म को दो बार बनाने की जरूरत थी।
किसी पुरुष के किसी महिला के लिए सनक की हद तक प्यार की कहानी दिखाना गलत नहीं है, लेकिन ऐसे व्यक्ति को हीरो बनाकर पेश करना कितना सही है। ऐसे किरदार पर सीटियां बज रही हैं, तालियां पिट रही हैं। इससे असहज महसूस होता है। आप एक राक्षस को बेचारा बनाकर पेश कर रहे हैं, जिसका दिल टूटा है।’ सोशल मीडिया पर भी फिल्म के विरोधियों का मानना है कि फिल्म की सफलता बताती है कि औरत से नफरत करने वाले किरदार लोग पसंद कर रहे हैं, यह चिंताजनक है। वहीं सोशल मीडिया पर यह तर्क देने वालों की भी कमी नहीं है कि फिल्म को फिल्म की तरह ही देखना चाहिए, जिसका उद्देश्य केवल मनोरंजन है।
फिल्म के डायरेक्टर संदीप रेड्डी वांगा ने भी इस पर प्रतिक्रिया दी है। उन्होंने एक इंटरव्यू में कहा, ‘मैं जानबूझकर एक असामान्य लव स्टोरी बनाना चाहता था। यह प्यार के कारण एक व्यक्ति की जिंदगी बदलने की कहानी है। मैंने किरदार को ज्यादा से ज्यादा वास्तविक और सरल रखने की कोशिश की है।’ इस रोल को निभाने के लिए शाहिद की भी आलोचना हो रही है। उनके समर्थन में उनकी माँ नीलिमा अज़ीम भी उतर आई हैं। उन्होंने कहा है, ‘ऐसे रोल करने पर हॉलीवुड में ऑस्कर मिलता है।’ वहीं तमाम बहस के बीच 3123 स्क्रीन्स पर रिलीज हुई कबीर सिंह ने 8 दिन में करीब 146 करोड़ रु. कमा लिए हैं। यह इस साल की सबसे ज्यादा कमाई करने वाली फिल्मों में शामिल हो चुकी है। अर्जुन रेड्डी और कबीर सिंह की सफलता के बाद अब इसका तमिल रीमेक ‘आदित्य वर्मा’ भी आ रहा है।
कबीर सिंह में किस बात पर आपत्ति? : फिल्म कबीर सिंह के कई दृश्यों पर आपत्ति जताई जा रही है। शाहिद का यह किरदार हर तरह का नशा करते हुए, गालियां देते हुए, लोगों को पीटते हुए दिखाया गया है। कबीर चाकू की नोक पर एक लड़की को कपड़े उतारने को कहता है, हीरोइन को मारता है, बिना लड़की की इच्छा जाने कॉलेज में घोषणा करता है कि यह उसकी ‘बंदी’ है और कोई उसे नहीं देखेगा, वह हीरोइन पर शादी के लिए दबाव बनाता है। ऐसी हरकतों के बावजूद कबीर को बेचारा बताने की कोशिश की गई हैं। वहीं कबीर की प्रेमिका प्रीति सिक्का, जिसका रोल किआरा आडवाणी ने निभाया है, को कबीर के तमाम बुरे बर्ताव, गुस्से और दबाव के बावजूद उसके सामने झुकने वाला बताया गया है। इस तरह के दृश्यों को मर्दानगी का बुरा स्वरूप और महिलाओं को कमजोर दिखाने वाला माना जा रहा है।
लेकिन कबीर सिंह ने जो किया, पहले भी होता रहा है : शाहरुख खान ने 1993 में आई फिल्म ‘डर’ में पागलपन की हद तक प्यार करने वाले व्यक्ति का किरदार निभाया था। हालांकि किरदार को विलेन की तरह ही पेश किया गया था। 2003 में आई सलमान खान की फिल्म ‘तेरे नाम’ में हीरोइन का किरदार निर्जरा हमेशा हीरो राधे के खौफ में जीता है, लेकिन फिर भी उससे प्यार करता है। 2013 में धनुष और सोनम कपूर की फिल्म में हीरो हीरोइन पर दबाव बनाने के लिए नस काट लेता है, उसका लगातार पीछा करता है, परेशान करता है। बॉलीवुड में ऐसी फिल्मों के सैकड़ों उदाहरण मिल जाएंगे जहां हीरो की तमाम जबरदस्ती और हिंसा के बावजूद हीरोइन को हीरो को पसंद करते हुए दिखाया गया है।
एक दशक में महिलाओं के खिलाफ अपराध 83% बढ़े : नेशनल क्राइम रिकॉर्ड्स ब्यूरो की आखिरी रिपोर्ट 2016 में आई थी। इसके मुताबिक देश में महिलाओं के विरुद्ध हर घंटे 39 अपराध हो रहे हैं। यह संख्या 2007 में 21 थी। पति द्वारा ज्यादती करने के मामले सबसे ज्यादा दर्ज किए गए। एक दशक (2007 से 2017 के बीच) में महिलाओं के विरुद्ध अपराधों में 83 फीसदी की बढ़त आई। 2016 में शादी के लिए अपहरण करने के 33,796 मामले सामने आए। हर महीने 18 मामले एसिड अटैक के दर्ज किए गए। हर हफ्ते महिलाओं को आत्महत्या के लिए उकसाने के 86 मामले दर्ज हुए। यूनाइटेड नेशंस वुमन के आंकड़े बताते हैं कि 29 फीसदी महिलाएं घरेलू हिंसा का शिकार हैं। देश की जेंडर इनइक्वालिटी इंडेक्स में 125वीं और ग्लोबल जेंडर गैप इंडेक्स में 87वीं रैंक है। देश के स्वास्थ्य मंत्रालय द्वारा पिछली साल जारी किए गए नेशनल फैमिली हेल्थ सर्वे के अनुसार पंद्रह वर्ष की उम्र से ही देश की हर तीसरी महिला ने घरेलू हिंसा का सामना किया है। सर्वे में चौंकाने वाला तथ्य यह था कि 40 से 49 वर्ष की 54.4 फीसदी महिलाएं घरेलू हिंसा से सहमत थीं। ये आँकड़े हमारे समाज में महिलाओं की स्थिति बताते हैं। जहां तक अपराध पर फिल्मों के असर की बात है तो फिल्मों से प्रेरित होकर चोरी, हत्या या लूट के मामले अक्सर खबरों में आते रहते हैं। उदाहरण के लिए ‘मुन्नाभाई एमबीबीएस’ फिल्म के बाद मोबाइल से चीटिंग के कई मामले सामने आए थे।
महिलाओं की स्थिति और फिल्मों का प्रभाव बताने वाली तीन रिसर्च : यह बहुत पुरानी बहस है कि क्या फिल्में समाज को प्रभावित करती हैं? देश के पहले प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू ने 1955 में अपने एक भाषण में कहा था कि भारत में फिल्मों का प्रभाव किताबों और अखबारों के कुल प्रभाव से भी ज्यादा है। कबीर सिंह के हिट होने और उसके आपत्तिजनक दृश्यों को पसंद किए जाने से फिल्मों में महिलाओं की स्थिति और उनके समाज पर असर को लेकर चर्चा हो रही है। इनसे जुड़ी तीन रिसर्च –
रिसर्च 1 – महिलाओं की भूमिकाएं कमजोर उनके लिए भाषा भी ठीक नहीं : आईबीएम रिसर्च और ट्रिपलआईटी दिल्ली ने 2018 में पिछले 50 सालों में आईं करीब 4000 हिन्दी फिल्मों का अध्ययन किया। अध्ययन में देखा गया था कि फिल्म की कहानियों के ऑनाइन विवरणों (सिनॉप्सिस) में महिलाओं और पुरुषों का कैसे जिक्र होता है, उनके लिए कैसे शब्दों, विशेषणों और क्रियाओं का इस्तेमाल किया जाता है। अध्ययन में सामने आया कि जहां कहानी में पुरुषों का जिक्र औसतन 30 बार आया, वहीं महिलाओं का जिक्र 15 बार आया। शोधकर्ताओं के मुताबिक यह दर्शाता है कि महिला किरदारों को ज्यादा महत्व नहीं दिया जाता। हीरो के लिए ज्यादातर मजबूत, सफल, ईमानदार जैसे विशेषण और ‘मार दिया’, ‘गोली मार दी’, ‘बचा लिया’, ‘धमकाया’ जैसी क्रियाओं का इस्तेमाल किया गया। वहीं हीरोइन के लिए खूबसूरत, प्यारी, विधवा, आकर्षक, सेक्सी जैसे विशेषण और ‘शादी की’, ‘स्वीकार किया’, ‘शोषण हुआ’, ‘मान गयी’ जैसी क्रियाएं इस्तेमाल की गईं। करीब 60 फीसदी महिला किरदारों को शिक्षक बताया गया, वहीं पुरुष किरदारों के पेशों में ज्यादा विविधता देखी गयी।
रिसर्च 2 – हीरो को धूम्रपान करते देख टीनएजर्स में लत की आशंका 16 गुना : अमेरिका की एजेंसी सेंटर्स फॉर डिसीज कंट्रोल एंड प्रिवेंशन 2002, 2004, 2005 और 2018 में कह चुकी है कि टीनएजर्स में धूम्रपान की लत की बड़ी वजह फिल्में हैं। एजेंसी की रिसर्च साबित कर चुकी है सिगरेट न पीने वाले ऐसे टीनएजर्स में, जिनके पसंदीदा स्टार पर्दे पर सिगरेट पीते दिखाए जाते हैं, उनमें भविष्य में धूम्रपान करने की आशंका 16 गुना तक ज्यादा होती है। एजेंसी की 2018 की रिसर्च के अनुसार जिन फिल्मों में धूम्रपान दिखाया जाता है, उन्हें अगर आर रेटिंग दी जाए तो टीनएज स्मोकर्स की संख्या 18 फीसदी तक घटाई जा सकती है। आर रेटिंग का अर्थ होता है कि 17 वर्ष से कम उम्र के बच्चे अभिभावक के साथ फिल्म देख सकते हैं।
रिसर्च 3 – विचार और सरकार के प्रति रवैया बदल सकती हैं फिल्में : 2015 में अमेरिका की डेटन यूनिवर्सिटी में राजनीति विज्ञान की प्रोफेसर मिशेल सी. पॉट्ज ने कॉलेज के छात्रों पर एक शोध किया। उन्होंने छात्रों से सरकार के बारे में राय मांगी और सरकार से पूछे जा सकने वाले सवाल मांगे। उन्होंने ऐसा दो बार किया। ‘आर्गो’ और ‘जीरो डार्क थर्टी’ जैसी सफल फिल्में दिखाने से पहले और बाद में। डॉ पॉट्ज के अध्ययन में सामने आया कि फिल्म देखने के बाद करीब 25 फीसदी छात्रों की सरकार के प्रति राय बदल गयी। उनके सवाल सरकार के पक्ष में हो गए। ऐसा इसलिए हुआ क्योंकि दिखाई गईं दोनों फिल्मों में सरकार को कमजोर और उसके कुछ किरदारों को ईमानदार और मेहनती बताया गया था।
(साभार – दैनिक भास्कर)