गणगौर का यह उत्सव नवरात्र के तीसरे दिन यानी कि चैत्र मास के शुक्ल पक्ष की तीज को आता है जिसमें को गणगौर माता (मां पार्वती) की पूजा की जाती है।इस दिन पार्वती के अवतार के रूप में गणगौर माता व भगवान शंकर के अवतार के रूप में ईसर जी की पूजा की जाती है।
कहते हैं माता पार्वती ने शंकर भगवान को पति (वर) रूप में पाने के लिए यह व्रत और तपस्या की थी। तब भगवान शंकर तपस्या से प्रसन्न हो गए और वरदान मांगने के लिए कहा। पार्वती ने उन्हें ही वर के रूप में पाने की अभिलाषा करती हैं।
पार्वती की मनोकामना पूरी हुई और पार्वती जी की शिव जी से शादी हो गई। तभी से कुंवारी कन्याएं इच्छित वर पाने के लिए ईसर यानी भगवान शंकर और माता पार्वती गणगौर की पूजा करती है। सुहागिन स्त्री पति की लम्बी आयु के लिए यह पूजा करती है।
इस तरह करें गणगौर व्रत
चैत्र कृष्ण पक्ष की एकादशी को प्रातः स्नान करके गीले वस्त्रों में ही रहकर घर के ही किसी पवित्र स्थान पर लकड़ी की बनी टोकरी में जवारे बोना चाहिए। इस दिन से विसर्जन तक व्रती को एक समय भोजन करना चाहिए। इन जवारों को ही देवी गौरी और शिव या ईसर का रूप माना जाता है।
गणगौर पूजा चैत्र मास के कृष्ण पक्ष की तृतीया तिथि से आरम्भ की जाती है। सोलह दिन तक सुबह जल्दी उठ कर बगीचे में जाती हैं, दूब व फूल चुन कर लाती है। दूब लेकर घर आती है उस दूब से दूध के छींटे मिट्टी की बनी हुई गणगौर माता को देती हैं। थाली में दही पानी सुपारी और चांदी का छल्ला आदि सामग्री से गणगौर माता की पूजा की जाती है।
इस दिन सुहागिन स्त्रियां दोपहर तक व्रत रखती हैं। व्रत धारण से पहले गौरी की स्थापना की जाती है। व्रत धारण करने से पहले देवी गौरी की स्थापना की जाती है। गौरी की इस स्थापना में सुहाग की सारी वस्तुएं जैसे कांच की चूड़ियां, सिंदूर, महावर, मेंहदी, टीकी, बिंदी, कंघी, शीशा, काजल आदि चढ़ाईं जाती है। सुहाग की इस साम्रगी का अर्पण, चंदन, अक्षत, धूप-दीप, नैवेद्यादि विधिपूर्वक पूजन करके किया जाता है। फिर भोग लगाने के पश्चात गौरी की कथा कही जाती है।
गणगौर का गीत
गौर गौर गोमती, ईसर पूजे पार्वती,
पार्वती के आला तीला, सोने का टीला।
टीला दे टमका दे, बारह रानी बरत करे,
करते करते आस आयो, मास आयो,छटे चौमास आयो।
खेड़े खांडे लाडू लायो, लाडू बिराएं दियो,
बीरो गुट कयगो, चुनड उड़ायगो,
चुनड म्हारी अब छब, बीरो म्हारो अमर।
साड़ी में सिंगोड़ा, बाड़ी में बिजोरा,
रानियाँ पूजे राज में, मै म्हका सुहाग में।
सुहाग भाग कीड़ीएँ, कीड़ी थारी जात है ,जात पड़े गुजरात है।
गुजरात में पानी आयो, दे दे खूंटियां तानी आयो, आख्यां फूल-कमल की डोरी।