नयी दिल्ली : हिन्दी व्यंग्य व बाल साहित्य में अपनी पहचान बनाने वाले डॉ. शेरजंग गर्ग नहीं रहे। 29 मई 1936 को देहरादून में जन्मे डॉ. शेरजंग हिन्दी के जानेमाने साहित्यकारों में एक थे। उनके निधन से साहित्य जगत, खासकर व्यंग्य और बाल साहित्य से जुड़े साहित्यकारों में गहरा शोक है। पिछले वर्ष ही 9 मई को ‘व्यंग्य यात्रा’ द्वारा आयोजित कार्यक्रम में उन्हें प्रथम रवींद्रनाथ त्यागी स्मृति शीर्ष सम्मान से सम्मानित किया गया था। ऐसे में कई साहित्यकारों, पत्रकारों ने डॉ. शेरजंग गर्ग के निधन पर गहरा दुख जताया है। लोगों में वरिष्ठ साहित्यका ममता कालिया, डॉ दिविक रमेश, आलोक मेहता, स्मिता, धीरेंद्र अस्थाना, विनोद अग्निहोत्री, ममता किरण और लालित्य ललित आदि शामिल हैं।
डॉ. शेरजंग गर्ग अपनी गजलों में व्यंग्य की प्रहारक शक्ति के प्रयोग के लिए भी प्रसिद्ध थे। सरल भाषा में इनके गजल कहने का अंदाज बहुत चर्चित रहा। डॉ. शेरजंग गर्ग ने गद्य और पद्य दोनों में समाज सापेक्ष और मानवीय मूल्यों पर आधारित रचनाएं लिखीं। ‘चंद ताजा गुलाब मेरे नाम’ काव्य संकलन उनकी काव्य प्रतिभा का और ‘बाजार से गुजरा हूं’ उनकी गद्य व्यंग्य प्रतिभा का सजग उदाहरण है। बाल-साहित्य भी उनके योगदान को कभी विस्मृत नहीं कर सकता। ऐसे दौर में जब हिंदी साहित्य में शिशु गीत न के बराबर थे, डॉ. गर्ग ने उनकी शुरूआत की। बाल-साहित्य के प्रति उनके योगदान को देखते हुए हिंदी अकादमी दिल्ली द्वारा उन्हें साहित्यकार सम्मान व श्रेष्ठ बालसाहित्य के लिए दो बार पुरस्कृत किया गया था। वह काका हाथरसी हास्यरत्न सम्मान से भी अलंकृत हुए थे। उन्होंने कई पुस्तकों का संपादन भी किया, जिनमें लोकप्रिय गीतकार दुष्यंतकुमार, गोपालदास नीरज, वीरेंद्र मिश्र, गिरिजाकुमार माथुर, बालस्वरूप राही के संकलनों, हिंदी गजल शतक, बीरबल ही बीरबल शामिल है।