पेंटिंग की दुनिया में सुमन परसरामपुरिया तेजी से अपनी जगह बना रही हैं। एक आम गृहिणी की जिंदगी जीने के बाद उन्होंने रंगों और कूची से रिश्ता जोड़ा है। कैंसर जैसी असाध्य बीमारी को मात देकर उन्होंने अपने हौसले का परिचय दिया। कई अन्य शहरों में उनकी चित्र प्रर्दशनी लग चुकी है। अपराजिता ने उनसे मुलाकात की –
बचपन से ही स्केच और पेंटिंग का शौक था मगर 5 साल पहले ही इस दिशा में कदम बढ़ाया। इसका कारण यह था कि मैं अपनी प्रतिभा को सामने लाना चाहती थी। मुझे खुद को साबित करना था। मैं एक गृहिणी थी और परिवार ही मेरी दुनिया थी मगर पेंटिंग एक अधूरी चाहत थी जिसे मुझे पूरा करना था।
मेरा बचपन बहुत अच्छा गुजरा। आज से 35 साल पहले लड़कियों का स्नातक स्तर की पढ़ाई करना बड़ी बात थी। मेरी छोटी बहन भी डॉक्टर है। शादी के बाद संघर्ष किया जो कि दरअसल मानसिकता का संघर्ष था। उस समय पति ने मेरा साथ दिया।
मुझे कला और हस्तशिल्प में रुचि थी। 2004 में मांटेसरी कोर्स कर मैंने एक शिक्षिका के रूप में काम किया मगर पैर की समस्या के कारण मुझे नौकरी छोड़नी पड़ी। बेटी के प्रोत्साहन से पेंटिंग 2010 में शुरू की मगर 2013 में ब्रेस्ट कैंसर की बीमारी का पता चला जिसका इलाज 2014 तक चला। यह बहुत मुश्किल समय था और इस समय पेंटिंग ने ही मुझे ताकत दी। पेंटिंग ही वह जरिया था जिसके कारण मैं इस बीमारी से लड़ सकी। सही मायनों में तो लड़ाई दवा को लेकर होती है कि आपका शरीर उसे स्वीकार कर पाता है या नहीं। अब भी मेरी दवाएं चल रही हैं। दृढ़ इच्छाशक्ति हो तो कुछ भी सम्भव है।
मुझे एक्रेलिक माध्यम में काम करना पसंद और चेहरा बनाना मुझे बहुत अच्छा लगता है। मैंने राधा – कृष्ण की तस्वीरों की श्रृंखला बनायी है। इसके बाद गौतम बुद्ध की तस्वीरों पर काम किया। इससे मुझे शांति मिली। कोलकाता में प्रर्दशनी लगायी जिसमें उनके विविध रूपों की 40 तस्वीरें थीं। स्वास्थ्य के कारण कई बार अंतराल आता है मगर अब मैं पेंटिंग करती रहूँगी।
मुझे लगता है कि हम जो करना चाहते हैं, उसे करना चाहिए। अपनी इच्छा को जिम्मेदारी निभाते हुए पूरा करना जरूरी है।