‘दीदी कैफे’ ने लिखी आदिवासी महिलाओं की सफलता की कहानी

गिरिडीह : झारखंड के सुदूर गांवों में आजीविका दीदी कैफे साल भर पहले शुरू हुआ था। इसके सहारे होटल व्यवसाय में उतरीं आदिवासी महिलाओं ने कम समय में सफलता की नई कहानी लिख डाली है। आदिवासी समुदाय की महिलाओं की बात करें तो उनकी दुनिया जंगलों, पहाड़ों और खेत-खलिहानों तक सीमित रही है। कारोबार और व्यवसाय से तो इनका दूर-दूर का नाता नहीं रहा है। समय बदला है और बदलाव खुद अपनी कहानी कह रहा है। ये महिलाएं जागरूक हुई हैं। गिरिडीह जिला के उग्रवाद प्रभावित क्षेत्रों में शुमार पीरटांड़ प्रखंड में संचालित आजीविका दीदी कैफे आदिवासी महिलाओं के स्वावलंबन की गाथा बयां कर रहा है। इस कैफे में होटल की तर्ज पर हर सुस्वादिष्ट भोजन व अन्य खाद्य पदार्थ उपलब्ध हैं। प्रखंड कार्यालय के कर्मियों से लेकर बीडीओ तक इस कैफे में मिलने वाली चाय, नाश्ता और भोजन के मुरीद हैं।
इस कैफे का संचालन चमेली महिला कैटरिंग समूह की ओर से हो रहा है। समूह की कोषाध्यक्ष रूपमनी टुडू और सदस्य सुनीता टुडू ने बताया कि प्रखंड कार्यालय में कैफे संचालन के लिए हमने भी आवेदन दिया था। चयन होते ही कैफे का संचालन शुरू किया। हम दोनों ने जो कुछ बचत की थी वह सभी इसमें लगा दी। करीब 90 हजार की राशि कच्चा माल, फर्नीचर, रसोई सजाने में लगाई। व्यंजनों की अच्छी गुणवत्ता, शुद्ध सामग्री का प्रयोग, सही दाम और सफाई ने कुछ ही दिनों में कैफे को शोहरत दे दी।
अब तो प्रखंड कार्यालय कर्मी, दूर-दूर से आने वाले ग्रामीण और अंचलाधिकारी व प्रखंड विकास पदाधिकारी तक यहां चाय, नाश्ता और भोजन को आते हैं। इतना ही नहीं आसपास होने वाले सरकारी व गैर सरकारी कार्यक्रमों में चाय, नाश्ता, भोजन की व्यवस्था इसी कैफे से होती है। बकौल सुनीता, हर माह कैफे से 6-7 हजार रुपये से अधिक की आय होती है। कैफे में चाय- नाश्ते के साथ वेज और नॉन वेज भोजन भी उपलब्ध है। कैफे के लिए भवन प्रशासन की ओर से मुहैया कराया गया है। अन्य व्यवस्थाएं इसे संचालित कर रही महिलाओं ने की है।
सुनीता कहती हैं कि कभी हम दो वक्त के भात को भी मोहताज थे। पति मजदूरी करते थे। उससे गुजर बसर ठीक से नहीं होती थी। इस कैफे ने हमारे घरों का अर्थतंत्र बदल दिया है। अब दो वक्त के भोजन की दिक्कत नहीं होती। घर में जरूरी सुख सुविधाएं भी हो गई हैं।
(साभार – दैनिक जागरण)

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