नयी दिल्ली : दिल्ली निवासी 69 वर्षीय अलगरत्नम नटराजन को लोग ‘मटका मैन’ के नाम से भी जानते हैं। वे हर रोज़ दक्षिण दिल्ली में अनगिनत ग़रीब और जरुरतमंदों की प्यास बुझाते हैं। नटराजन दिल्ली में बहुत-सी समाज सेवी संस्थाओं से जुड़े हुए हैं। अपने सामाजिक कार्यों के दौरान जब उन्होंने दिल्ली में लोगों को दो वक़्त के खाने और साफ़ पानी पीने के लिए भी मोहताज पाया तो उन्हें बहुत दुःख हुआ। उन्होंने इस सबसे प्रेरित होकर अपने घर के बाहर एक वाटर कूलर लगा दिया ताकि उस रास्ते से गुजरने वाले राहगीर अपनी प्यास बुझा सकें। जो काम घर के बाहर से शुरू हुआ, वह आज पूरी साउथ दिल्ली तक पहुँच चूका है। उन्होंने यहाँ के अलग-अलग इलाकों में लगभग 80 मटके लगवाए हैं और हर सुबह जाकर इन सारे मटकों को स्वच्छ और पीने योग्य पानी से भरते हैं। इस पहल के बारे में नटराजन कहते हैं, “एक बार मेरे वाटर कूलर से पानी भर रहे एक गार्ड को मैंने पूछा कि वह पानी लेने के लिए इतनी दूर यहाँ क्यों आया है, जहाँ काम करता है वहाँ क्यों नहीं पानी लेता है। उसने बताया कि वहाँ उसको पीने के लिए पानी नहीं दिया जाता है।”
दिल्ली में अलग-अलग जगह पर लगवाए गये पानी के मटके
यह जवाब सुनकर नटराजन स्तब्ध रह गये। और यहीं से उनको ग़रीब और जरुरतमंदों की प्यास बुझाने की प्रेरणा मिली। वाटर कूलर लगवाने में बहुत खर्चा आता, इसलिए उन्होंने मिट्टी के मटके रखवाए। नटराजन के इस काम में उन्हें उनके परिवार का पूरा साथ मिला।
जब नटराजन ने यह काम शुरू किया था, तब लोगों को लगता था कि सरकार ने उन्हें इस काम के लिए नियुक्त किया है। पर नटराजन को न तो सरकार से और न ही किसी संस्था से इस काम के लिए मदद मिलती है। वे अपनी जेब से ही पूरा खर्च उठाते हैं और अब उन्हें उनके जैसे ही कुछ अच्छे लोगों से दान के तौर पर मदद मिल रही है।
नटराजन, मूल रूप से बंगलुरु से हैं। पर युवावस्था में ही लंदन चले गए थे और बतौर व्यवसायी उन्होंने 40 साल वहाँ बिताए। लेकिन नटराजन को वहाँ आंत का कैंसर हो गया था। इलाज करवाने के बाद उन्होंने भारत लौटने का फ़ैसला लिया। यहाँ आकर वे एक अनाथालय व कैंसर के मरीज़ों के आश्रम में स्वयंसेवा करने लगे और चांदनी चौक में बेघरों को लंगर भी खिलाने लगे। नटराजन ने एक वैन में 800 लीटर का टैंकर, पंप और जेनरेटर लगवाया है, जिससे वह रोज़ मटकों में पानी भरते हैं। नटराजन ने बताते है, “गर्मी के दिनों में मटके में हमेशा पानी भरा रखने के लिए मैं दिन में चार चक्कर लगाता हूँ। गर्मी के महीनों में मटकों में पानी भरने के लिए रोज़ 2,000 लीटर पानी की ज़रूरत होती है।”मटकों के अलावा उन्होंने जगह-जगह 100 साइकिल पंप भी लगवाए हैं। यहाँ ग़रीब लोग 24 घंटे हवा भरवा सकते हैं।
(साभार – द बेटर इंडिया)