नयी दिल्ली । संपूर्ण क्रांति के जनक जयप्रकाश का पूरा जीवन संघर्ष करते हुए बीता। धीरे-धीरे वह जेपी के नाम से मशहूर हो गए। आपातकाल के दौरान उनके नेतृत्व में जेपी आंदोलन ने इंदिरा गांधी सरकार की चूलें हिला दी थीं। इस आंदोलन ने राजनीति की तस्वीर बदल दी थी। इसने इंदिरा से पीएम की कुर्सी छीन ली थी। इसके पहले जेपी भारत छोड़ो आंदोलन और सर्वोदय आंदोलन का हिस्सा रह चुके थे। इस स्वतंत्रता सेनानी से जुड़ा एक और बहुत दिलचस्प किस्सा है। यह आजादी से पहले का है। तब जयप्रकाश हजारीबाग जेल से भाग निकले थे। इसमें वह अकेले नहीं थे। वह अपने पांच साथियों के साथ जेल से फरार हुए थे। आजादी के इन मतवालों के जज्बे के सामने जेल की 17 फीट ऊंची दीवार भी बौनी पड़ गई थी। जेल से निकल भागने के लिए इन क्रांतिकारियों ने 56 धोतियों का इस्तेमाल किया था। इसने अंग्रेजी हुकूमत के मुंह पर कालिख पोत दी थी। तस्वीर में दिख रही यह वही ऐतिहासिक जेल है। 2001 में इस जेल का नाम जेपी पर कर दिया गया था।
वो साल 1942 था। दिन था 9 नवंबर। सब कुछ रोजमर्रा की तरह था। लेकिन, दिन ढलने के साथ कुछ बड़ा घटने वाला था। रात होते ही जयप्रकाश अपने पांच साथियों के साथ जेल से फरार हो गए थे। जेल की 17 फीट ऊंची दीवार फांदकर वो सभी बाहर निकल आए थे। इसमें उन्होंने 56 धोतियों का इस्तेमाल किया था। जेपी के साथ फरार होने वालों में रामानंद मिश्र, शालीग्राम सिंह, सूरज नारायण सिंह, योगेंद्र शुक्ला और गुलाब चंद गुप्ता शामिल थे। तब जेल में बंद क्रांतिकारियों ने जमकर दिवाली का जश्न मनाया था।
देखते ही गोली मारने के थे आदेश
दरअसल, 9 अगस्त 1942 को महात्मा गांधी ने भारत छोड़ो आंदोलन की शुरुआत की थी। इसने अंग्रेजों की नींद उड़ा दी थी। 91 हजार से ज्यादा लोगों को जेल में डाल दिया गया था। पुलिस फायरिंग में हजार से ज्यादा लोगों की जान गई थी। यही वह समय था जब जयप्रकाश हजारीबाग सेंट्रल जेल से भाग निकले थे।
जेल से फरार इन 6 क्रांतिकारियों को जिंदा या मुर्दा पकड़ने पर 10 हजार रुपये का इनाम घोषित कर दिया गया था। जंगलों में आजादी के इन 6 सिपाहियों को तलाशने के लिए ब्रितानी सैनिकों की दो कंपनियां लगाई गई थीं। जरूरत पड़ने पर देखते ही गोली मारने का आदेश दिया गया था। तब हजारीबाग जिला कमिश्नर केवीएस रमण की नींद उड़ गई थी। उनके आदमियों ने इन छह को ढूढने की पूरी कोशिश की। लेकिन, यह नाकाम साबित हुई।
तब 40 साल के थे जेपी
जब जेपी जेल से फरार हुए थे तब उनकी उम्र 40 साल थी। फरार होने की योजना तो अक्टूबर में ही थी। लेकिन, किन्हीं कारणों से इसे अमलीजामा नहीं पहनाया जा सका। शुरुआत में जेपी समेत 10 लोगों का जेल से भागने का प्लान था। हालांकि, बाद में यह तय हुआ कि 6 लोग बाहर जाएंगे। बाकी के 4 गार्डों का ध्यान भटकाने का काम करेंगे। फरार होने वाले 6 क्रांतिकारियों में सबसे फुर्तीले योगेंद्र शुक्ला थे। वह तेजी से दीवारों पर चढ़-उतर लेते थे।
उसी दिन दिवाली थी। जेल में ढेरों दिये जल रहे थे। हिंदू वॉर्डनों को दिवाली की छुट्टी मनाने के लिए ड्यूटी से छुट्टी मिली थी। पूरे जेल में त्योहारी माहौल था। रात 10 बजे 6 लोग जेल के आंगन में पहुंचे। यह समय इसलिए चुना गया था क्योंकि वॉर्डन रात का भोजन करने के बाद अक्सर सिगरेट या पान खाने के लिए जाते थे। डिनर टेबल दीवार के पास रखी गई थी। शुक्ला घुटनों पर झुककर टेबल के ऊपर बैठ गए थे। एक दल वॉर्डनों पर नजर रख रहा था। इसके बाद सूरज नारायण सिंह के पेट के चारों ओर धोती लपेटी गई। गुलाब चंद, शुक्ला की पीठ पर चढ़े और सूरज गुलाब के कंधों पर चढ़कर दीवार पर चढ़ गए। चंद मिनटों में देखते ही देखते सभी क्रांतिकारी जेल के बाहर थे।
इस कवायद में जेपी के पैर में चोट आ गई थी। वह चलने में लाचार हो गए थे। साथियों ने उनके कटे पांव पर धोती बांध दी थी। वह फूल गया था और उसमें से तेजी से खूब बह रहा था। जब साथियों ने देखा कि उनके लिए चलना नामुमकिन है तो उन्होंने जेपी को कंधों पर बैठा लिया था। 30 नवंबर की रात को पूरा दल हजारीबाग क्रॉस करके गया गया जिले पहुंच गया था। वे सभी एक पत्थर के पास सोए थे। इसे आज जेपी रॉक के नाम से जाना जाता है। वहां से भागकर सभी एक गांव पहुंचे थे। यहां उन्होंने जेपी के दोस्तों के यहां शरण ली थी। 9 घंटे तक हजारीबाग जेल से उनके फरार होने की भनक तक नहीं लगी थी। यह संयोग ही था कि उस समय जेल सुप्रिंटेंडेंट टी नाथ 7 नवंबर से तीन हफ्तों के लिए छुट्टी पर थे। 9 नवंबर को उनका रिप्लेसमेंट पहुंचा था।
(साभार – नवभारत टाइम्स)