37 हजार करोड़ रुपये के घाटे में हैं ओला, जोमैटो जैसी 8 भारतीय कम्पनियां

नयी दिल्ली/मुम्बई : अगर आप जोमैटो से खाना मंगवाते हैं, ऑफिस के लिए ओला कैब करते हैं, भुगतान पेटीएम से किया है, मेक माय ट्रिप पर छुटि्टयां प्लान कर रहे हैं, होटल ओयो पर सर्च कर रहे हैं, फिल्म देखने के लिए बुक माई शो से टिकट करवा रहे हैं, बिग बास्केट से किराना ऑर्डर कर रहे हैं और साथ ही ऑनलाइन शॉपिंग के लिए कपड़े फ्लिपकार्ट से खरीद रहे हैं, तो इस तरह आपने दिनभर में 8 ऑनलाइन कम्पनियों की सेवाएं लीं।
चौंकाने वाली बात यह है कि तेजी से बढ़ रही इन 8 ऑनलाइन कम्पनियों का सामूहिक कुल घाटा अभी 36 हजार 761 करोड़ रुपए से अधिक है। दिलचस्प यह है कि ये कंपनियां देश में करीब 20-40 फीसदी की वार्षिक दर से अपना कारोबार और ब्रैंड वैल्यू भी बढ़ा रही हैं। वर्ष दर वर्ष ये कंपनियां जहां ग्राहक संख्या और राजस्व बढ़ा रही हैं, नया निवेश भी हासिल करती जा रही हैं।
कम्पनियों का घाटा भी बढ़ रहा
इसे इस उदाहरण से समझ सकते हैं। ऑनलाइन खाना मुहैया कराने वाली जोमैटो का वर्ष 2014-15 में राजस्व 36.12 करोड़ था। इसी वर्ष कम्पनी का घाटा 37.17 करोड़ रुपये रहा। पांच साल में कम्पनी का राजस्व यूं तो करीब 37 गुना बढ़कर 1,350 करोड़ से अधिक हो गया, लेकिन घाटा 570 करोड़ रुपये से अधिक रहा। विशेषज्ञों के मुताबिक कम से कम अगले पांच साल तक देश में ऑनलाइन कम्पनियों का कारोबार घाटे में ही चलता रहेगा। पीडब्ल्यूसी के पार्टनर एंड लीडर डील स्ट्रैटजी संकल्प भट्‌टाचार्य ने कहा कि ऑनलाइन कंपनियों के प्लेटफॉर्म्स पर आक्रामक रूप से डिस्काउंट चलता है साथ ही डिलीवरी, वेयर हाउिसंग और कारोबार का विस्तार करने पर लगातार निवेश भी हो रहा है। भट्‌टाचार्य कहते हैं कि लेकिन अभी ये कम्पनियां फायदा नहीं बना पा रही हैं। कम्पनियों की कोशिश ग्राहकों के व्यवहार में बदलाव लाकर उसे अपने ब्रांड से जोड़े रखने की है। अलीबाबा, सॉफ्ट बैंक, टाइगर ग्लोबल समेत सात आठ पुराने निवेशक देश में कम्पनियों में निवेश कर रहे हैं और वे पैसा लगाते रहेंगे। ऐसी कंपनियों को फायदे में आने में अभी करीब चार से पांच साल और लगेंगे, इस बीच ग्राहकों को फायदा होता रहेगा।
फिर कंपनियां लगातार बढ़ते घाटे के बावजूद कारोबार को क्यों बढ़ा रही हैं? यह पूछने पर ई-कॉमर्स कंपनियों को सलाह देने वाली कम्पनी टैक्नोपैक कंसल्टिंग के सीनियर वाइस प्रेसीडेंट अंकुर बिसेन कहते हैं कि ऑनलाइन बाजार को लगा कि ढांचागत ऑफलाइन की कमी को पूरा करने में वे सक्षम हैं। इसलिए ओयो, पेटीएम जैसी कम्पनियों ने एक नई शुरुआत देश में की। ऑनलाइन कंपनियों ने पहली बार देश में वस्तुओं की नयी कीमत तय (प्राइस डिस्कवरी) की। कंपनियों ने भारी डिस्काउंट देकर ग्राहकों को आकर्षित किया। ग्राहक तक पहुँचने के लिए कम्पनियों को पैसा चाहिए और यह कमी वेंचर इन्वेस्टमेंट फंड से पूरी हुई। इसमें बड़ा हिस्सा विदेशी कंपनियों का रहा है। यह कॉन्सेप्ट अमेरिका, यूरोप, चीन होते हुए भारत में आया है। एक स्थिति के बाद कंपनियों के लिए घाटा और लागत मायने नहीं रखती। एक तय धारणा या उम्मीद के आधार पर देश में कारोबार हो रहा है। अलीबाबा, एयर बीएनबी और अमेजन जैसी कंपनियों ने अमेरिका में ऐसे ही कंपनियों को फायदे में चलाकर दिखाया है। बिसेन कहते हैं कि वैसे कम से कम पांच साल तो कम्पनियां घाटे में ही रहेंगी। इस दौरान इस क्षेत्र में कई कम्पनिनयों के विलय-अधिग्रहण भी होंगे।
वहीं मेक माई ट्रिप के प्रवक्ता ने कहा कि बाजार में जहां भी इंटरनेट की पहुँच है, हम वहां अवसर देख रहे हैं। हम लगतार अपने घाटे को घटा रहे हैं और लाभ की ओर बढ़ रहे हैं। भारी डिस्काउंट के बावजूद निवेशक क्यों कंपिनयों में पैसा लगाते हैं? यह पूछने पर एक विशेषज्ञ ने कहा कि ऑनलाइन कम्पनियों में पैसा लगाने वाले निवेशक ही कहते हैं कि पहले ग्राहक लाओ, आधार तैयार करो जिससे मार्केट शेयर बढ़े। इसीलिए 800 की चीज 600 रुपये में मिलती है। कंपनियों और निवेशकों की कोशिश है कि ग्राहक उन्हीं के प्लेटफार्म का उपयोग करें। एक समय बाद ऐसी कम्पनियां या तो अपनी कंपनी को बेच देती हैं या फिर वे कुछ समय के बाद फायदे में ही आ जाती हैं। भारत में भी ऐसा सम्भव है।
कम्पनियों के बीच प्रतिस्पर्द्धा एवं बाजार का विश्लेषण करने वाली कम्पनी कालागाटो के चीफ बिजनेस ऑफिसर अमन कुमार कहते हैं कि ऑनलाइन कम्पनियों की माँग इसलिए है, क्योंकि वो डिस्काउंट देते हैं। प्रतिस्पर्द्धा के कारण भी कम्पनियों को डिस्काउंट देना पड़ता है। हालांकि ग्राहकों को फायदा ही है, क्योंकि अब वर्षभर ऑनलाइन सेल चलती रहती है। घाटे के बावजूद कम्पनियों की मार्केट वैल्यू कैसे बढ़ती जा रही है, यह पूछने पर भट्‌टाचार्य कहते हैं कि सामान्य तौर पर कंपनियों के वैल्यूशन से अलग इन कम्पनियों का वैल्यूएशन होता है। 20 साल पहले डिस्काउंट कैश जनरेशन के आधार पर कम्पनी की वैल्यू तय होती थी लेकिन अब ग्रास मर्केन्डाइस कीमत मल्टीपल आधार पर तय हो रही है। जितनी अच्छी कम्पनी की स्थिति होगी, उतने गुना ही वैल्यू ज्यादा होगी। जैसे अभी कम्पनी का टर्नओवर 100 रुपये है और मार्जिन 10 रुपये है, तो कम्पनी की वैल्यू निकालने के लिए 10 रुपए का 15 गुना यानी 150 रुपए कम्पनी की वैल्यू तय होगी। कहीं-कहीं रेवेन्यू के आधार पर भी कंपनियों की कीमत का निर्धारण हो रहा है, यह दो से छह गुना तक है। जो निवेशक इन कंपनियों में पहले निवेश कर चुके हैं वे ही अभी ज्यादा पैसा लगा रहे हैं और नए निवेशक अभी कम आ रहे हैं।
सबसे बड़े घाटे में ओयो; 4 साल में 1367 गुना घाटा
वर्ष 2013-14 में जहां ओयो का महज 84 लाख रु. का कुल घाटा हुआ था। वर्ष 2017-18 में इसका कुल घाटा बढ़कर करीब 1367 गुना यानी 1148.22 करोड़ हो गया। ओयो भारत, नेपाल, मलेशिया, चीन, इंडोनेशिया, यूएई में 800 शहरों में है। वहीं 23 हजार से अधिक होटलों से अनुबंध है।
इनमें सबसे बेहतर फ्लिपकार्ट; 4 साल में 3 गुना बढ़ा राजस्व
फ्लिपकार्ट इंडिया प्रा. लि. और फ्लिपकार्ट इंटरनेट प्रा. लि. का संयुक्त राजस्व वर्ष 2014-15 में 10,309.24 करोड़ रुपए था। वर्ष 2018-19 में यह बढ़कर 35,734.9 करोड़ रुपये हो गया। इस दौरान फ्लिपकार्ट इंटरनेट ने वर्ष 2018-19 में प्रमोशन पर 1141 करोड़ रुपए खर्च किए।
जो घाटे में, पर उधार नहीं  ओला; राजस्व  36, घाटा 193 गुना बढ़ा
15 लाख कैब (ड्राइवर पार्टनर) वाली कंपनी ओला द्वारा दी जानकारी के मुताबिक कंपनी पर कोई उधारी नहीं है। जबकि कंपनी का राजस्व वर्ष 2013-14 में महज 51.05 करोड़ रु. था जो वर्ष 2017-18 में बढ़कर 1860.61 करोड़ रुपए हो गया। यानी 36 गुना से अधिक बढ़ोतरी।
मेक माय ट्रिप; 11 गुना से अधिक बढ़ा घाटा
कम्पनी की उधारी महज चार वर्ष (2013-14 से 2017-18) के दौरान करीब 98 लाख रुपये से बढ़कर करीब 2.75 करोड़ रुपये हो गयी है। कम्पनी का कुल घाटा इस दौरान करीब 11 गुना से अधिक बढ़ गया है।
पेटीएम; पहले फायदा अब घाटे में कम्पनी
अपनी स्थापना से लेकर वित्त वर्ष 2013-14 तक पेटीएम कुल करीब 150 करोड़ रुपये के फायदे में चल रही थी। लेकिन वर्ष 2017-18 तक आते-आते कम्पनी को कुल करीब 4,102 करोड़ रुपए का नुकसान हुआ।
जोमैटो;कम्पनी के पास 3208 करोड़ रिजर्व में
वर्तमान में 24 देशों के 10 हजार से अधिक शहरों में मौजूदगी। प्रति माह 10 करोड़ लोगों को खाने का ऑर्डर पहुँचाने वाली कंपनी जोमैटो के पास कुल रिजर्व वित्त वर्ष 2018-19 तक 3,208 करोड़ रुपये के थे।
बुक माय शो; घाटा 4 करोड़ से बढ़कर 140 करोड़ रुपये हुआ
कम्पनी को वर्ष 2013-14 में जहां 4.03 करोड़ रुपए का घाटा हुआ था वहीं वर्ष 2017-18 के दौरान 140.26 करोड़ रुपए रहा। कम्पनी के मुताबिक 1.5 करोड़ टिकट कम्पनी के प्लेटफार्म से हर माह बुक होते हैं।
बिग बास्केट; प्रमोशन पर खर्च किए पाँच करोड़ रुपये से अधिक
वर्ष 2017-18 के दौरान 5.55 करोड़ प्रमोशन (प्रचार-प्रसार) पर खर्च किए। वहीं कम्पनी का राजस्व वर्ष 2017-18 के दौरान करीब 1410 करोड़ रु. रहा। वर्ष 2013-14 में 2.35 करोड़ रुपए का घाटा हुआ, वर्ष 2017-18 में 179.23 करोड़ हो गया।

(साभार – दैनिक भास्कर)

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