23 साल में 20 हजार पोस्टमॉर्टम करने वाली बिहार की मंजू देवी

पटना: वो एक ऐसी महिला हैं जिनकी आपबीती सुन कर कोई भी दहल जाए। बिहार जैसे राज्य से आने वाली मंजू की कहानी सिर्फ डराने वाली ही नहीं, बल्कि एक मिसाल भी है। उनका जीवन देश के सबसे गरीब राज्यों में से एक बिहार की गंभीर वास्तविकताओं की एक तस्वीर है। साथ ही साथ ये हर बाधा पर दृढ़ता से विजय पाने की कहानी भी है। मंजू देवी (48) की शादी कम उम्र में ही हो गई थी, 26 साल की उम्र में उनके पांच बच्चे थे और फिर उनके पति की मृत्यु हो गई। अब सवाल यही था कि पूरी उम्र कैसे कटेगी, बच्चों का पालन पोषण कैसे होगा। बिहार के समस्तीपुर में, छोटे बच्चों वाली एकल माताओं के लिए आजीविका के विकल्प लगभग शून्य ही हैं। ऐसे में मंजू देवी ने ऐसी नौकरी करनी मंजूर की, जिसके बारे में एक महिला सोच कर भी कांप उठे। उसने एक ऐसी नौकरी ली जो चिकित्सकीय रूप से महत्वपूर्ण थी, लेकिन गहरे सामाजिक पूर्वाग्रहों को देखते हुए, बहुत कम लोगों इसे करना चाहते हैं। एक पोस्टमॉर्टम सहायक की नौकरी आखिर करना भी कौन चाहेगा, वो भी एक महिला। लेकिन मंजू ने नौकरी के इस विकल्प को चुन लिया। अब 23 साल के बाद मंजू का अंदाजा है कि उन्होंने एक दो नहीं बल्कि कुल 20 हजार शवों के पोस्टमॉर्टम किए। मंजू एक पोस्टमॉर्टम को आज तक नहीं भूली हैं। वो उस दिन को याद करती है जब एक स्थानीय डॉन का शव पोस्टमॉर्टम के लिए आया था। गुस्साए गुंडे बाहर ही थे और शव उन्हें सौंपने की मांग कर रहे थे। वह कहती हैं, इस कठिन काम में उनका सबसे खराब दिन वह था, जब उन्हें एक युवा रिश्तेदार के शव पर काम करना पड़ा, जो जलने से मर गया था। मंजू देवी के अपने शब्द ही उनके काम का सबसे अच्छा वर्णन करते हैं। 23 साल पहले, समस्तीपुर के सदर अस्पताल में पोस्टमॉर्टम कक्ष में अपने पहले दिन को याद करते हुए, वह कहती हैं ‘मेरे पहले दिन, एक 22 वर्षीय दुर्घटना पीड़ित का पोस्टमॉर्टम करना था। मुझे ड्यूटी पर मौजूद डॉक्टर ने बताया कि उसके सिर को खोलना और शरीर को काटना था, ताकि अंदरुनी जांच की जा सके।’ मंजू के मुताबिक मैं कांप रही थी, रो रही थी… लेकिन मैंने छेनी-हथौड़ा उठाई और मुर्दे का सिर खोला। फिर मैंने निर्देशानुसार चाकू से उसकी छाती और पेट को खोला। काम पूरा हो गया, मैं घर लौट आई, लेकिन मैंने उस दिन कुछ नहीं खाया, न ही उस रात सोई। उस पल को मैं कभी नहीं भूल सकती।’ लेकिन अब वही मंजू देवी नौकरी पर अनुभव और प्रशिक्षण के चलते एक प्रोफेशनल बन गई हैं। लेकिन उनके औजार आज भी वैसे ही पुराने हैं। जबकि वो पोस्टमॉर्टम जैसे अहम काम को करती हैं। मंजू ने 26 साल की अपनी मेहनत के बाद पांच छोटे बच्चों को पढ़ाकर बड़ा कर दिया। वो या तो सफल पेशेवर बन गए हैं या उच्च शिक्षा प्राप्त कर रहे हैं। मंजू देवी के दोनों बेटे संगीत में प्रतिभाशाली थे, उन्होंने संगीत में स्नातकोत्तर की डिग्री ली और अब संगीत के छात्रों के लिए एक शिक्षण केंद्र चलाते हैं। वह कहती हैं कि वह खुद संगीत में प्रतिभाशाली थीं, लेकिन जिंदगी ने उन्हें मौका नहीं दिया। उनकी दोनों बेटियां स्नातकोत्तर पाठ्यक्रम में हैं और सिविल सेवाओं के लिए अध्ययन कर रही हैं। बेटियां और बेटे कहते हैं कि ‘उन्होंने बहुत दर्द सहा है,हमें उन पर गर्व है’।

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