उदयपुर : आधुनिक हिंदी के मानक गद्य की सबसे पहली पुस्तक उदयपुर में 136 साल पहले वर्ष 1882 में लिखी गई थी। यह पुस्तक है- सत्यार्थ प्रकाश। इसे लिखा था स्वामी दयानन्द सरस्वती ने। उदयपुर में इस पुस्तक के लेखन स्थल पर आज सत्यार्थ प्रकाश भवन बना हुआ है। दुनियाभर से आने वाले पर्यटक इसे देखते हैं। वे इसे आर्य समाज के संस्थापक और धर्म सुधार आंदोलन के प्रमुख व्यक्ति दयानन्द सरस्वती के ग्रंथ के रूप में देखते हैं। लेकिन बहुत कम लोगों को पता है कि हिन्दी साहित्य के इतिहासकारों ने अपने ग्रंथों में सत्यार्थ प्रकाश को हिन्दी के उन प्रारम्भिक ग्रंथों में माना है, जिनके गद्य को बाद में सभी ने परम्परा के रूप में ग्रहण किया।
सत्यार्थ प्रकाश के प्रकाशन से पहले हिन्दी गद्य की भाषा ब्रज और अवधी से बहुत अधिक प्रभावित थी। आचार्य रामचन्द्र शुक्ल ने हिंदी साहित्य का इतिहास में माना है कि 1868 से 1893 का कालखंड हिन्दी गद्य के विकास का समय था। स्वामी दयानन्द सरस्वती ने वैसे 1873 के आसपास सत्यार्थ प्रकाश का लेखन शुरू किया था, लेकिन इसे पूरा उदयपुर आकर किया।
उनसे पहले आमतौर पर ब्रजभाषा को ही गद्य के रूप में लिखा जा रहा था। उस समय हिन्दी में हों को हूजिए, हो को होय, आता है को आवता है, आए को आवे, जगह को जाघा, इसलिए को इस करके या भाषा को भाखा लिखा जाता था। उस समय हिन्दी साहित्य में ‘सांसें आती जाती हैं’को ‘आतियां जातियां जो सांसें हैं’ लिखा जाता था। तब कहानी या लेख की भाषा गद्य तो होती थी, लेकिन हर पंक्ति के आखिर में तुक मिलाकर लिखा जाता था।
स्वामी दयानन्द सरस्वती को महाराणा सज्जन सिंह ने बुलवाया था : सत्यार्थ प्रकाश भवन के अध्यक्ष अशोक आर्य बताते हैं कि स्वामी दयानन्द सरस्वती को महाराणा सज्जन सिंह ने उदयपुर आमंत्रित किया था। उन्हें एक अलग भवन में ठहराया था। स्वामी जी ने यहीं सत्यार्थ प्रकाश लिखा।
वे यहां 10 अगस्त 1882 से 27 फरवरी 1883 तक ठहरे थे। इसके बाद वह जोधपुर होते हुए पुष्कर चले गए थे। डॉ. चंद्रभानु सीताराम सोनवणे ने हिन्दी गद्य साहित्य में लिखा है कि सत्यार्थ प्रकाश आधुनिक हिंदी का सर्वाधिक लोकप्रिय ग्रंथ है। हिन्दी को नई चाल में ढालने में स्वामी दयानन्द सरस्वती का स्थान भारतेंदु हरिश्चंद्र से कम नहीं है।
दयानन्द की प्रेरणा से निकला था पहला हिन्दी दैनिक : 1856 में जन्मे मनीषी समर्थदान चारण ने स्वामी दयानन्द सरस्वती की प्रेरणा से 1886 में अजमेर में राजस्थान प्रेस यंत्रालय की स्थापना कर राजस्थान समाचार साप्ताहिक प्रारंभ किया था। 1904 में यह पत्र दैनिक हो गया, जिसने राजस्थान में दैनिक समाचार पत्रों की आधार भूमि तैयार की। नागरी लिपि में छपने वाला यह दैनिक 12 पेज का था। चंद्रगुप्त वार्ष्णेय ने भी राजस्थान समाचार को प्रदेश का पहला दैनिक पत्र माना था।
(साभार – दैनिक भास्कर)