नयी दिल्ली । भारत में सांस लेना अब जानलेवा होता जा रहा है। स्वीडन के कारोलिंस्का इंस्टीट्यूट की एक ताजा रिपोर्ट के मुताबिक 2009 से 2019 के बीच वायु प्रदूषण ने देश में 38 लाख लोगों की जान ली, जबकि छोटे और औद्योगिक शहर अब नए प्रदूषण हॉटस्पॉट के रूप में उभर रहे हैं। इस बात का उल्लेख दिल्ली स्थित सेंटर फॉर साइंस एंड एनवायरमेंट (सीएसई) की पुस्तक सांसों का आपातकाल करते हुए चेतावनी दी गई है कि यह संकट अब महानगरों से निकलकर पूरे भारत की हवा को विषाक्त कर चुका है। कारोलिंस्का इंस्टीट्यूट की रिसर्च बताती है कि 2009 से 2019 के दशक में भारत में वायु प्रदूषण से होने वाली मौतें कुल मृत्यु दर का 25 प्रतिशत हैं। अगर विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) के सख्त मानक (5 माइक्रोग्राम प्रति घन मीटर) को आधार बनाया जाए तो यह संख्या अनुमानित रूप से 1.66 करोड़ मौतों तक जा सकती है। कारोलिंस्का इंस्टीट्यूट का अध्ययन भारत के 655 जिलों में किया गया था, जिसमें सभी क्षेत्रों में पीएम 2.5 का स्तर मानक से ऊपर पाया गया। अध्ययन में कहा गया है कि भारत की पूरी आबादी ऐसे इलाकों में रहती है जहां पीएम 2.5 का स्तर डब्ल्यूएचओ के मानकों से कहीं अधिक है। विशेषज्ञ बताते हैं कि पीएम 2.5 के कण बेहद सूक्ष्म होते हैं, यहां तक कि बाल की मोटाई के मुकाबले 30 गुना पतले जो सांस के जरिए सीधे फेफड़ों और रक्त प्रवाह तक पहुंच जाते हैं। हर 10 माइक्रोग्राम प्रति घन मीटर की वृद्धि पर मौतों में 8.6% इजाफा दर्ज किया गया। केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (सीपीसीबी) के ताजा आंकड़ों के अनुसार असम-मेघालय सीमा पर स्थित छोटा औद्योगिक नगर बर्नीहाट अब देश का सबसे प्रदूषित शहर बन गया है। यहां का सालाना पीएम 2.5 स्तर 133.4 माइक्रोग्राम प्रति घन मीटर दर्ज किया गया। दिल्ली स्थित क्लाइमेट-टेक स्टार्टअप रेस्पिरर लिविंग साइंसेज के चार वर्षीय अध्ययन (2021 – 2024) में पाया गया कि देश के 11 बड़े शहरों में पीएम 10 स्तर राष्ट्रीय सुरक्षा मानक 60 माइक्रोग्राम से कई गुना ज्यादा बना रहा। दिल्ली के आनंद विहार में यह स्तर 313.8 माइक्रोग्राम, जबकि पटना में 237.7 माइक्रोग्राम तक पहुंचा। रेस्पिरर के सीईओ रोनक सुतारिया ने कहा, अब यह समस्या केवल सर्दियों की नहीं रही। हम पूरे साल जहरीली हवा में सांस ले रहे हैं। प्रदूषण घटाने में कोई स्थायी सुधार नहीं दिखता।





