होली से पहले जान लें ये महत्वपूर्ण और रोचक बातें

इस साल होली 13 मार्च (सोमवार) को मनाई जाएगी। यदि मुहुर्त की बात की जाए तो पारंपरिक रूप से रंगों का यह त्यौहार इस वर्ष रविवार की शाम से शुरू हो जाएगी। वैसे भी उमंग, उल्लास और खानपान का यह उत्सव दो दिन तक मनाया जाता है. पहले दिन होलिका जलाई जाती है, जिसे होलिका-दहन कहते हैं. होली के दूसरे दिन को धुरड्डी, धुलेंडी, धुरखेल या धूलिवंदन कहा जाता है. इस दिन लोग एक-दूसरे पर रंग, अबीर-गुलाल फेंकेते हैं और घर-घर जाकर लोगों को रंग लगाते हैं. आइए जानते हैं, इस बेजोड़ पर्व से जुड़ी कुछ और महत्वपूर्ण तथ्य और रोचक बातें:

भारतीय पंचांग और ज्योतिष के अनुसार फाल्गुन माह की पूर्णिमा यानी होली के अगले दिन से चैत्र शुदी प्रतिपदा की शुरुआत होती है और इसी दिन से नववर्ष का भी आरंभ माना जाता है. इसलिए होली पर्व नवसंवत और नववर्ष के आरंभ का प्रतीक है। प्रचलित मान्यता के अनुसार यह त्योहार हिरण्यकशिपु की बहन होलिका के मारे जाने की स्मृति में मनाया जाता है। होलिका को आग से न जलने का वरदान था, उसने विष्णु भक्त प्रह्लाद को अग्नि में जला कर मारने की कोशिश की थी। होलिका जल गयी, प्रह्लाद बच गये. तभी से होली मनाने की प्रथा चल पड़ी।

क्या आप जानते हैं, होली एक बहुत हे प्राचीन उत्सव है. इसका आरम्भिक शब्द रूप होलाका था। पहले यह शब्द भारत में पूर्वी भागों में काफी प्रचलित था. जैमिनि और शबर जैसे ऋषियों ने ग्रन्थों में लिखा है कि होलाका सभी आर्यो द्वारा विधिवत सम्पादित होना चाहिए।

प्राचीन काल में होली के दिन यानि फाल्गुन की पूर्णिमा को महिलाओं द्वारा परिवार की सुख समृद्धि के लिए पूर्णिमा के चांद की पूजा करने की परंपरा थी। वैदिक काल में इस दिन नवात्रैष्टि यज्ञ किया जाता था। इसे वसंतोत्सव के रूप में काफी हर्ष-उल्लास और नए अन्न के साथ मनाया जाता था।

होली केवल रंगों का ही त्योहार नहीं है, बल्कि ओर सामाजिक और धार्मिक त्योहार भी है। इसे सभी बड़े उत्साह से मनाते हैं। सबसे बड़ी बात यह है कि इसमें जातिभेद-वर्णभेद का कोई स्थान नहीं होता है। लकड़ियों और कंडों आदि का ढेर लगाकर मंत्र उच्चारण से होलिकापूजन किया जाता है, फिर होलिका जलायी जाती है।

होली के अवसर पर लोग स्वादिष्ट पकवान बनाते हैं, जिसमें गुझिया, मालपुआ, दही-बड़ा खास व्यंजन हैं. लोग नाचते-गाते हैं और ढोल बजाकर होली के गीत गाते हैं। ऐसा माना जाता है कि होली के दिन लोग पुरानी कटुता को भूल कर गले मिलते हैं और फिर से दोस्त बन जाते हैं।

होली के अवसर पर मथुरा के वृंदावन में अद्वितीय मटका समारोह का आयोजन किया जाता है। समारोह में दूध और मक्खन से भरा एक मिट्टी का मटका ऊंचाई पर बांधा जाता हैं और लड़के मटके तक पहुंचने के लिए जी-तोड़ कोशिश करते हैं। इस आयोजन को जीतने वाले को इनाम भी दिया जाता हैं।

होली पर भरभोलिए जलाने की भी परंपरा है भरभोलिए गाय के गोबर से बने ऐसे उपले हैं, जिनके बीच में छेद होता है। इनकी माला बनाई जाती है, जिसमें सात भरभोलिए होते हैं। इस माला को भाइयों के सिर से अनिष्ट को उतारा जाता है और होलिका दहन के समय यह माला होलिका के साथ जला दी जाती है।

प्राचीन कवि हेमाद्रि ने होली के लिए बृहद्यम का एक श्लोक उद्धृत किया है, जिसमें होलिका-पूर्णिमा को हुताशनी कहा गया है। लिंग पुराण में आया है- फाल्गुन पूर्णिमा को फाल्गुनिका कहा जाता है, यह बाल-क्रीड़ाओं से पूर्ण है और लोगों को विभूति, ऐश्वर्य देने वाली है।

होली का त्यौहार हो और यदि बरसाना के लठमार होली की चर्चा न हो, ऐसा हो ही नहीं सकता. बरसाना के लठमार होली न केवल अपनी रोचक परंपरा बल्कि मस्ती और उमंग के पूरी दुनिया में प्रसिद्ध है। कृष्ण और राधा के प्रेम जुड़ी यहां की होली में नंदगांव के पुरूष और बरसाने की महिलाएं भाग लेती हैं। पुरुषों को हुरियार और महिलाओं को हुरियारिन कहा जाता है। जब मस्ती से भरे नंदगांव के पुरुषों टोलियां पिचकारियां लिए बरसाना पहुंचती हैं, तो बरसाने की हुरियारिन महिलाएं उनपर खूब लाठियां बरसाती हैं। वैसे तो हुरियारों को इससे बचना होता है, लेकिन यदि लठ का वार खा भी लिया, तो कोई भी हरियर उफ़ तक नहीं बोलता है, हंसता ही रहता है।

 

 

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