हिरण्यकश्यप की राजधानी थी एरच, जहाँ है होलिका कुंड

यहां महिलाएं होलिका को मानती हैं बेटी, दहन में शामिल नहीं होतीं
आज होलिका दहन का पर्व है। आज ही के दिन हिरण्यकश्यप की बहन होलिका ने भतीजे प्रह्लाद को जलाकर मारना चाहा। लेकिन वह खुद ही जल गई और भगवान विष्णु के भक्त प्रह्लाद बच गए। ये कहानी सबको मालूम है, लेकिन यह कम ही लोग जानते हैं कि जहां ये घटना घटी, वो जगह भारत में कहां मौजूद है?
यूपी के झांसी जिले से 80 किलोमीटर दूर पड़ता है एरच कस्बा। मान्यता है कि यहीं वो स्थान है, जहां होलिका प्रह्लाद को अपनी गोद में लेकर जलती चिता में बैठ गई थी। एरच को प्रह्लाद नगरी के नाम से जाना जाता है। यहां होली पर प्रह्लाद के साथ-साथ मां होलिका की भी जय बोली जाती है। ऐसी मान्यता है कि जो होली पर यहां आकर होलिका कुंड में अपनी नाक रगड़ता है, उसकी मनोकामना जरूर पूरी होती है।
हिरण्यकश्यप ने एरच को बनाया राजधानी
होलिका दहन स्थली के मुख्य पुजारी प्रतीप तिवारी ने बताया, “श्रीमद् भागवत पुराण स्कंद में हिरण्यकश्यप की नगरी का जिक्र आया है। सतयुग में इस जगह का नाम एरिकच्छ था। हिरण्यकश्यप ने इसे अपनी राजधानी बनाया था। इसके प्रमाण आज भी यहां मौजूद हैं।”
प्राचीन काल में ये टीला 400 एकड़ में फैला था, जो अब सिमटकर महज 50 एकड़ का रह गया है। नदी के तलहटी से बाहरी दीवारें नजर आती हैं, जो दिखने में काफी विशाल लगती हैं।
प्रदीप कहते हैं, “हिरण्यकश्यप के इसी टीले पर प्रह्लाद का जन्म हुआ। प्रह्लाद की विष्णु भक्ति से क्रोधित होकर हिरण्यकश्यप ने उन्हें मारने के कई प्रयास किए। कभी सांपों से भरी कोठरी में बंद करवा दिया। तेल की कढ़ाई में बैठाया तो कभी ढीकांचल पर्वत से नीचे फेंकवा दिया। लेकिन हर-बार प्रह्लाद बच जाते। आखिरकार, हिरण्यकश्यप ने अपने बेटे को मारने के लिए बहन होलिका की मदद ली।”

हिरण्यकश्यप का महल

एरच की बेटी थी होलिका, आज भी होती है पूजा
एरच के बुजुर्गों का कहना है कि होलिका को यहां बेटी का दर्जा दिया गया है। इसी वजह से पहले कस्बे में होली जलने से 2 दिन तक मातम मनाया जाता था। लेकिन आज ये परंपरा कुछ घरों तक ही सीमित रह गई है। होलिका का दूसरा नाम सिंहिका है। उसका जन्म एरिकच्छ में ही हुआ था। राहू भी होलिका का ही पुत्र था। इसी वजह से एरच में कभी राहूकाल नहीं लगता। मान्यता है कि होलिका को ब्रम्हा जी ने 3 बड़े वरदान दिए थे।
पहला वरदान: वह संसार के 5 तत्वों ( पृथ्वी, जल, अग्नि, वायु और आकाश) को अपने वश में कर सकती थी।
दूसरा वरदान: किसी भी जीवित वस्तु को आकर्षित करना।
तीसरा वरदान: उसके पास ऐसी चुनरी थी, जिसे ओढ़ने पर इंसान को आग भी जला नहीं सकती थी।एरच में आज भी वो अग्निकुंड मौजूद है। जहां होलिका प्रह्लाद को लेकर आग में बैठी थी। इस जगह पर अब होलिका का मंदिर बनाया गया है। मंदिर के पुजारी के अनुसार, हर साल होली के समय इस मंदिर में हजारों की संख्या में लोग दर्शन करने आते हैं। ऐसी मान्यता है कि जो भी होलिका दहन के दिन यहां आकर अपनी नाक रगड़ेगा, उसकी सभी मनोकामना पूरी हो जाएंगी।
एरच को अब तक न आग जला पाई, न पानी डूबा पाया
एरच गांव की आबादी 10 हजार है। यहां 60 फीसदी आबादी हिंदुओं की है। 20% मुस्लिम और बाकी दूसरे समुदाय के लोग हैं। गांव में प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र से लेकर एक प्राथमिक स्कूल, 3 प्राइवेट स्कूल, सामुदायिक शौचालय, एक मस्जिद और कब्रिस्तान है। यहां रहने वाले लोगों का कहना है कि गांव की हिफाजत मां होलिका खुद करती हैं।
एरच गांव की सुनीता देवी कहती हैं, “एरच में आज तक किसी घर में आग नहीं लगी। नदी के किनारे से सटे होने के बावजूद गांव में कभी भी बाढ़ नहीं आई है। गांव की महिलाएं इसे होलिका माता का ही आशीर्वाद मानती हैं। एरच की एक परंपरा भी है कि गांव की महिलाएं होलिका दहन में नहीं जाती हैं। क्योंकि कोई भी मां अपनी बेटी को पीड़ा में नहीं देख सकती।”एरच की श्रीभक्त प्रह्लाद जन-कल्याण संस्था यहां के ऐतिहासिक चीजों को संरक्षित कर रही है। संस्था के अध्यक्ष अमित चौरसिया कहते हैं, “एरच में 3 बार भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग ने खुदाई करवाई है। साल 2008 में बेतवा नदी के करीब हुई खुदाई में होलिका दहन का साक्षात प्रमाण मिला था। ASI की टीम को खुदाई में चूना पत्थर से बनी होलिका की मूर्ति मिली थी। इसमें होलिका प्रह्लाद को गोद में लिए बैठी दिखाई देती है।”
इसकी कार्बन डेटिंग करने के बाद यह पता चला कि ये मूर्ति करीब 5000 साल पुरानी है। इस प्रतिमा को उस जगह पर स्थापित किया गया है, जहां पहली बार होलिका दहन हुआ था। एरच के रहने वाले हर मंगलवार होलिका के मंदिर में आकर विशेष पूजा करते हैं।
उत्तर प्रदेश के राज्यमंत्री और बुंदेलखंड के वरिष्ठ साहित्यकार हरगोविंद कुशवाहा कहते हैं, “साल 1874 में ब्रिटिश सरकार ने झांसी गजेटियर पेश किया। इसके पेज नंबर 339ए, 357 में भी एरच को बुंदेलखंड का सबसे पुराना नगर बताया है। प्रह्लाद नगरी में अब हुई खुदाई में हजारों साल पुरानी ईंटों का निकलना साफ तौर पर इसकी ऐतिहासिकता साबित करता है।”
“धार्मिक नजरिए से देखा जाए, तो श्रीमद भागवत के सप्तम स्कन्ध के 37वें अध्याय में हिरण्यकश्यप के नगर एरिकच्छ का जिक्र मिलता है। हिरण्यकश्यप के बाद प्रह्लाद और फिर प्रह्लाद के बेटे विरोचन ने एरच पर राज किया। यहीं पर बेतवा नदी के किनारे उसके टीले के कुछ अवशेष बचे हुए हैं।”

अग्निकुंड जो होलिका से जुड़ा है

वैज्ञानिकों के लिए आज भी रहस्य बनी हुई है प्रह्लाद द्यौ
एरच गांव से 3 किमी दूर पड़ता है ढीकांचल पर्वत। यही वो पहाड़ी है, जहां से हिरण्यकश्यप ने प्रह्लाद को बेतवा नदीं में फेंकवा दिया था। मान्यता है कि प्रह्लाद को इससे कुछ भी नहीं हुआ था। पहाड़ से नदी के जिस हिस्से में भक्त प्रह्लाद को धकेला गया, उसे प्रह्लाद द्यौ (द्यौ का अर्थ होता है कुंड ) के नाम से जाना जाता है। गर्मी के महीनों में जब बेतवा नदी का पानी सूख जाता है। तब भी इस कुंड का पानी सूखता नहीं है।साल 2020 में लखनऊ से आई भू-वैज्ञानिकों की टीम ने प्रह्लाद द्यौ में मौजूद पानी पर रिसर्च की। जिला सिंचाई विभाग ने इस कुंड के जरिए गांवों में पाइपलाइन बिछाकर पानी पहुंचाने की प्लानिंग की है। साथ ही यूपी पर्यटन विभाग भी प्रह्लाद कुंड को टूरिस्ट स्पॉट की तरह विकसित कर रहा है। इसमें ढीकांचल पर्वत तक पहुंचने के लिए सीढ़ियां बनाई जा रही हैं, जिससे लोगों को बेतवा नदी के चारों ओर फैले हरे-भरे फॉरेस्ट एरिया का दिलकश नजारा मिल सके।
मौर्य वंश और अग्निमित्र के शासन काल का केंद्र रहा एरच
मशहूर लेखक ओपी लाल श्रीवास्तव ने किताब Erach Rediscovered में यहां मिले प्राचीन सिक्कों का जिक्र किया है। किताब में ये लिखा गया है कि – बृहद्रथ मौर्य की मौत के बाद 137 साल तक भारत में राज करने वाला मौर्य वंश समाप्त हो गया। बृहद्रथ को उसके ही सेनापति पुष्यमित्र शुंग ने मारा था। इसके बाद पुष्यमित्र शुंग के बेटे अग्निमित्र ने 2700 साल पहले एरच में राज किया था।
ओपी लाल ने लिखा कि एरच में पुरातत्व विभाग की खुदाई में मौर्य वंश के तांबे के सिक्के मिले। साथ ही अग्निमित्र के शासनकाल में चलाए गए 2600 साल पुराने ताम्रपत्र, सिक्के और पत्थरों के बने औजार भी मिले, जो एरच के महान इतिहास की गवाही देते हैं।झांसी के इतिहासविद मुकुंद मेहरोत्रा बताते हैं, “बुंदेलखंड यूनिवर्सिटी के अर्थ साइंस विभाग ने कुछ साल पहले एरच की चट्‌टानों, यहां की मिट्‌टी और टीले पर जाकर रिसर्च की थी। यहां पर मिली ईंटों की कार्बन डेटिंग से पता चला कि ये 10000 साल से भी ज्यादा पुरानी हैं।”
(साभार – दैनिक भास्कर)

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