वर्तमान में आर्थिक उदारीकरण के युग में बहुराष्ट्रीय देशों की कंपनियों ने अपने देशों (अमेरिका, ब्रिटेन, फ्रांस, जर्मनी, चीन आदि) के शासकों पर दबाव बढ़ाना शुरू कर दिया है ताकि वहां हिन्दी भाषा का प्रचार-प्रसार तेजी से बढ़े और हिन्दी जानने वाले एशियाई देशों में वे अपना व्यापार उनकी भाषा में सुगमता से कर सकें। अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर हिन्दी की प्रगति यदि इसी प्रकार होती रही तो वह दिन दूर नहीं जब हिन्दी संयुक्त राष्ट्र संघ में एक अधिकारिक भाषा का रूप हासिल कर लेगी। वर्तमान में मातृभाषियों की संख्या के दृष्टिकोण से विश्व की भाषाओं में मंदारिन [चीनी] भाषा के बाद हिन्दी का दूसरा स्थान है। चीनी भाषा के बोलने वालों की संख्या हिन्दी भाषा के बोलने वालों से अधिक है। परन्तु मंदारिन भाषा का प्रयोग क्षेत्र हिन्दी की तुलना में सीमित है और अंग्रेज़ी भाषा का प्रयोग क्षेत्र हिन्दी की अपेक्षा अधिक है किन्तु हिन्दी के मातृभाषियों की संख्या अंग्रेज़ी भाषियों से अधिक है।
अंग्रेजी के मूल क्षेत्र माने जाने वाले देशों की वर्तमान जनसँख्या देखें तो अमेरिका की जनसंख्या 31 करोड़, ग्रेट-ब्रिटेन की जनसंख्या 6.50 करोड़, कनाडा की जनसंख्या 3.6 करोड़, आस्ट्रेलिया की जनसंख्या सवा दो करोड़), आयरलैंड की जनसंख्या 65 लाख और न्यूजीलैंड की जनसंख्या 50 लाख है। इनकी कुल जनसंख्या वर्तमान में 44.25 करोड़ के आस-पास है। जबकि इसी वर्ष भारत की जनसंख्या 131 करोड़ से अधिक है। भारत के लगभाग 70 प्रतिशत लोग राजकाज, जनसंचार, शिक्षा, व्यापार या घर के बाहर संपर्क के लिए हिन्दी का उपयोग करते हैं। इस आधार पर हिन्दी का व्यवहार करने वालों की संख्या 90 करोड़ हो जाती है। जो विश्व भर में अंग्रेजी के गढ़ वाले देशों की देशों की कुल जनसंख्या के लगभग दो गुना से भी अधिक है। यदि भारत में आधे लोगों को भी हिन्दी व्यवहार करने वालों में गिना जाए तब भी अंग्रेजी की तुलना में हिन्दी का ही पलड़ा भारी पड़ता है और हिन्दी विश्व की दूसरी प्रमुख भाषा बन जाती है। किन्तु अगर इसमें मारीशस, फिजी, सूरीनाम, गुयाना, पड़ोसी नेपाल, पाकिस्तान, बांग्लादेश विश्व के अन्य देशों में बसे हिन्दी बोलने, जानने वालों की संख्या भारतवंशियों जोड़ दें तो हिन्दी मंदारिन को पछाड़कर विश्व की सबसे बड़ी भाषा है।
आज वैश्विक स्तर पर यह सिद्ध हो चुका है कि हिन्दी भाषा अपनी लिपि और ध्वन्यात्मकता (उच्चारण) के लिहाज से सबसे शुद्ध और विज्ञान सम्मत भाषा है। हमारे यहां एक अक्षर से एक ही ध्वनि निकलती है और एक बिंदु (अनुस्वार) का भी अपना महत्व है। दूसरी भाषाओं में यह वैज्ञानिकता नहीं पाई जाती। अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर ग्राह्य भाषा अंग्रेज़ी को ही देखें, वहां एक ही ध्वनि के लिए कितनी तरह के अक्षर उपयोग में लाए जाते हैं जैसे ई की ध्वनि के लिए ee (see) i (sin) ea (tea) ey (key) eo (people) इतने अक्षर हैं कि एक बच्चे के लिए उन्हें याद रखना मुश्किल हैं, इसी तरह क के उच्चारण के लिए तो कभी c (cat) तो कभी k (king)। ch का उच्चारण किसी शब्द में क होता है तो किसी में च। ऐसे सैंकड़ों उदाहरण आश्चर्य की बात है कि ऐसी अनियमित और अव्यवस्थित, मुश्किल अंग्रेजी हमारे बच्चे चार साल की उम्र में सीख जाते हैं बल्कि अब तो विदेशों में भी हिंदुस्तानी बच्चों ने स्पेलिंग्स में विश्व स्तर पर रिकॉर्ड कायम किए हैं, जबकि इंग्लैंड में स्कूली शिक्षिकाएं भी अंग्रेज़ी की सही स्पेलिंग्स लिख नहीं पातीं।
हमारे यही अंग्रेजी भाषा के धुरंधर बच्चे कॉलेज में पहुंचकर भी हिन्दी में मात्राओं और हिज्जों की गलतियां करते हैं और उन्हें सही हिन्दी नहीं आती जबकि हिन्दी सीखना दूसरी अन्य भाषाओं के मुकाबले कहीं ज्यादा आसान है। ऐसे में हिन्दी की उपेक्षा और उसके राष्ट्रभाषा न बन पाने के कारणों का त्वरित और गम्भीरता पूर्वक अध्ययन कर समाप्त कर हिन्दी को हिन्दुस्तान के मस्तक पर सजाना होगा। वेब, विज्ञापन, सिनेमा और बाजार के क्षेत्र में हिंदी की मांग जिस तेजी से बढ़ी है, वैसी किसी और भाषा में नहीं। विश्व के लगभग 150 विश्वविद्यालयों तथा सैकड़ों छोटे-बड़े केंद्रों में विश्वविद्यालय स्तर से लेकर शोध स्तर तक हिंदी के अध्ययन-अध्यापन की व्यवस्था हुई है। विदेशों में 35 से अधिक पत्र-पत्रिकाएं लगभग नियमित रूप से हिंदी में प्रकाशित हो रही हैं। यूएई में ‘हम एफ-एम’ हिन्दी रेडियो प्रसारण सेवा है, इसी प्रकार बीबीसी, जर्मनी के डायचे वेले, जापान के एनएचके वर्ल्ड और चीन के चाइना रेडियो इंटरनेशनल की हिंदी सेवा विशेष रूप से उल्लेखनीय है। विदेशों में चालीस से अधिक देशों के 600 से अधिक विश्वविद्यालयों और स्कूलों में हिन्दी पढ़ाई जा रही है।
दो हिन्दी अंतर्जाल पत्रिकाएं जो विश्व में प्रतिमाह 6,000 से अधिक लोगों द्वारा 120 देशों में पढ़ी जाती हैं। अभिव्यक्ति व अनुभूति www.abhivykti-hindi.org तथा www.anubhuti-hindi.org के पते पर विश्वजाल (इंटरनेट) पर मुफ्त उपलब्ध हैं। ब्रिटेनवासियों ने हिन्दी के प्रति बहुत पहले से रुचि लेनी आरंभ कर दी थी। गिलक्राइस्ट, फोवर्स-प्लेट्स, मोनियर विलियम्स, केलाग होर्ली, शोलबर्ग ग्राहमवेली तथा ग्रियर्सन जैसे विद्वानों ने हिन्दीकोष व्याकरण और भाषिक विवेचन के ग्रंथ लिखे हैं। लंदन, कैंब्रिज तथा यार्क विश्वविद्यालयों में हिन्दी पठन-पाठन की व्यवस्था है। यहां से प्रवासिनी, अमरदीप तथा भारत भवन जैसी पत्रिकाओं का प्रकाशन होता है। बीबीसी से हिन्दी कार्यक्रम प्रसारित होते हैं। फिज़ी में ‘रेडियो नवरंग’ एकमात्र ऐसा रेडियो स्टेशन है, जो 24 घण्टों तक हिंदी कार्यक्रम पेश कर रहा है। फिज़ी सरकार सूचना मंत्रालय के माध्यम से ‘नव ज्योति’ नामक त्रैमासिक पत्रिका भी निकालती है।
आइये देखते हैं विश्व में हिन्दी के पठन-पाठन से सम्बंधित कुछ महत्वपूर्ण जानकारी-
विश्व के मानचित्र में फ्रांस का एक विशेष स्थान है। फ्रांस के पेरिस शहर में सौरबेन विश्वविद्यालय में 3 वर्ष के पाठ्यक्रम के अलावा पीएचडी के लिए शोध की भी व्यवस्था है। ‘’पेरिस के प्राच्य भाषाओं एवं सभ्यताओं के राष्ट्रीय संस्थान’’ में हिंदी में 2 वर्ष का सर्टिफिकेट कोर्स, 3 साल का डिप्लोमा, 4 साल में उच्च डिप्लोमा, 5 साल और 6 साल के उच्च अध्ययन के शिक्षण की भी व्यवस्था है।
जापान: जापान के टोक्यो और ओसाका विश्वविद्यालयों में हिंदी का छह वर्षीय कोर्स है। इसके अलावा अन्य विश्वविद्यालयों एवं कॉलेजों में हिंदी वैकल्पिक विषय के रूप में द्वितीय एवं तृतीय भाषा के रूप में पढ़ाई जाती है। सन 1992 के करीब जापान का एक हिंदी स्कॉलर काफी समय तक भारत में रहने के उपरांत शिकागो गया और वहां पर हिंदी का एक वृहत् पुस्तकालय देखकर उस जापानी विद्वान ने भारत में अपने एक मित्र प्रोफ़ेसर को पत्र लिखा था कि यहां के हिंदी पुस्तकालय को देखकर दिल्ली विश्वविद्यालय के पुस्तकालय को शर्मिंदा होना पड़ेगा। तो ऐसी है हमारी राष्ट्रभाषा हिंदी।
कनाडा: कनाडा की यूनिवर्सिटी आफ ब्रिटिश कोलंबिया में हिंदी का 2 वर्ष का पाठ्यक्रम है। मॉन्ट्रियल विश्वविद्यालय में प्रारंभिक स्तर पर और अटावा शहर में बने मुकुल हिंदी हाई स्कूल में 1971 से सभी कक्षाओं में और टोरंटो शहर के कुछ स्कूलों में भी हिंदी पढ़ाई जाती है।
संयुक्त राज्य अमेरिका। संयुक्त राज्य अमेरिका के 30 विश्वविद्यालयों में उच्च, इंटरमीडिएट एवं प्रारंभिक स्तर पर एक विषय के रूप में पढ़ाई जाती है। संयुक्त राज्य अमेरिका में येन विश्वविद्यालय में 1815 से ही हिन्दी की व्यवस्था है। 1875 में कैलाग ने हिन्दी भाषा का व्याकरण तैयार किया था। अमरीका से हिन्दी जगत प्रकाशित होती है। कैलिफोर्निया, कोलंबिया, विस्कॉन्सिन, पेनसिलवेनिया, वर्जीनिया, टेक्सास, वाशिंगटन और शिकागो आदि विश्व विद्यालयों में हिंदी का भाषा केंद्रित अध्यन होता है।
नार्वे: नार्वे के ओसलो विश्वविद्यालय में मास्टर डिग्री के लिए हिंदी का पठन-पाठन किया जाता है तथा कुछ अन्य शहरों में भी प्राथमिक स्तर के स्कूलों में हिंदी पढ़ाई जाती है। स्वीडन के स्काटहोम विश्वविद्यालय में हिंदी का आधारभूत पाठ्यक्रम पढ़ाया जाता है. उप्पसला विश्वविद्यालय में हिंदी पढ़ाई जाती है।
दक्षिण अफ्रीका: दक्षिण अफ्रीका के यूनिवर्सिटी आफ डरबन में [डरबन शहर] में स्नातक और स्नातकोत्तर डिग्री के लिए हिन्दी पठान की व्यवस्था है। 50 विद्यालयों में राष्ट्रभाषा प्रचार समिति वर्धा की परीक्षाओं के लिए हिंदी पढ़ाई जाती है।
चीन: चीन के बीजिंग विश्वविद्यालय में ‘’पूर्वी भाषाएं और साहित्य विभाग’’ में स्नातक डिग्री के लिए हिंदी की पढ़ाई होती है।
ब्रिटेन: ब्रिटेन के लंदन विश्वविद्यालय एवम कैंब्रिज विश्वविद्यालय में बीए एम्ए. के स्तर पर ‘’भाषा विज्ञान’’ विषय के रुप में हिंदी के अध्यापन की व्यवस्था है।
जर्मनी: जर्मनी के हुम्बोल्ट विश्वविद्यालय, बर्लिन स्थित फ्री विश्वविद्यालय, बर्लिन स्थित ही लीपजिंग विश्वविद्यालय, मार्टिनलूथर विश्वविद्यालय, बान विश्वविद्यालय, हाईडेलबर्ग विश्वविद्यालय, और हैम्बर्ग विश्वविद्यालय में नियमित रुप से हिंदी पढ़ाई जाती है। यहां के अन्य कई विश्वविद्यालयों में भी हिंदी पढ़ाई जाती है।
रूस: रूस में मास्को स्थित ‘’प्राच्य अध्ययन संस्थान’’ और पेतेरबर्ग स्थित ‘’प्राच्य भाषा संस्थान’’ में 1920 से हिंदी पढ़ाई जा रही है। व्लादिवोस्तोक स्टेट यूनिवर्सिटी में भी हिंदी पढ़ाई जाती है।
स्विट्ज़रलैंड: स्विट्ज़रलैंड में लवसाने और ज्यूरिख के विश्वविद्यालयों में हिंदी के प्रारंभिक पाठ्यक्रम पढ़ाये जाते हैं।
इटली: इटली के नेपल्स और वेनिस विश्वविद्यालयों में इन्डोलाजी एंड फॉरईस्ट विभागों में हिंदी के उच्च स्तरीय पठन की व्यवस्था है। मिलान इंस्टिट्यूट फॉर मिडिल ईस्ट, मिलानविश्वविद्यालय और ट्यूरिन विश्वविद्यालय के ‘’आधुनिक आर्य परिवार की भाषाओं का विभाग’’ में हिंदी की शिक्षा दी जाती है।
हालैंड: हालैंड के लायडन विश्वविद्यालय में हिंदी का 4 वर्षीय शिक्षण पाठ्यक्रम है। इसके अलावा निजी संगठन भी हिंदी सिखाते हैं।
ऑस्ट्रेलिया: ऑस्ट्रेलिया के कैनबरा स्थित विश्वविद्यालय में स्नातक स्तर पर ऐच्छिक विषय के रूप में हिंदी का अध्ययन होता है। लात्रोवे, मोनाश तथा क्वींसलैंड के विद्यापीठों में भी हिंदी पढ़ाई जाती है, अन्य देशो जैसे डेनमार्क, पोलैंड, चेक गणराज्य, हंगरी, दक्षिण कोरिया, मैक्सिको, क्यूबा, बेल्जियम, ऑस्ट्रिया, फिनलैंड, रोमानिया, क्रोशिया गणराज्य, मंगोलिया, उज्बेकिस्तान, तजाकिस्तान, तुर्की, थाईलैंड, रीयूनियम, अर्जेंटीना, सऊदी अरेबिया, ओमान, बहरीन, मलेशिया, ताइवान, सिंगापुर, केन्या, कुवैत, इराक, ईरान, तंजानिया, जांबिया, बहरीन, बोत्सवाना और इंडोनेशिया के स्कूलों में हिंदी का अध्यापन होता है।
हमारे पड़ोसी देश पाकिस्तान के कराची लाहौर विश्वविद्यालय तथा इस्लामाबाद की स्कूल ऑफ मॉडर्न लैंग्वेजेस में सर्टिफिकेट और डिप्लोमा स्तर पर हिंदी पढ़ाई जाती है। श्रीलंका में डिग्री कोर्स तक हिंदी पढ़ाई जाती है। हमारे पड़ोसी नेपाल के त्रिभुवन विश्वविद्यालय में स्नातकोत्तर और पीएचडी तक की हिंदी सुविधा है। बांग्लादेश में हिंदी का 4 वर्षीय कोर्स है। भूटान के 8 स्कूलों तथा बर्मा के मंदिरों, धर्मशालाओं व गैर सरकारी स्कूलों में हिंदी पढ़ाई जाती है। तो यह है हमारे पड़ोसी देशों में हिंदी की स्थिति। कुछ ऐसे भी देश हैं, जहां बड़ी संख्या में भारतीय रहते हैं और वहां भाषा के साथ साथ भारतीय संस्कृत को भी आगे बढ़ा रहे हैं। वहाँ हिंदी में पत्र पत्रिकाएं भी निकलती हैं। जैसे मारीशस, फिजी, सूरीनाम, गुयाना, त्रिनिदाद और टोबैगो।
मारीशस: मारीशस के लगभग 350 गैर सरकारी स्कूलों में सांध्यकालीन पढ़ाई होती है। माध्यमिक पढ़ाई के करीब 30 सरकारी और 100 गैर सरकारी विद्यालयों में 25000 विद्यार्थी प्रतिवर्ष हिंदी पढ़ते हैं। यह आंकड़ा बढ़ गया है। महात्मा गांधी संस्थान में डिप्लोमा कोर्स, अध्यापकों के लिए पीजी डिप्लोमा कोर्स 3 वर्ष का, हिंदी में बीए ऑनर्स कोर्स, फिजी में पहली व दूसरी कक्षा में हिंदी शिक्षा का माध्यम है तीसरी कक्षा से हिंदी एक विषय के रूप में पढ़ाई जाती है। विश्वविद्यालयों में भी हिंदी पढ़ाई जाती है। सूरीनाम में सबसे ज्यादा विश्व विद्यालयों में हिंदी एक विषय के रूप में पढ़ाई जाती है। सन 1977 से हिंदी परिषद द्वारा आयोजित पाठ्यक्रमों में तकरीबन एक हजार से ज्यादा छात्र हिंदी की परीक्षाएं देते हैं। भारतीय संस्कृति के केंद्र में भी हिंदी पढ़ाई जाती है। त्रिनिदाद एवं टोबैगो यूनिवर्सिटी ऑफ वेस्टइंडीज और नीहस्ट में दो प्रोफेसर हिंदी पढ़ाते हैं। वेस्टइंडीज विश्वविद्यालय में हिंदी पीठ की स्थापना की गई है। यहां के अनेक विद्यालयों में हिंदी का पठन-पाठन होता है तथा हिंदी के अध्यापकों को प्रशिक्षित किया जाता है। गुयाना में ‘’हिंदी प्रचार’’ सभा द्वारा यहां के मंदिरों में लगभग सब पाठशालाएं हिंदी की प्राथमिक और माध्यमिक परीक्षा की व्यवस्था करती हैं। कुछ माध्यमिक स्कूलों में 6:00 से 8:00 तक हिंदी पढ़ाने का बंदोबस्त है।
हिंदी का भविष्य उज्ज्वल है अगर हिंदी के विकास में कोई बाधा है, तो स्वयं हम भारतीय। जो अंग्रेजी का मोह नहीं छोड़ पाते। हम स्वयं हिंदी की उपेक्षा करते हैं। हमारे घर में हमारी ही मां उपेक्षित है और दूसरे की मां अंग्रेजी को हम माँ-माँ कहकर चिल्लाते हैं। जो हमें मौसी जैसा भी भाव नहीं देती। किसी विद्वान ने कहा था कि– ‘अगर किसी को गुलाम बनाना है तो पहले उसकी भाषा व संस्कृति को नष्ट कर दो’ वह खुद गुलाम हो जाएगा। वही अंग्रेजों ने किया। हमारी भाषा व संस्कृत को विकृत कर दिया। वह जाते-जाते अपना काम कर चुके थे। अंग्रेजी अपना पैर पसार चुकी थी और आज अंग्रेजी की क्या स्थिति है सब जानते हैं। सबसे ज्यादा अप्रवासी भारतीयों का हिंदी के विकास में योगदान है। हमारे देश में मध्यवर्गीय परिवारों के लोग अपने बच्चों को अंग्रेजी माध्यम से पढ़ाते हैं हिंदी माध्यम से पढ़ाने में खुद को हीन महसूस करते हैं। इसमें भारत सरकार की कमजोरी है। हर सरकारी कार्यालयों में ज्यादातर कार्य अंग्रेजी में ही किए जाते हैं। जहां भी नौकरी के लिए जाइये पहला सवाल यही होता है- अंग्रेजी आती है कि नहीं? अगर नहीं, तो समझो नौकरी नहीं मिलेगी। इसलिए हिंदी वालों के मन में हीन भावना घर कर गई। आज हर गरीब-अमीर आदमी अपने बच्चे को कान्वेंट स्कूल में भेजना चाहता है। यही कारण है कि आजादी के 70 सालों बाद भी हिंदी राष्ट्रभाषा नहीं बन पाई। इस मामले में हमें चीन से सबक लेने की जरूरत है जो अपनी राष्ट्रभाषा के प्रति कटिबद्ध है। अंग्रेजों ने जैसे अंग्रेजी को अंतराष्ट्रीय भाषा बनाया उसी तरह अगर हम हिंदी का प्रयोग खुलकर हर जगह करें, पढ़े-पढ़ाएं, हिंदी के प्रति समर्पण, प्रेरणा लें और दें। फिर वह दिन दूर नहीं, जब दुनिया वाले हिंदी के पीछे भागेंगे और हिंदी एक स्थापित अंतर्राष्ट्रीय भाषा होगी। जरूरत है तो अपनी राष्ट्रभाषा के प्रति दृढ़निश्चयी होना, प्रेम होना, हिन्दी को लेकर निराश नहीं होना और उत्साही होना।
(स्रोत साभार – प्रभा साक्षी)