-दावों–आपत्तियों की सुनवाई केवल जिलाधिकारी कार्यालयों में
कोलकाता। विधानसभा चुनाव से पहले पश्चिम बंगाल में निजी हाउसिंग कॉम्प्लेक्सों के भीतर नए मतदान केंद्र स्थापित करने के प्रस्ताव पर सकारात्मक प्रतिक्रिया नहीं मिलने की वजह से चुनाव आयोग ने ज़िलाधिकारियों और ज़िला निर्वाचन अधिकारियों पर कड़ा रुख अपनाया है। आयोग ने साफ कहा है कि अब तक एक भी प्रस्ताव नहीं मिलने को वह बेहद गंभीर चूक मान रहा है। मुख्य निर्वाचन पदाधिकारी के दफ्तर को भेजे गए नोट में ईसीआई ने याद दिलाया है कि प्रतिनिधित्व अधिनियम 1951 की धारा 25 और 160 के तहत उचित संख्या में मतदान केंद्र उपलब्ध कराना ज़िला अधिकारियों की कानूनी ज़िम्मेदारी है। आयोग का कहना है कि पश्चिम बंगाल से मतदान केंद्रों के प्रस्ताव नहीं पहुंचना सीधे तौर पर इस ज़िम्मेदारी के उल्लंघन के बराबर है। चुनाव आयोग से जुड़े एक वरिष्ठ अधिकारी ने गुरुवार सुबह बताया कि आयोग ने निर्देश दिया है कि मतदाता सूची के प्रारूप प्रकाशन के बाद यानी 16 दिसंबर से सभी ज़िलाधिकारी बहुमंजिला इमारतों, समूह आवास परिसरों, आवास संघों, स्लम इलाकों और गेटेड सोसाइटी का सर्वे तुरंत करें। जिन परिसरों में कम से कम 250 घर या 500 मतदाता हैं, वहां ग्राउंड फ्लोर पर उपलब्ध कमरों का विवरण जुटाकर मतदान केंद्र के लिए उपयुक्त स्थान चिह्नित करना अनिवार्य किया गया है। स्लम क्लस्टरों में अतिरिक्त मतदान केंद्रों की ज़रूरत का भी आकलन करने को कहा गया है। इसके बाद सभी प्रस्तावों को दिसंबर महीने के अंतिम दिन तक आयोग को भेजना होगा। उधर, तृणमूल कांग्रेस और मुख्यमंत्री ममता बनर्जी पहले ही इस विचार का विरोध कर चुकी हैं। पिछले महीने मुख्यमंत्री ने मुख्य चुनाव आयुक्त को पत्र लिखकर कहा था कि निजी परिसरों में मतदान केंद्र बनाना निष्पक्षता और परंपरागत मानकों के खिलाफ है। उनका कहना था कि मतदान केंद्र हमेशा सरकारी या अर्द्ध-सरकारी संस्थानों में ही बने ताकि सभी के लिए समान पहुंच बनी रहे। भाजपा के आईटी सेल प्रमुख और पश्चिम बंगाल प्रभारी अमित मालवीय ने मुख्यमंत्री की आपत्तियों को खारिज करते हुए कहा कि जहां मतदाताओं के लिए सुविधा बढ़े, वहां कोई भी परिसर मतदान केंद्र बनाया जा सकता है। उन्होंने कहा कि दिल्ली सहित कई जगहों पर ऊंची इमारतों में ऐसे केंद्र पहले से चल रहे हैं। उन्होंने सवाल किया कि जब मौजूदा मतदाताओं से कोई केंद्र छीना नहीं जा रहा, तब इसमें समस्या क्या है। मतदाता सूची के विशेष गहन पुनरीक्षण (एसआईआर) के तीन चरणों में से दूसरे चरण में दावों और आपत्तियों की सुनवाई केवल संबंधित जिलाधिकारियों और जिला निर्वाचन अधिकारियों के कार्यालयों में ही कराई जाए। आयोग ने स्पष्ट कर दिया है कि किसी भी परिस्थिति में ब्लॉक विकास कार्यालयों या पंचायत कार्यालयों में ऐसी सुनवाई नहीं होगी। इस बाबत सीईओ कार्यालय के सूत्रों ने पुष्टि की है। निर्वाचन आयोग ने यह भी अनिवार्य कर दिया है कि सभी सुनवाई की वेबकास्टिंग हो और उसका पूरा रिकॉर्ड सुरक्षित रखा जाए। आयोग के कड़े निर्देशों के बाद सभी जिलाधिकारियाें और जिला निर्वाचन अधिकारियों को आवश्यक तैयारियां सुनिश्चित करने के निर्देश भेजे गए हैं। राज्य के लिए विशेष रूप से नियुक्त रोल ऑब्जर्वरों को भी सतर्क रहने को कहा गया है, ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि सुनवाई नियमानुसार जिलाधीश कार्यालयों में ही हो। गुरुवार दावे–आपत्तियों के लिए उपयोग होने वाले एन्यूमरेशन फॉर्म जमा करने और उनके डिजिटाइजेशन की आखिरी तारीख है। इसके बाद 16 दिसंबर को ड्राफ्ट वोटर लिस्ट प्रकाशित की जाएगी, जिससे तीन चरणों वाली एसआईआर प्रक्रिया के पहले चरण का समापन होगा। ड्राफ्ट प्रकाशन के बाद दूसरा चरण शुरू होगा, जिसमें दावों–आपत्तियों का दाखिल करना, नोटिस जारी करना, सुनवाई, सत्यापन और अंतिम निर्णय जैसी प्रक्रियाएं शामिल होंगी। ये सभी कार्य निर्वाचन पंजीकरण अधिकारियों द्वारा एकसाथ संचालित होंगे। इसके बाद तीसरे और अंतिम चरण में अंतिम मतदाता सूची प्रकाशित की जाएगी। अंतिम सूची जारी होते ही विधानसभा चुनावों की तारीखों की घोषणा की संभावना है। चुनाव आयोग पहले ही इस बात पर कड़ी आपत्ति जता चुका है कि जिलाधिकारी तथा जिला निर्वाचन अधिकारियों ने आगामी विधानसभा चुनाव के लिए बहुमंजिला निजी आवासीय परिसरों में उपयुक्त मतदान केंद्र चिह्नित करने का एक भी प्रस्ताव नहीं भेजा। आयोग ने स्पष्ट निर्देश दिया है कि 16 दिसंबर को ड्राफ्ट प्रकाशन के बाद सभी डीईओ बहुमंजिला इमारतों, समूह आवासीय परिसरों, आरडब्ल्यूए कॉलोनियों, स्लम और गेटेड सोसाइटियों का सर्वेक्षण कर कम से कम 250 घरों या 500 मतदाताओं वाले परिसरों में भूतल पर उपलब्ध कमरों की जानकारी जुटाएं और उपयुक्त जगहों को मतदान केंद्र के रूप में चिह्नित करें।





