कोलकाता । अर्चना संस्था की ओर से कविताओं के माध्यम से नये वर्ष 23 की अग्रिम शुभकामनाएँ दी गई। इंदू चांडक ने माँ शारदे की स्तुति से संचालन का शुभारंभ किया। 22 दिसम्बर को 4.30 बजे जूम पर हुए इस संगोष्ठी में अर्चना संस्था के 10 से अधिक कवियों ने स्वरचित कविताएँ पढ़ीं। बनेचंद मालू, शशि कंकानी, विद्या भंडारी, नौरतनमल भंडारी, हिम्मत चौरडिया, उषा श्राफ, इंदू चांडक, वसुंधरा मिश्र, मृदुला कोठारी ने नये वर्ष और पुराने वर्ष की संधि स्थल से संबंधित विभिन्न विचारों को अपनी कविताओं, रचनाओं और गीतों की प्रस्तुति दी। मृदुला कोठारी ने टुकड़े-टुकड़े धूप लेकर दिवस चला है रात की ओर गीत और पुराना साल जा रहा/नव वर्ष आ रहा प्रस्तुति दी। पुरातन की विदाई/ नव वर्ष का आगमन/शिकायत है हमें अवसर ही नहीं मिला बनेचंद मालू की सकारात्मक ऊर्जा से भरी कविताओं को सुना गया। उषा श्राफ ने कविता में अपनी इच्छा व्यक्त – फिर ज़िन्दगी को एक बार फिर पलट कर जीना चाहती हूं। नौरतनमल भंडारी ने गजल और कविता हरा भरा मेरा मन/हो गया है रेगिस्थान।/मेघो के गरजने/या बादलों के बरसने से/एक हूक सी उठती है । ग़ज़ल उठ गया लोगों से /ऐतबार,क्या करे /जहर उग्लते बैरी संसार, पसंद की गई ।पंच चामर छंद आधारित गीतिका सुनाते हुए हिम्मत चौरडिया ने लोगों को महत्वपूर्ण संदेश देते हुए छंदों के साथ कहा कि राम कहो रहमान कहो तुम, बंद करो नित ये झगड़े।विद्या भंडारी ने दो कविताओं में भविष्य में मनुष्यता पर होने वाले खतरे पर ध्यान दिलाया हर दिन एक नया सूरज उगाना चाहती हूँ / इससे पहले कि शहर जंगल में बदल जाए /आओ कुछ करें ।शशि कंकानी ने नए वर्ष का अभिनंदन करते हुए कहा कि नये वर्ष की नयी सुबह काश/आओ हम सब करें अभिनन्दन ।/ हम सब पक्षी डाल – डाल के/कब उड़ जायें कौन दिशा में।। इंदू चांडक ने स्मृतियों के खजाने में एक वर्ष फिर समाया /लक्ष्य हमारा आसमान है बढ़े चलें बढ़े चलें सुनाया। वसुंधरा मिश्र ने हर दिन नया और शरद कविता सुनाते हुए कहा कि क्या ही अच्छा होता हर दिन नया नया ही होता /मन का त्योहार बन आ जाता /अणु अणु में उष्मा भर जाता। संगीता चौधरी, मीना दूगड़, भारती मेहता, सुशीला चनानी, गुलाब वैद, प्रसन्न चोपड़ा, निशा कोठारी, देवी चितलांगिया, सुधीर पाटोदिया आदि सदस्यों ने नववर्ष की अग्रिम शुभकामनाएँ दी। सूचना दी डॉ वसुंधरा मिश्र ने ।