Sunday, April 27, 2025
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हमीरपुर के आर्यसमाजी नेता जो मंदिर के तहखाने में छापते थे अंग्रेजों के खिलाफ अखबार

इनके बुलावे पर बुंदेलखंड में आए थे नेहरू
उत्तर प्रदेश के हमीरपुर जिले में एक आर्यसमाजी विचारधारा के समर्थक और स्वतंत्रता संग्राम सेनानी को पहली विधानसभा चुनाव में एमएलए बनने का जनादेश मिला था। इन्‍होंने विधायक बनने से पहले अंग्रेजों के खिलाफ हुंकार भरी थी। वह ऐतिहासिक मंदिर के तहखाने से अंग्रेजी हुकूमत के खिलाफ अखबार का प्रकाशन भी चोरीछिपे करते थे। पकड़े जाने पर इन्‍हें जेल की सलाखों के पीछे जाना पड़ा था। इनका नाम था पंडित मन्‍नीलाल गुरुदेव।
हमीरपुर जिले के मुस्करा क्षेत्र के गहरौली गांव निवासी पंडित मन्‍नीलाल गुरुदेव आर्यसमाजी विचारधारा के प्रबल समर्थक थे। उन्होंने असहयोग आन्दोलन, नमक आन्दोलन, सविनय आन्दोलन, अवज्ञा आन्दोलन और भारत छोड़ो आन्दोलन में हिस्‍सा लिया था। अंग्रेजों के खिलाफ हल्ला बोलने पर इन्हें आठ सालों तक हमीरपुर और अन्य जिलों की जेल में निरुद्ध कर सजाएं दी गई थी।
मन्‍नीलाल स्वतंत्रता संग्राम के आन्दोलन में शीर्ष स्तर के क्रांतिकारियों से भी जुड़ गए थे। इसीलिए इन्होंने अपने गांव में कांग्रेस का बड़ा सम्मेलन कराया था, जो संभवत: बुंदेलखंड में कांग्रेस का पहला सम्‍मेलन भी था। वर्ष 1936 में पंडित मन्‍नीलाल गुरुदेव ने अपने गांव गहरौली में कांग्रेस का जिला स्‍तरीय सम्मेलन कराया था जिसमें जवाहरलाल नेहरू आए थे। उनके साथ उनकी बेटी इंदिरा गांधी भी थीं जो उस समय बहुत छोटी थीं।
इस सम्मेलन में राष्ट्रीय स्तर के नेताओं के अलावा पार्टी के तमाम अन्य नेता और जिले भर के स्वतंत्रता संग्राम सेनानी भी एकत्र हुए थे। यह सम्मेलन बुन्देलखंड का पहला था जिसमें जवाहरलाल नेहरू ने हजारों लोगों में जोश भरा था। सम्मेलन के बाद जवाहरलाल नेहरू और तमाम नेताओं ने गांव में बने बांके बिहारी जूदेव मंदिर में माथा भी टेका था। यहां एतिहासिक सम्मेलन के बाद मन्‍नीलाल गुरुदेव बुन्देलखंड क्षेत्र में लौह पुरुष के नाम से विख्यात भी हुए थे।
मंदिर के तहखाने में अंग्रेजों के खिलाफ छपता था अखबार
मन्‍नीलाल गुरुदेव के पौत्र विमल चन्द्र गुरुदेव ने बताया कि गांव में पूर्वजों ने 1929 में बांके बिहारी जूदेव मंदिर बनवाया था। इस मंदिर का शिखर भी पचास फीट ऊंचा है। इसी मंदिर के तहखाने में अंग्रेजों के खिलाफ तानाबाना बुना गया था। क्रांतिकारी मन्‍नीलाल गुरुदेव, दीवान शत्रुघ्न सिंह, रामगोपाल गुप्ता व गांव के तमाम सेनानी यहीं पर इकट्ठा होकर अंग्रेजों के खिलाफ ‘बुन्देलखंड केसरी’ नामक अखबार छापते थे। मंदिर के तहखाने से सुरंग के जरिए आम लोगों में अखबार पहुंचाया जाता था। बताया कि अंग्रेजों से बचने के लिए क्रांतिकारी यहीं मंदिर में ठिकाना बनाए हुए थे। मौजूदा समय में मंदिर का जीर्णोद्धार कराया जा चुका है।

पहली विधानसभा के चुनाव में बने थे विधायक
आजादी के बाद वर्ष 1952 में पहली विधानसभा के चुनाव कराए गए थे जिसमें महोबा सीट से क्रांतिकारी मन्‍नीलाल गुरुदेव ने कांग्रेस के टिकट से चुनावी महासमर में भाग्य आजमाया। उन्हें मतदाताओं ने विधानसभा पहुंचने का मौका भी दिया। उनके पौत्र विमल चन्द्र गुरुदेव ने बताया कि मौदहा विधानसभा की सीट पर चौथी बार चुनाव में मन्‍नीलाल गुरुदेव ने कांग्रेस छोड़कर सोशलिस्ट पार्टी से नाता जोड़ा और चुनाव मैदान में उतरे लेकिन वह कांग्रेस प्रत्याशी बृजराज सिंह से पराजित हो गए थे। उन्हें 15842 मत ही मिल सके थे। विधानसभा चुनाव में पराजय होने के बाद फिर उन्होंने कोई भी चुनाव नहीं लड़ा था।
(साभार – नवभारत टाइम्स)

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