गंगू मेहतर विट्ठुर के शासक नाना साहब पेशवा की सेना में नगाड़ा बजाते थे। गंगू मेहतर को कई नामों से पुकारा जाता है। भंगी जाति के होने से गंगू मेहतर तो पहलवानी का शौक़ होने की वजह कर गंगू पहलवान के नाम से पुकारा जाता था।गंगू मेहतर पर अंग्रेजो ने पचास हजार का इनाम रखा था। सती चौरा गांव में इनका पहलवानी का अखाड़ा था, कुश्ती के दांव पेच एक मुस्लिम उस्ताद से सीखने के कारण गंगूदीन नाम से पुकारे जाने लगे और लोग इन्हें श्रद्धा प्रकट करने के लिए गंगू बाबा कहकर भी पुकारते थे। गंगू मेहतर के पुरखे जिले कानपुर के अकबरपुरा गांव के रहने वाले थे। उच्चवर्णों की बेगार, शोषण और अमानवीय व्यवहार से दुखी होकर इनके पुरखे कानपुर शहर के चुन्नी गंज इलाके में आकर रहने लगे थे।
1857 के स्वाधीनता संग्राम में इन्होने नाना साहब की तरफ़ से लड़ते हुए अपने शागिर्दों की मदद से सैंकड़ो अंग्रेज़ों को मौत के घाट उतारा था। और इस क़त्ल ए आम से अंग्रेज़ी सरकार बहुत सहम सी गई थी। जिसके बाद अंग्रेज़ों ने गंगू मेहतर जी को गिरफ़्तार करने का आदेश दे दिया।गंगू मेहतर पर अंग्रेजो ने पचास हजार का इनाम रखा था! गंगू मेहतर अंग्रेज़ों से घोड़े पर सवार होकर वीरता से लड़ते रहे। अंत में गिरफ़्तार कर लिए गए। जब वह पकड़े गए तो अंग्रेज़ों नेउन्हें हथकड़ियाँ और पैरों में बेड़ियाँ पहनाकर जेल की काल कोठरी में रख दिया और तरह तरह के ज़ुल्म किये।
गंगू मेहतर पर इलज़ाम था के इन्होने कई महिलाओं और बच्चों का क़त्ल किया था; पर ये बात प्रोपेगंडा का हिस्सा भी थी, क्युं के अंग्रेज़ों ने उस समय मीडिया का भरपूर उपयोग प्रोपेगंडा के लिए किया था! बहरहाल गंगू मेहतर को फांसी की सज़ा सुनाई जाती है। उसके बाद कानपुर में इन्हे बीच चौराहे पर 8 सितम्बर 1859 को फाँसी के फंदे पर लटका दिया जाता है।जब उन्हे फांसी दी गई तो उनकी लाश को घोड़े में बाँधकर पूरे शहर में घुमाया! लेकिन दुर्भाग्यवश भारत के इतिहास में इनका नामो निशान नही है। यह नाम जातिवाद के कारण इतिहास के पन्नों में कहीं सिमट सा गया है।
शहीद गंगू मेहतर अपनी अंतिम सांस तक अंग्रेजों को ललकारते रहे : “भारत की माटी में हमारे पूर्वजों का ख़ून व क़ुर्बानी कि गंध है, एक दिन यह मुल्क आज़ाद होगा।” एैसा कहकर उन्होंने आने वाली पीढ़ियों को क्रान्ति का संदेश दिया और देश के लिए शहीद हो गए।कानपुर के चुन्नी गंज में इनकी प्रतिमा लगाई गयी है।