अगर पूछा जाए कि सैकड़ों साल पहले भी कौन सी मिठाई हिट थी और आज भी हिट है, तो उसमें बरफी का नाम सबसे ऊपर होगा। आप मिठाई की छोटी सी बड़ी दुकान पर चले जाइए, वहां एक मिठाई तो पक्का होगी। ये होगी बर्फी. खोया, दूध और चीनी से बनी बर्फी जीभ पर एक खास मीठा टैक्स्चर देते हुए मनमोहक अंदाज में घुलती है। इसकी ना जाने कितनी किस्में भारत में तैयार की गईं. खासकर दो बर्फी दोधा और काजू कतली के पैदा होने की कहानी तो बहुत ही रोचक है।
90 के दशक की शुरुआत में जब आर्थिक उदारीकरण ने दस्तक नहीं दी थी, तब मिष्ठान भंडारों पर मात्र 5-6 तरह की मिठाइयां ज्यादा नजर आती थीं। ट्रे में सजी खोये की बर्फी, गुलाब जामुन, रसगुल्ला, कलाकंद, इमरती, जलेबी और लड्डू. कुछ मिष्ठान भंडार पर भांति-भांति की बंगाली मीठे पकवान भी होते थे। बाजारीकरण के प्रवेश के साथ मिठाई की दुनिया में भी बहुत प्रयोग हुए, नई मिठाइयां ने इंट्री मारी. इनोवेशन और फ्यूजन शुरू हुआ. सारे देश की हिट मिठाइयां हर जगह नजर आने लगीं तो नए किस्म के मीठे पकवान भी बनने लगे। पहले अगर मिठाई की दुकानों पर केवल खोया बर्फी ज्यादा सजी नजर आती थी। वहां अब बादाम बर्फी, मूंग बर्फी, ड्राईफ्रूट्स बर्फी, दोधा (डोडा) बर्फी, नारियल बर्फी, पिश्ता बर्फी, काजू कतली, तिरंगी बर्फी, चॉकलेट बर्फी…ना जाने बर्फी कितने रूपों में दिखती है. इसमें दोधा बर्फी और काजू कतली की तो बनने की कहानियां ही गजब की हैं।
दूध ओटाने का काम तो हमारे यहां शायद तब से हो रहा है जब से हमने मवेशी रखने शुरू किए और आग पर बर्तन खाने-पकाने का काम सीख लिया। सिंधु घाटी सभ्यता और इसके पहले बरफी जैसे व्यंजन बनाने का उल्लेख मिलता है। सिंधु घाटी सभ्यता के लोग दूध और चीनी को किण्वित करने और ऐसी मिठाइयां बेशक बनाना जानते थे।
बर्फी फारस से आई – हालांकि जो बर्फी हम खाते हैं, जो फारस से तब आई जब मुगलों ने इधर रुख किया. कुछ का कहना है कि फारस से आने वाले व्यापारी इसे लेकर आए। खैर जो भी हो लेकिन बर्फी शब्द मूलतौर पर फारसी शब्द है. जो बर्फ से बना है। इसका फारसी में शाब्दिक मतलब होगा, जमी हुई चीज । हालांकि दुनिया में बर्फी भारत से फैली. कहा जाता है कि 19वीं सदी के बीच जब भारत से गिरमिटिया मजदूर कैरिबियन देशों और मॉरीशस की ओर गए तो इसे वहां ले गए. वहां ये लोगों को बहुत भायी. अब तो खैर बर्फी दुनियाभर में लोकप्रिय है।
अलग अलग तरह की बर्फियां – बर्फी तो अब खैर हमारे रीतिरिवाजों और पूजा अर्चना के साथ खुशियों के मौकों से भी जुड़ी है। हर बर्फी का अंदाज और जीभ पर मीठे की आनंददायी लहर पैदा करने का तरीका भी अलग है. कुछ बर्फियां चिपचिपी होती हैंय़ कुछ क्रिस्पी, कुछ दानेदार टैक्सचर वाली तो कुछ जीभ पर आते ही हल्के हल्के घुलने वाली. कई जगह इनके आकार प्रकार भी बदल जाते हैं।
कैसे एक पहलवान ने अनायास बनाई डोडा बर्फी – अब दो बर्फियों के आविष्कारों की बात, जो ठेठ भारतीय जमीन पर पैदा हुईं और दुनियाभर में फैल गईं। भूरी सुनहरी रवेदार चिपचिपी दोधा (डोडा) बर्फी कुछ लोगों को बहुत अच्छी लगती है। इसके बनने की कहानी रोचक है. ये अनायास ही बन गई। वाकया बंटवारे से पहले 1912 का है. पंजाब के एक पहलवान थे हरबंस विज. कुश्ती पहलवानी का काम करते थे। खुराक भी जबरदस्त थी. दूध और घी खाते पीते अघा चुके थे। एक दिन उन्होंने रसोई में दूध, घी, मलाई और सूखे मेवों को चीनी डालकर ओटाना शुरू किया। दूध ओटते ओटते पहले सफेद हुआ. फिर भूरा होने लगा। ड्राईफ्रूट्स और घी के मेल ने भी कमाल किया. और जो कुछ हलवे के अंदाज में बनकर सामने आया वो भूरा, गाढ़ा, चिपचिपा, रवेदार और एक अलग स्वाद वाला था। उन्होंने इसे थाली में पलटा और सपाट करके बर्फी के शेप में काट लिया। वास्तव ये जो नया स्वाद था, ये बहुत शानदार तो था ही और नया नया भी. इसे उन्होंने दोधा बर्फी कहा। ये दोधा से कब डोडा बर्फी कही जाने लगी, पता ही नहीं चला.
पहलवान को कैसे मालामाल कर दिया इस बर्फी ने – अब हरबंस विज ने ये बर्फी बनाने का काम ही शुरू कर दिया। ये पसंद की जाने लगी। उनकी दुकान बड़ी होने लगी और इस बर्फी ने उन्हें खूब पहचान दी। खासकर पहलवान इसे बहुत खाते थे. उन्हें लगता था कि इस बर्फी से दूध, घी और मावे का पूरा न्यूट्रीशन मिल जाता है। इस बर्फी की लोकप्रियता इस कदर बढ़ी कि लोग दूर दूर से इसे खरीदने आने लगे।
अब ये खास बर्फी बाहर भी खूब जाती है – जब बंटवारा हुआ तो हरबंस विज पाकिस्तान के अधीन आए पंजाब से कपूरथला आ गए। पाकिस्तान में जिसने उनका घर और दुकान खरीदी। उन्होंने भी इस बर्फी को बनाने बेचने का काम जारी रखा। कपूरथला में हरबंस ने अपनी दुकान शुरू की, जो इतनी फेमस हो गई कि वहां के चौक को ही दोधा (डोडा) चौक कहा जाने लगा. रॉयल दोधा हाउस से ये मिठाई अब भी एक्सपोर्ट होती है. अब हरबंस के परिवारवाले इसको चलाते हैं।
काजू कतली की दिलचस्प कहानी – काजू कतली की कहानी भी दिलचस्प है. ये दक्षिण भारत के दक्कन में ईजाद हुई, वहां से देशभर में फैली। अब तो ये हर किसी की पसंदीदा है. इसे बनाने का श्रेय 16वीं सदी में प्रसिद्ध शेफ भीमराव को जाता है. जो मराठा साम्राज्य के राजसी परिवार में मुख्य रसोइया थे। मराठों को मिठाई बहुत पसंद थी. भीमराव चाहते थे कि कोई नई मिठाई तैयार करें जिससे राज परिवार को प्रभावित कर सकें।
मराठा राज परिवार के रसोइए ने इसे बनाया – कहा जाता है कि भीमराव जब ये मिठाई तैयार कर रहे थे तो उनके दिमाग में फारसी स्वीट हलवा-ए-फारसी भी था। जो बादाम और चीनी से बनाया जाता था. तो उन्होंने तय किया वो काजू से नए तरह की मिठाई बनाएंगे। काजू उस क्षेत्र में भरपूर पैदा होता था. और जब भीमराव ने काजू से मिठाई बनाई तो मराठा राजघराने में खूब पसंद की गई। ये आम बरफी से कुछ ज्यादा पतली परत वाली थी तो इसे नाम दिया गया काजू कतली. ये पहले महाराष्ट्र में लोगों को भाया और फिर देश में फैल गया। अब ये भारतीय मिठाइयों में सबसे मशहूर मिठाई बन चुकी है. इसे उच्च श्रेणी की मिठाई माना जाता है।
कैसे बनाते हैं बर्फी – आमतौर पर बर्फी को गाढ़े दूध से बने खोया, दानेदार चीनी और घी से बनाया जाता है। इसमें पिस्ता, काजू, इलायची, केसर और मूंगफली जैसे मेवे मिलाये जाते हैं। इसमें कुछ क्षेत्रीय किस्मों में फल, गुलाब जल, बेसन या बादाम शामिल होते हैं जैसे नागपुर की आरेंज बर्फी का स्वाद और अंदाज दोनों बेमिसाल हैं. इनमें डाली गईं सामग्रियों के जरिए इन्हें खास रंग भी दिया जाता है। जब ये मिश्रण ठंडा हो जाता है तो इसे डायमंड, चौकोर या गोल टुकड़ों में काट लिया जाता है।
बेसन की बर्फी – यह स्वादिष्ट बर्फी मुंह में जाते ही पिघल जाती है. इसे बेसन को डीप फ्राई करके बनाया जाता है जिससे न सिर्फ बर्फी का स्वाद बेहतर हो जाता है बल्कि इसमें एक मनमोहक खुशबू भी आ जाती है. जैसे बेसन का रंग बदलता है, वैसे ही बर्फी का रंग भी बदलता है. इसमें मेवों का भी इस्तेमाल होता है।
नारियल बर्फी – नारियल बर्फी का लुभावना और साफ्ट अंदाज जीभ को अपना नजाकत से बाग-बाग कर देता है. इसे नारियल के बुरादे और खोये के साथ बनाते हैं।
बादाम बर्फी – इसे बादाम के चूरे और खोया मिलाकर बनाते हैं। इसका स्वाद भी लजीज होता है।
(साभार – न्यूज 18)