पंजाब के अमृतसर में स्थित स्वर्ण मंदिर भी प्रमुख गुरुद्वारों में से एक है। बड़ी संख्या में देश-विदेश से लोग यहां पहुंचते हैं। सिख धर्म के लोगों के साथ ही अन्य धर्म के लोग भी यहां पूरी आस्था के साथ सिर झुकाते हैं। पुराने समय में स्वर्ण मंदिर कई बार नष्ट किया गया, लेकिन इसे भक्तों ने फिर से बना लिया। मंदिर को कब-कब नष्ट किया गया और कब-कब बनाया गया, ये जानकारी में देखी जा सकती है। 19वीं शताब्दी में अफगान हमलावरों ने इस मंदिर को पूरी तरह नष्ट कर दिया था। इसके बाद महाराजा रणजीत सिंह ने इसे दोबारा बनवाया और सोने की परत से सजाया था। गुरुनानक जयंती के अवसर पर जानिए सिख धर्म के सबसे पवित्र स्थलों में से एक स्वर्ण मंदिर से जुड़ी कुछ खास बातें…
स्वर्ण मंदिर को श्री हरमंदिर साहिब या श्री दरबार साहिब भी कहा जाता है। इस मंदिर पर स्वर्ण की परत के कारण इसे स्वर्ण मंदिर कहा जाता है। स्वर्ण मंदिर में प्रवेश करने से पहले लोग मंदिर के सामने सिर झुकाते हैं, फिर पैर धोने के बाद सीढ़ियों से मुख्य मंदिर तक पहुंचते हैं।
यहां की सीढ़ियों के साथ-साथ स्वर्ण मंदिर से जुड़ी हुई सारी घटनाएं और इसका पूरा इतिहास लिखा हुआ है।
मान्यता है कि इस गुरुद्वारे का नक्शा करीब 400 साल पहले गुरु अर्जुन देव ने तैयार किया था। यह गुरुद्वारा वास्तु शिल्प सौंदर्य की अनूठी मिसाल है। मंदिर में की गई नक्काशी और सुंदरता सभी का मन मोह लेती है। गुरुद्वारे में चारों दिशाओं में दरवाजे हैं।
यहां हमेशा लंगर का प्रसाद ग्रहण करने के लिए लोगों की भीड़ लगी रहती है। लंगर की पूरी व्यवस्था शिरोमणि गुरुद्वारा प्रबंधक समिति की ओर से की जाती है। हर रोज यहां करीब 40 हजार लोग लंगर का प्रसाद ग्रहण करते हैं। यहां आने वाले श्रद्धालुओं के लिए श्री गुरु रामदास सराय में ठहरने की व्यवस्था भी है।
यहां आने वाले सभी श्रद्धालुजन सरोवर में स्नान करने के बाद ही गुरुद्वारे में मत्था टेकने जाते हैं। यह प्राचीन परंपरा है। स्वर्ण मंदिर का विशेष धार्मिक महत्व है। यह गुरुद्वारा एक बड़े सरोवर के मध्य स्थित है। गुरुद्वारे का बाहरी हिस्से पर सोने की परत है, इसलिए इसे स्वर्ण मंदिर या गोल्डन टेंपल के नाम से जाना जाता है।