स्त्री या देवी होने से बड़ा कर्तव्य मनुष्य होना है

नये नाम और नये शहर के साथ बलात्कार की वीभत्सता अपने घिनौने रूप में हाजिर है और सोशल मीडिया अपने कर्तव्य की पूर्ति में लग गया है। जैसा कि रिवाज है…एक से बढ़कर एक मार्मिक पोस्ट, कविताएं चिपकायी जाने लगी है..प्रोफाइल और डीपी काली होने लगी है…मगर कचरा आँख में हो तो चश्मा साफ करके क्या होना है..समस्या अपराध और अपराधी से अधिक हमारी है…उस सोच की है जो उसे नियन्त्रण में नहीं लाती और इसका सीधा सम्बन्ध स्त्रियों से है जो पितृसत्तात्मक साँचे में ढली हैं और उसी के अनुरूप आचरण भी करना जानती हैं…। ऐसा क्यों है कि लड़कियों को आत्मरक्षा करना नहीं सिखाया जा रहा है या लड़कों को मनुष्य की तरह बड़ा नहीं किया जा रहा है। असमानता का यह भाव इसलिए है क्योंकि अपराधियों को संरक्षण कोई और नहीं बल्कि खुद स्त्रियाँ दे रही हैं…बाकायदा उसे अपनी दुआओं की खाद देकर सींच रही है। ऐसा क्यों नहीं होता कि लड़की दहेज देकर शादी से इन्कार कर दे…या फिर अपनी ससुराल में कोई दहेज न ले जाए..। आप उसके अधिकार की बात करेंगे तो क्या यह बेहतर नहीं होगा कि यह अधिकार आप उसको सम्पत्ति में दें..? मध्य प्रदेश के एक आईपीएस अधिकारी द्वारा की गयी घरेलू हिंसा में बेटे ने वीडियो भेजी शिकायत कर के और बेटी है कि माँ को पागल बता रही है। अगर किसी औरत को यह बताया जाए कि उसके पति का सम्बन्ध किसी औरत से है तो वह औरत बगैर पड़ताल किये यह प्रमाणपत्र जारी करती है कि शिकायत करने वाला उसका घर तोड़ना चाहता है। अगर बेटे के बारे में कहा जाए तो माँ सच – झूठ नहीं देखना चाहती, उसे लगता है कि उसके राजा बेटे को कोई लड़की ब्लैकमेल कर रही है या पैसों की लालची है.। दहेज हत्याएँ होती हैं तो किरासन का डिब्बा किसी सास या ननद के हाथ में ही रहता है…। किसी महिला कर्मचारी को बॉस की गर्लफ्रेंड बताने वाली भी कोई महिला ही है औऱ वह तो एक हाथ आगे बढ़कर बॉस के लिए उसे पटाने की कोशिश कर वफादारी का प्रमाण तक देती है। प्रतिरोध नहीं करने वालों में अच्छी पहचान वाली महिलाओं का नाम शामिल है क्योंकि वे किसी झमेले में नहीं पड़ना चाहतीं। क्यों नहीं आप उस कलाई में राखी बांधने से इन्कार करतीं जिसने किसी स्त्री को गलत इरादे से छुआ, क्यों आप ऐसे पति या बेटे के लिए व्रत करती हैं जिसने किसी लड़की को छेड़ा है? क्यों नहीं आप अपनी बहू के लिए भी खड़ी होती हैं और क्यों बेटी को ससुराल में मरने के लिए छोड़ देती हैं….ये ऐसे सवाल हैं जिनके जवाब स्त्रियों के पास ही हैं….अगर आप अपने लिए नहीं बोलेंगी तो समाज, सरकार और सत्ता से क्या उम्मीद कर रही हैं…जहाँ इसी पितृसत्तात्मक समाज और सोच के लोग बैठे हैं।
अभी देवी पक्ष चल रहा है…तो इतना याद रखिए कि माँ की आराधना आप इसलिए करती हैं क्योंकि वह बगैर पक्षपात के पूरी सृष्टि में हो रहे अन्याय के विरुद्ध खड़ी होती हैं…फिर भले ही उनके सामने शिव ही क्यों न हों…इसलिए वह माँ हैं…अगर आप देवी हैं या उनकी संतान हैं तो यही प्रखरता अपने भीतर लाइए क्योंकि स्त्री या देवी होने से बड़ा कर्तव्य मनुष्य होना है।

शुभजिता

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