स्त्रियाँ अगर दूसरी स्त्रियों को सम्मान नहीं देंगी तो उनको सम्मान कैसे मिलेगा

वरिष्ठ लेखिका प्रभा खेतान के विशाल व्यक्तित्व से अलग उनकी बड़ी बहन डॉ.  गीता गुप्ता खेतान ने भी संघर्ष करके अपनी जगह बनायी। जब लड़कियों के लिए घर से निकलना चुनौती हुआ करता था, तब उन्होंने कलकत्ता विश्‍वविद्यालय से एमबीबीएस की पढ़ाई भी की और नौैकरी भी की। इसके बाद वे स्कॉटलैंड के ग्लासगो पढ़ने गयीं। गीता जी लन्दन से एमआरसीओजी और कनाडा के कनाडियन कॉलेज ऑफ फैमिली फिजिशियन कार्यरत रहीं। कई पेपर और कई पुरस्कार व सम्मान उनके नाम पर दर्ज हैं। पिछले 4 साल से वे कोलकाता में हैं और ईस्टर्न डायग्ऩस्टिक सेंटर  को अपनी सेवाएँ दे रही हैं और बेहद अच्छी चित्रकार भी हैं। डॉ. गीता गुप्ता खेतान से हुई बातचीत के कुछ अंश –

प्रभा संवेदनशील थी मगर मैं व्यावहारिक रही

हम 7 भाई – बहन थे। मेरी सबसे बड़ी बहन के बच्चे भी थे। हम एक ही घर में पढ़े। मेरी माँ काफी समृद्ध परिवार से थीं और बच्चों को आया के पास रखा जाता था। माँ ने घरेलू काम नहीं किये पर व बेहद स्वाभिमानी थीं। प्रभा शुरू से ही मेधावी थी। संवेदनशील, सकारात्मक और साहित्योन्मुखी थी। महज 8 साल की उम्र में ही उसने मंच पर प्रस्तुति दी और तभी से उसकी कविता में विद्रोह सामने आने लगा था। मन्नू भण्डारी हमारी शिक्षिका थीं और प्रभा की मेंटर भी थीं। मुझमें भी पढ़ने की आदत प्रभा ने ही डाली मगर मैं बहुत व्यावहारिक रही हूँ और मैंने अपनी मेहनत से परीक्षाएँ पास कीं।

रिश्तेदार टोकते रहे और हम पढ़ते चले गये

मैं डॉक्टर हूँ। विदेश में उस जमाने में अलग रहकर पढ़ाई की है जहाँ कोई नौकर -चाकर नहीं था। अपना हर काम खुद करती थी। जीवन अपनी शर्तों पर जीया। यह स्थिति होती है जब आप स्थिति के अनुसार खुद को ढाल लेते हैं। पिता की मृत्यु कम उम्र में हुई तो हमने आर्थिक अभाव भी देखा। उनकी मृत्यु के समय ही मैंने तय किया कि मुझे डॉक्टर बनना है और फोरेंसिक डॉक्टर बनना है। रिश्तेदार टोकते रहे और हम पढ़ते चले गये। ये माँ की शक्ति थी कि हम बड़े हुए। जब शादी के लिए कहा गया तो हमने कह दिया कि हमारी डिग्री ही हमारा हीरा है।

शिक्षा वह है जो स्वाभिमानी बनाये

आज माँ होकर लड़कियाँ भ्रूण हत्या करती हैं। वह माँ होने के बावजूद इस बात के लिए तैयार कैसे हो जाती हैं? अगर ऐसी औरतें अपनी बेटी की इज्जत नहीं कर सकतीं तो कोई उनकी इज्जत क्यों करेगा? सँयुक्त परिवारों में औरतों के लिए बच्चों को समय दे पाना आसान नहीं होता। आज भी परिवारों में दामाद को जो सम्मान मिलता है, वह बहुओं को नहीं मिलता। तो कहने का मतलब यह है कि शिक्षा वह है जो आपको स्वाभिमानी बनाए और आप अपना आत्मसम्मान हर स्थिति में बनाये रखें। वह अपनी पढ़ाई वह है जो आपको सोचने और समझने की शक्ति देता है। अपने हर निर्णय के लिए वे दूसरों पर निर्भर रहती हैं। प्रभा ने दूसरों को आगे बढ़ाया और सोचने की शक्ति दी।

शिक्षा का मतलब समग्र विकास होता है

सिर्फ डिग्री ही शिक्षा नहीं होती। शिक्षा का मतलब समग्र विकास होता है,महँगे स्कूलों में पढ़ने भर से कोई शिक्षित नहीं होता। भारत में बच्चों को बचत करना नहीं सिखाया जाता। कोई ब्रांड आपको बेहतर इन्सान नहीं बना सकता। आप ब्रांड पर निर्भर क्यों रहें, आप खुद में ही एक ब्रांड हैं। विदेशों में रही हूँ तो ये जानती हूँ कि अगर वहाँ ब्रांड है तो बजट भी है। लोग बचत करते हैं मगर यहाँ बच्चों को बचत करना नहीं सिखाया जाता और न ही पैसों की कद्र करना सिखाया जाता है। मैं यहाँ महँगी – महँगी किताबें खरीदती थी और पढ़ने बाहर गयी कि तो देखा कि वहाँ लोग पुस्तकालय में किताबें पढ़ते हैं….ये देखकर लगा कि हम कितनी बर्बादी करते थे। इतनी तैयारी करते देखकर आज हैरत होती है।

 पैसे और परिवार की कद्र करें

मैं पहले ग्लासगो में रही और शादी के बाद कनाडा में मैं मॉन्ट्रियाल में रही थी, वहीं नौकरी की। वहाँ आर्ट थेरेपी होती है और रंगों के माध्यम से मानसिक स्थिति का पता चल जाता है। 90 के दशक में पिकॉसो की प्रदर्शनी देखी..अच्छी लगी तो प्रभा से कहा कि सेवानिवृत्त होने के बाद सीखूँगी तो उसने कहा कि अभी सीखूँ। मैंने पेंटिंग सीखी और मुझे रंगों से प्यार है..यह मेरी पेंटिंग में नजर आता है। आज लड़कियों की स्थिति बहुत बदली है। जीवन स्तर, भाषा, शिक्षा और परवरिश का तरीका बदला है। पैसे और परिवार की कद्र करें तो सब सही होगा।

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