स्कूल बंद, शिक्षक ने शिक्षा का माध्यम बनाया मंदिर का लाउडस्पीकर

गाँव में जगह-जगह वर्णमाला लगाई
​​​​​​​तेलो (बोकारो) : लॉकडाउन की वजह से इन दिनों स्कूल बंद है। ऐसे में ग्रामीण क्षेत्र में बच्चों की पढ़ाई जारी रखने के लिए एक टीचर ने गांव में जगह-जगह दीवारों पर हिंदी-इंग्लिश की वर्णमाला लगा दी। साथ ही गांव के मंदिर में लगे लाउड स्पीकर को जरिया बनाया और बच्चों की पढ़ाई शुरू करवाई। शिक्षक लाउड स्पीकर से बोलते हैं तो दूर तक बैठे बच्चे उनके साथ ही इसे दोहराते हैं। हम बात कर रहे हैं चंद्रपुरा प्रखंड की पपलो पंचायत के तहत आने वाले जुनौरी गांव की। यहां सरकारी शिक्षक भीम महतो ने यह पहल की है।
पढ़ाई रुकने पर आया विचार
स्कूल बंद होने से बच्चों की पढ़ाई रुक गई थी। कई स्कूल छात्र-छात्राओं की ऑनलाइन पढ़ाई करवा रहे हैं, लेकिन गरीब बच्चों के पास स्मार्ट फोन न होने से उन्हें परेशानी हो रही थी। देश में लॉकडाउन लगने के बाद से ही राजकीय मध्य विद्यालय, जुनौरी के शिक्षक भीम महतो लगातार क्षेत्र में बच्चों को फ्री में पढ़ा रहे हैं। वे अपने खर्च पर बच्चों को कॉपी, पेन, मास्क, सैनिटाइजर और बिस्कुट भी देते हैं। उन्होंने घटियारी पंचायत के मंगलडाडी गांव में बसे बच्चों को सबसे पहले पढ़ाने की शुरुआत की थी। भीम महतो लाउड स्पीकर से बोलते हैं तो दीवारों पर बनी वर्णमाला के पास बैठे बच्चे उनके साथ दोहराते हैं। गांव के गोपाल गिरी और चंद्रिका गिरी ने कहा कि लॉकडाउन के दौरान सभी बच्चे पढ़ाई से दूर होते जा रहे थे। भीम महतो ने कोरोना संक्रमण को देखते हुए मंदिर परिसर में लगे लाउड स्पीकर से बच्चों को पढ़ाना शुरू किया। इससे बच्चों की पढ़ाई नहीं रुकी।

कई बच्चों के पास स्मार्ट फोन नहीं, लाउड स्पीकर को जरिया बनाया
भीम महतो का कहना है कि कोरोना काल में बच्चे पढ़ाई नहीं कर पा रहे थे। इसे देखते हुए मैंने गरीब बच्चों को पढ़ाना शुरू किया। लॉकडाउन के वक्त स्मार्टफोन से ऑनलाइन पढ़ाई की बात कही गई। गांव में ऐसे कई बच्चे हैं, जिनके पास स्मार्ट फोन नहीं है। ऐसे में मैंने सोचा कि इन्हें पढ़ाने के लिए मंदिर के लाउड स्पीकर की मदद ली जाए। इससे पहले मैंने गांव में कई जगह हिंदी-इंग्लिश वर्णमाला, फ्रूट नेम, वेजिटेबल नेम जैसे चार्ट लगाए। लाउड स्पीकर से पढ़ाने के बाद मैं कुछ बच्चों से फोन पर बात कर चेक करता हूं कि जो पढ़ाया वह उन्होंने लिखा है या नहीं। मेरी क्लास में पहली, दूसरी और तीसरी के 30-35 बच्चे होते हैं। मंदिर से करीब आधा किलोमीटर के अंदर बच्चों को ठीक से मेरी आवाज सुनाई देती है।
(साभार – दैनिक भास्कर)

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