चुनाव का बिगुल बज उठा है…आए दिन रैलियों और सभाओं से सड़कें गुलजार रहेंगी। सोशल मीडिया भी चुनावी प्रचार – कुप्रचार सभी से पटा पड़ा है…ऐसी स्थिति में केन्द्र सरकार द्वारा सोशल मीडिया पर लगाम कसने के लिए लाये गये नियम बेहद जरूरी जान पड़ते हैं। जरूरी तो हैं मगर काफी हैं…यह कहना जल्दबाजी होगी..कम से कम यूट्यूब, फेसबुक पर जिस तरह अपराध से लेकर आत्महत्याओं तक के लाइव वीडियो दिखायी पड़ते हैं…वह बहुत परेशान करने वाले होते हैं…चर्चा में रहने के लिए आए दिन भद्दे…अश्लील और फर्जी वीडियो बनाना तो आम बात हो गयी है।
क्या यह बेहतर नहीं होता कि ऐसे वीडियो पर लगाम कसी जाये या हिंसक और नग्नता से भरी सामग्री को अपलोड या डाउनलोड होने ही न दिया जाए। यह सही है कि सोशल मीडिया के लिए फिलहाल कोई सेंसरशिप नहीं है पर कोई तो तरीका हमें तलाशना ही होगा…जो इस तरह की घटनाओं पर लगाम लगा सके। खासकर जब दसवीं की बच्ची से लेकर 70 – 80 साल के बुजुर्गों को माँ – बहन की गालियाँ देते हुए देखा जाता है तो समझ में नहीं आता कि किया क्या जाए…। महिलाओं के प्रति जिस तरह अपराध बढ़ रहे हैं…उसके पीछे इस तरह की सामग्री को अगर जिम्मेदार ठहराया जाए तो गलत नहीं होगा…जरूरी है कि इनका नियमन किया जाये…या लगाम कसी जाए…थोड़ी सी सेंसरशिप तो जरूरी है क्योंकि खुद तो लोग सुधरने से रहे…इस तरह की भाषा जब हस्तियाँ इस्तेमाल करती हैं तो परिस्थिति और बिगड़ जाती है इसलिए जरूरी है कि वह भी अपनी जिम्मेदारी को समझें…तभी स्थिति नियंत्रित की जा सकेगी।